भारत में हो रहे द्रुत शहरीकरण : सामना की जाने वाली चुनौतियों का तत्काल समाधान

प्रश्न: भारत में हो रहे द्रुत शहरीकरण और शहरी गरीबों की बढ़ती संख्या के साथ ही, यह अत्यावश्यक हो गया है कि इनके द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का तत्काल समाधान किया जाए। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संक्षेप में, द्रुत शहरीकरण की प्रवृत्ति एवं शहरी गरीबों की बढ़ती संख्या पर चर्चा कीजिए।
  • शहरी गरीबों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को स्पष्ट कीजिए।
  • इन चुनौतियों का तत्काल समाधान करने संबंधी आवश्यकता पर एक दृष्टिकोण प्रदान कीजिए।

उत्तर

भारतीय शहरी जनसंख्या तेजी से बढ़कर 25 मिलियन (1991 में) से 377 मिलियन (2011 में) हो गई है, जो कुल जनसंख्या का 31.2% है। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक भारत की शहरी जनसंख्या लगभग 250 मिलियन हो जाएगी। हालाँकि, भारत में शहरीकरण के साथ शहरी गरीबों की संख्या भी बढ़ रही है। 2011-12 में 14% से अधिक शहरी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही थी।

आर्थिक संवृद्धि एवं विकास की अपेक्षा के साथ, बड़ी संख्या में लोग शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास करते हैं जिसके परिणामस्वरूप शहरी गरीब विभिन्न अभावों के साथ जीवन यापन करने तथा अनेक क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करने हेतु विवश होते हैं, यथा:

  • आवासीय: उन्हें स्थायी एवं किफायती आवास, सुरक्षित पेयजल तथा शौचालय की उपलब्धता सम्बन्धी सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ता है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 65 मिलियन लोग मलिन बस्तियों में रहते हैं। इसके अतिरिक्त विकासात्मक परियोजनाओं हेतु किये जा रहे सार्वजनिक भूमि के अधिग्रहण के कारण उन्हें विस्थापन तथा जबरन निष्कासन का सामना करना पड़ता है।
  • व्यावसायिक: न्यून कौशल, न्यून शैक्षणिक स्तर तथा न्यूनतम पूंजी के कारण उनकी रोजगार के अवसरों एवं आय तक पहुंच सीमित बनी हुई है।
  • सामाजिक: उन तक स्वास्थ्य और शिक्षा के पर्याप्त अवसरों की उपलब्धता सीमित है। इसके अतिरिक्त विकृत शहरी अवसंरचना और पारिस्थितिकी के कारण उन्हें हानिकारक और अस्वस्थ वातावरण सामना करना पड़ता है। साथ ही उन तक सामाजिक सुरक्षा तंत्र की उपलब्धता अनुपस्थित या अति न्यून है।

इसके अतिरिक्त शहरी गरीबी के लैंगिक पहलू पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है। यह अति महत्वपूर्ण है क्योंकि पुरुषों एवं महिलाओं द्वारा गरीबी का अनुभव एवं सामना भिन्न-भिन्न तरीकों से किया जाता है। आय और संपत्ति, आवास, परिवहन एवं मूलभूत सेवाओं तक पहुंच लिंग आधारित बाधाओं तथा अवसरों से प्रभावित होती है। सामान्यतः महिलाओं द्वारा गृह-आधारित घरेलू सेवाएं (अति न्यूनतम भुगतान वाली) प्रदान की जाती हैं। इसके अतिरिक्त मीडिया, मद्यपान, ड्रग्स आदि का प्रभाव घरों में तथा समुदाय के भीतर एवं नियोक्ताओं द्वारा उत्पीड़न और शारीरिक शोषण को बढ़ाता है।

इसके अतिरिक्त न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, RTE अधिनियम, खाद्य सुरक्षा अधिनियम आदि जैसे विधायी उपायों के ख़राब कार्यान्वयन ने इन चुनौतियों में बढ़ोतरी की है तथा निम्नलिखित कारणों के परिणामस्वरूप इनका त्वरित समाधान अति आवश्यक है:

  • उपलब्ध सीमित प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित और असंधारणीय उपयोग शहरों में संकट की स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जैसे- शहरों में जल संकट, वायु प्रदूषण में वृद्धि, घरों के किराए में निरंतर वृद्धि, खुले में शौच आदि
  • शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध मानव संसाधनों का अपर्याप्त उपयोग जनसांख्यिकीय संकट उत्पन्न कर सकता है। यह सरकारी कोष पर अत्यधिक भार होगा तथा इससे अपराध की दर में भी वृद्धि होगी। 
  • मूलभूत अधिकारों से अपवंचन के परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों के अंतर्गत आय असमानता में वृद्धि होगी, जो समाज में विश्वास एवं सामाजिक सद्भाव को बाधित कर सकती है।
  • ख़राब और अस्वास्थ्यकर आवासों के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर होने वाले सरकारी व्यय में वृद्धि होगी और साथ ही आउट ऑफ़ पॉकेट खर्च के कारण गरीबी के दुष्चक्र को बढ़ावा मिलेगा।
  • यह भूमि अतिक्रमणों के कारण हो रही भूमि की कमी के परिणामस्वरूप, स्थानीय सरकारों के लिए बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में किए जाने वाले अवसंरचनात्मक विस्तार परियोजनाओं के विकास में अवरोध उत्पन्न करता है।
  • शहरी गरीबों हेतु पुनर्वास योजनाओं में होने वाले विलंब, विशेषकर मलिन बस्तियों के पुनर्वास के दौरान, गहन सामाजिक-आर्थिक जटिलताएँ उत्पन्न करते हैं।

सरकार ने शहरी गरीबों को मूलभूत सेवाएं प्रदान करने के लिए स्मार्ट सिटीज मिशन, AMRUT, स्वच्छ भारत, सभी के लिए आवास (हाउसिंग फॉर ऑल) जैसी विभिन्न पहलों के साथ-साथ दीन दयाल अंत्योदय योजना प्रारंभ की है, ताकि उन्हें कौशल विकास के माध्यम से स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान किए जा सकें।

हालांकि, नवाचारी मॉडलों का उपयोग कर सरकार एवं अन्य विकास एजेंसियों द्वारा शहरी गरीबों के लिए नए विकासात्मक प्रतिमान विकसित किए जाने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ: मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने निजी क्षेत्रक के साथ मिलकर सफलतापूर्वक एक नवाचारी भूमि-उपयोग मॉडल का विकास किया, जिसके तहत भूमि के कुछ भाग को वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए और शेष भाग को किफायती आवासीय परियोजनाओं हेतु प्रयोग में लिया गया। इसके अतिरिक्त, वर्तमान परिस्थितियों में शहरी गरीबों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का समाधान करने हेतु अन्य प्रगतिशील कदम, जैसे- सामाजिक सुरक्षा पर विधि निर्माण, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु उपाय तथा शहरी गरीबों की आवश्यकताओं की पूर्ति में सिविल सोसाइटी तथा स्थानीय सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका की पहचान करना आदि भी अत्यंत आवश्यक हैं।

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