संघवाद : भारत में परिसंघीय प्रणाली

प्रश्न: भारत के संविधान निर्माताओं द्वारा भारत में शासन की परिसंघीय प्रणाली अपनाने के पीछे निहित कारणों का उल्लेख कीजिए। साथ ही, संविधान की प्रमुख परिसंघीय विशेषताओं का भी उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • संघवाद के संबंध में संक्षिप्त विवरण देते हुए भारत में परिसंघीय प्रणाली अपनाने के पीछे निहित मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
  • भारतीय संविधान की कुछ एकात्मक विशेषताओं के साथ प्रमुख परिसंघीय विशेषताओं को सूचीबद्ध करते हुए निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर:

  • भारतीय संविधान में शासन की परिसंघीय प्रणाली को अंगीकृत किया गया है जिसमें बेहतर सामंजस्य हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है।

भारत में शासन की परिसंघीय प्रणाली को अपनाने के कारण

  • संविधान निर्माताओं ने देश के उप-महाद्वीपीय आकार और भारत में विद्यमान सामाजिक सांस्कृतिक विविधता के कारण एकात्मक की बजाय एक परिसंघीय प्रणाली का चयन किया।
  • इसके अतिरिक्त विभाजन का आघात, रियासतों के एकीकरण की समस्या और पिछड़ेपन एवं निर्धनता को समाप्त करने हेतु योजनाबद्ध आर्थिक विकास की आवश्यकता ने उन्हें परिसंघीय प्रणाली के भीतर एक सशक्त केंद्र स्थापित करने के लिए प्रेरित किया।

संविधान की प्रमुख परिसंघीय विशेषताएं

  • शक्तियों का विभाजन: संविधान में सातवीं अनुसूची में संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची के रूप से केंद्र और राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है।
  • संविधान की सर्वोच्चता: अधिनियमित प्रत्येक कानून को संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होना और सरकार के सभी अंगों को संविधान द्वारा निर्धारित क्षेत्राधिकार के भीतर कार्य करना अनिवार्य है।
  • लिखित संविधान: यह केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों के विभाजन तथा उनकी संरचना, संगठन और कार्यों को निर्दिष्ट करता है।
  • कठोर संविधान: केंद्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में संविधान के सभी प्रावधानों में संशोधन केवल राज्य विधानमंडल और केन्द्रीय संसद की संयुक्त संस्तुति के द्वारा ही किया जा सकता है।
  • केंद्र से स्वतंत्र न्यायपालिका: संविधान के तहत एक सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया है। इसे संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने वाली किसी विधि को असंवैधानिक घोषित करने, केंद्र एवं राज्यों के मध्य विवादों के निपटारे आदि महत्वपूर्ण अधिकारिता प्रदान की गई है।
  • केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था: द्विसदनीय विधायिका स्थापित करके संघीय संतुलन को सुनिश्चित करता है, जिसमें लोकसभा और राज्य सभा शामिल है। जहां लोक सभा में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि सम्मलित होते है वहीं राज्य सभा में मुख्य रूप से राज्य विधान सभाओं द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है।

इसके बावजूद, भारतीय संविधान में अनेक एकात्मक विशेषताएं भी विद्यमान हैं, जैसे एकल नागरिकता, सशक्त केंद्र, आपातकालीन प्रावधान, अखिल भारतीय सेवाएं, एकीकृत न्यायिक प्रणाली इत्यादि। अतः, भारतीय संघवाद अपने दृष्टिकोण के साथ-साथ व्यवहार में भी विशिष्ट है।

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