स्वैच्छिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीति 2007

प्रश्न: भारत में स्वैच्छिक क्षेत्र के लिए एक सक्षमकारी परिवेश उपलब्ध कराने में विभिन्न मुद्दों की पहचान कीजिए। साथ ही, स्वैच्छिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीति 2007 के महत्वपूर्ण प्रावधानों का भी उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • स्वैच्छिक संगठनों (VOs) को संक्षेप में परिभाषित कीजिए तथा इनकी प्रासंगिकता को रेखांकित कीजिए।
  • स्वैच्छिक क्षेत्र के लिए एक सक्षमकारी परिवेश उपलब्ध कराने सम्बन्धी विभिन्न मुद्दों की पहचान कीजिए।
  • स्वैच्छिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीति के प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:

स्वैच्छिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीति (2007) स्वैच्छिक संगठनों (VOs) को उन स्वशासी निजी संगठनों, और गैर-लाभकारी संस्थाओं के रूप में परिभाषित करती है जो औपचारिक या अनौपचारिक रूप से लोक सेवा में संलग्न हों। इसमें समुदाय आधारित संगठन, NGOS, चैरिटी या पेशेवर संघ सम्मिलित हैं।

स्वैच्छिक संगठनों को एक सक्षमकारी परिवेश उपलब्ध कराने में विद्यमान बाधाएं:

  • जटिल कानून: स्वैच्छिक संगठन केंद्रीय या राज्य कानूनों के अंतर्गत सोसायटी, चैरिटेबल ट्रस्ट या गैर-लाभकारी कंपनियों के रूप में पंजीकृत हो सकते हैं। कानूनों की बहुलता ने परिचालन को जटिल व प्रतिबंधात्मक बना दिया है। इसके फलस्वरूप प्रायः उत्पीड़न और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • निम्न उत्तरदायित्व और पारदर्शिता मानदंड: उदाहरण के लिए जवाबदेहिता और निधियों के दुरुपयोग (जिसकी ओर सर्वोच्च न्यायालय ने ध्यान आकर्षित किया है) के फलस्वरूप सरकार और स्वैच्छिक क्षेत्र के मध्य अविश्वास में वृद्धि हुई है।
  • विदेशी योगदान में दुविधा: विदेशों द्वारा प्रदत्त योगदान ‘FCRA’ के अंतर्गत विनियमित होते हैं। राष्ट्रीय हितों से समझौता करने वाले कुछ गैर-सरकारी संगठनों के विषय में हाल ही में आसूचना ब्यूरो द्वारा किये गए दावे के फलस्वरूप विदेशी वित्त पोषण पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।
  • प्रशासन के साथ द्वंद्व: स्वैच्छिक संगठन निर्धनता, स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिन्हें प्रायः राज्य द्वारा विनियमित किया जाता है।

पूर्ववर्ती योजना आयोग के तत्वाधान में सरकार ने स्वैच्छिक क्षेत्र एवं सरकार के बीच के इंटरफेस को संस्थागत रूप देने के लिए स्वैच्छिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीति (2007) का शुभारंभ किया था। इस नीति के मुख्य उद्देश्य और प्रावधान निम्नलिखित हैं:

  • VOs की स्वायत्तता के संरक्षण के साथ ही उनकी प्रभावशीलता को प्रोत्साहित करने हेतु एक सक्षमकारी परिवेश का निर्माण करना जिसमें सरकार एक केंद्रीय कानून की व्यवहार्यता का आकलन कर सके।
  • भारत और विदेशों से आवश्यक वित्तीय संसाधनों के एकत्रण को सुविधाजनक बनाकर वित्तीय संसाधनों तक पहुंच को वैध रूप से सक्षम बनाना। उदाहरण के लिए, VOs पर लागू होने वाले FCRA के प्रावधानों को सरल बनाने की आवश्यकता
  • संयुक्त परामर्श, महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सामरिक सहयोग और वित्त पोषण के माध्यम से विकास में साझेदारी को संस्थागत बनाना। स्वैच्छिक संगठन समुदाय की भागीदारी के माध्यम से वंचित समूहों के विकास की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस प्रकार की भागीदारी में पंचायती राज संस्थाएं, नगरपालिकाएं, अकादमिक संस्थान और निजी क्षेत्र के संगठनों जैसी अन्य संस्थाएं भी सम्मिलित हो सकती हैं।
  • प्रशिक्षण के माध्यम से VOs को सुदृढ़ बनाना, उत्तरदायित्व और पारदर्शिता को बढ़ावा देना तथा व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट लोक-हितैषी गतिविधियों को प्रोत्साहित करना।

एस. विजय कुमार समिति द्वारा अनुशंसित पंजीकरण प्रक्रिया का आधुनिकीकरण, एकसमान दिशा-निर्देश तथा NITI आयोग के तत्वाधान में सरल विनियमन भी इस नीति के अनुरूप ही हैं। उपर्युक्त सुधार स्वैच्छिक संगठनों को ‘न्यू इंडिया’ में सार्थक भूमिका निभाने में सहायता प्रदान करेंगे।

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