आर्यभट्ट ,वराह मिहिर ,सुश्रुत ,भास्कराचार्य ,पतंजलि : व्यक्तित्वों के योगदान
प्रश्न: निम्नलिखित व्यक्तित्वों के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखिए
(a)आर्यभट्ट
(b)वराह मिहिर
(c)सुश्रुत
(d)भास्कराचार्य
(e)पतंजलि
दृष्टिकोण
- उत्तर में इन व्यक्तित्वों की समयावधि आदि के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी को सम्मिलित कीजिए।
- मुख्य रूप से उनके योगदान (क्षेत्र, विशिष्ट कार्य आदि) पर ध्यान केंद्रित कीजिए।
उत्तर
(a) आर्यभट्ट – यह 5वीं शताब्दी के गणितज्ञ, खगोलविद, ज्योतिषी और भौतिक विज्ञानी थे। इनकी प्रमुख रचनाएं आर्यभट्टीयम
और आर्य सिद्धांत हैं। इनकी पुस्तक आर्यभट्टीयम में गणित और खगोल विज्ञान में इनके योगदान का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। आर्यभट्ट के मुख्य योगदान निम्नलिखित हैं:
- दशमलव प्रणाली का प्रयोग।
- ज्यामिति, त्रिकोणमिति और बीजावली (बीजगणित) जैसे विषयों का विकास।
- शून्य की खोज – इससे वे पृथ्वी और चंद्रमा के मध्य दूरी की गणना करने में सक्षम हुए।
- उनके सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है।
- सौर और चंद्र ग्रहण के वैज्ञानिक स्पष्टीकरण।
विज्ञान और गणित के विकास में उनके विभिन्न योगदानों का सम्मान करने के लिए, भारत के प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।
(b) वराहमिहिर – यह विक्रमादित्य के दरबार (380-415 ईस्वी) के नौ रत्नों में से एक थे और इन्होंने ज्योतिष, जल-विज्ञान, भूविज्ञान और पारिस्थितिकी के क्षेत्र में महान योगदान दिया।
- इनकी रचना बृहत् संहिता में भूकंप के संकेतों जैसे – समुद्र के अन्दर की गतिविधियां, असामान्य रूप से बादलों का निर्माण इत्यादि पर एक अध्याय सम्मिलित है।
- उन्होंने छह पशुओं और तीस पौधों की एक सूची का उल्लेख किया है, जो भूमिगत जल की उपस्थिति का संकेत दे सकते हैं। उदाहरणार्थ – दीमक।
वराहमिहिर की भविष्यवाणियां इतनी सटीक थी कि राजा विक्रमादित्य ने उन्हें ‘वराह’ की उपाधि प्रदान की।
(c) सुश्रुत- इनकी समयावधि 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास मानी जाती है। सुश्रुत शल्य-चिकित्सा के क्षेत्र में अग्रणी थे। इन्होंने शल्य-चिकित्सा को “उपचार कलाओं में सर्वोच्च तथा त्रुटियों की न्यूनतम संभावना वाली विद्या” माना है। इनकी रचना सुश्रुत संहिता में उनके महत्वपूर्ण योगदानों (विशेष रूप से प्लास्टिक सर्जरी और नेत्र चिकित्सा सर्जरी के क्षेत्र में) को रेखांकित किया गया है
- इन्होंने एक मृत शरीर की सहायता से मानव शरीर की रचना का अध्ययन किया तथा अध्ययन के लिए मृत शरीर के चयन और संरक्षण की विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया।
- इन्होंने 1100 से अधिक रोगों का वर्णन किया।
- इन्होंने रोगों के उपचार के लिए 760 से अधिक पौधों के उपयोग का वर्णन किया है।
- इन्होने शल्य-चिकित्सा में प्रयोग किए गए 101 उपकरणों के साथ ही विस्तारपूर्वक चरणबद्ध रूप में सर्जिकल ऑपरेशन का विवरण दिया है।
आश्चर्यजनक रूप से, सुश्रुत द्वारा प्लास्टिक सर्जरी के लिए अपनाए गए चरण आधुनिक सर्जनों के समान ही हैं।
(d) भास्कराचार्य – यह कर्नाटक में जन्मे 12वीं शताब्दी के एक अग्रणी गणितज्ञ थे। इनकी प्रमुख रचना सिद्धांत शिरोमणि है। इसे चार वर्गों में विभाजित किया गया है: लीलावती (अंकगणित), बीजगणित, गोलाध्यायी (गोले से सम्बंधित) और ग्रहगणित (ग्रहों की गति से संबंधित गणित)।
भास्कर ने बीजगणितीय समीकरणों को हल करने के लिए चक्रवात विधि या चक्रीय विधि का आरम्भ किया। यूरोपीय गणितज्ञों द्वारा इस विधि को लगभग 600 वर्षों पश्चात् पुनः खोजा गया था। 19वीं शताब्दी में एक विदेशी व्यक्ति जेम्स टेलर ने लीलावती का अनुवाद करते हुए इसे सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्धि प्रदान की।
(e) पतंजलि – विभिन्न स्रोतों के अनुसार, पतंजलि किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं था बल्कि यह नाम एक से अधिक व्यक्तियों की ओर संकेत करता है जिन्होंने व्याकरण और भाषा से लेकर योग सूत्र और चिकित्सा तक के क्षेत्रों में अपना विशिष्ट योगदान दिया:
पतंजलि द्वारा पाणिनि के व्याकरण (अष्टाध्यायी) पर एक टीका की रचना की गयी है जिसे महाभाष्य के नाम से जाना जाता है। इसे प्राचीन भारत के भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च उपलब्धि माना जाता है।
अपने योग सूत्र में, पतंजलि ने व्यवस्थित रूप से योग विज्ञान को प्रस्तुत किया है। पतंजलि के योग सूत्र में अष्टांग (शाब्दिक अर्थ”आठ अवयव”) नामक आठ योग मार्गों का वर्णन किया गया है। ये सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की विधियों के संबंध में दिशा-निर्देशों के रूप में कार्य करते हैं। पतंजलि द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में भी एक प्रमुख कृति की रचना की गयी है।
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