भारत में ‘सांठ गांठ युक्त भ्रष्टाचार : सरकार द्वारा उठाए गए कदम

प्रश्न: भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को भ्रष्टाचार के मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारत में ‘सांठ गांठ युक्त भ्रष्टाचार की व्यापकता के आलोक में चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में सांठ-गांठ युक्त भ्रष्टाचार को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि कैसे इस खतरे से निपटने हेतु भ्रष्टाचार के दोनों पक्षों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • इस सन्दर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए कुछ हालिया कदमों का उदाहरण देते हुए संक्षिप्त निष्कर्ष प्रदान कीजिए।

उत्तर

भ्रष्टाचार को मूलतः सत्ता के दुरुपयोग के रूप में देखा जाता है। चाहे किसी व्यक्ति को रिश्वत देने के लिए विवश किया जाए (बलपूर्वक भ्रष्टाचार) या वह स्वेच्छा से रिश्वत दे (सांठ-गांठ युक्त भ्रष्टाचार), दोनों ही दशाओं में प्रदत्त शक्ति का दुरुपयोग होता है। वर्तमान में विभिन्न चैनलों के माध्यम से बढ़ती सतर्कता के कारण अधिकारियों द्वारा सामान्यतः कार्यों को करने हेतु अनुचित/अवैध उपायों को नहीं अपनाया जाता है। रिश्वत लेकर कोई स्पष्ट रूप से गलत कार्य करने पर पकड़े जाने की संभावना

अधिक होती है। हालाँकि, प्रदत्त कर्तव्यों का अनुपालन करते समय रिश्वत लेने पर, रिश्वत देने वाले और लेने वाले दोनों का ही लाभ होता है और इसके लिए पकड़े जाने की संभावना भी कम होती है। सांठ-गांठ युक्त भ्रष्टाचार एक प्रकार का भ्रष्टाचार है जिसमें इस गतिविधि में शामिल पक्ष आपस में एक पूर्व समझौता कर लेते हैं, जिससे भ्रष्टाचार एक स्वैच्छिक कार्य बन जाता है।

यदि कोई पुलिसकर्मी FIR दर्ज करने हेतु बलपूर्वक रिश्वत की मांग करता है तो यह बलपूर्वक भ्रष्टाचार है; यदि कोई व्यक्ति जांच में उदारता बरतने हेतु किसी पुलिसकर्मी को स्वेच्छा से रिश्वत की पेशकश करता है, तो यह सांठ-गांठ युक्त भ्रष्टाचार होता है। स्पेक्ट्रम-आवंटन (26 मामला) जैसे मामले भी सांठ-गांठ युक्त भ्रष्टाचार का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। रिश्वत लेकर एक पक्ष के हित में नियमों को परिवर्तित करने के कारण स्पेक्ट्रम आवंटन एक नियम-आधारित तरीके से संपन्न हुआ। ऐसे मामलों की सांठगांठ युक्त प्रवृत्ति के कारण और सम्भवतया सम्पूर्ण प्रक्रिया में कानून का सैद्धांतिक रूप का कोई उल्लंघन न होने के कारण इनमें भ्रष्टाचार को सिद्ध करना कठिन होता है।

सामान्यतः, भ्रष्टाचार पर सार्वजनिक विमर्श इस स्थिति के मांग पक्ष अर्थात् उन लोक अधिकारियों पर केंद्रित होता है जो अपने निजी लाभ हेतु अपने पद का दुरुपयोग करते हैं। किन्तु, भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को भ्रष्टाचार के मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, क्योंकि भ्रष्टाचार एक द्विदिशीय मार्ग है जो दोनों पक्षों की स्वेच्छा को दर्शाता है। प्रायः, आपूर्ति पक्ष पर कम ध्यान केंद्रित किया जाता है। रिश्वत देने वालों को प्रायः निर्दोष पक्षों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और माना जाता है कि वे कपटपूर्ण लोक सेवकों की शोषक प्रवृत्तियों के कारण पीड़ित होते हैं, अतः उनके साथ विनम्र व्यवहार किया जाता है।

इस प्रकार, भ्रष्टाचार विरोधी उपाय निम्नलिखित के माध्यम से मांग पक्ष भ्रष्टाचार पर ध्यान केंद्रित करते हैं:

  • भर्ती के समय लोक सेवा नैतिकता, जैसे कि ईमानदारी, सत्यनिष्ठा आदि सद्गुणों को सुनिश्चित करना और साथ ही सार्वजनिक संस्थाओं में जन विश्वास को बनाए रखने हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था।
  • लोक सेवकों में स्वेछाचारिता को कम करने के साथ-साथ सरकारी प्रक्रियाओं को सुगम बनाना ताकि लोगों को त्वरित सेवाओं के लिए रिश्वत देने की आवश्यकता न हो।
  • लोक सेवाओं में कदाचार की जांच और मुकदमा चलाने हेतु आंतरिक रूप से अनुशासनात्मक उपायों को प्रारंभ करने के साथ-साथ कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता के माध्यम से भ्रष्ट आचरण करने वाले कार्मिकों को दंडित करना।

हालाँकि, निम्नलिखित उपायों के माध्यम से लोक सेवा तक पहुँच प्राप्त करने हेतु रिश्वत देने की नागरिकों की इच्छा को कम करने और आपूर्ति पक्ष के भ्रष्टाचार को समाप्त करने की भी आवश्यकता है:

  • वैधानिक कार्यों की लागतों को पर्याप्त रूप से कम करना और अवैध या अनैतिक तरीके से किए जाने वाले कार्यों की लागत को बढ़ाना। यह कानून का अनुपालन करने और भ्रष्टाचार को कम करने वाले व्यवहार को प्रोत्साहित करने की दिशा में पहला कदम होता है।
  • साथ ही, गैर-कानूनी तरीके से किए जाने वाले कार्यों की उच्च लागत ही पर्याप्त नहीं है। सतर्कता प्रणाली को इस प्रकार के व्यवहार का पता लगाने में सक्षम बनाया जाना चाहिए। यदि लोगों में यह विश्वास बना रहेगा कि पकड़े जाने की बहुत कम संभावना है, तो वे भ्रष्टाचार को अपने अनुरूप काम करवाने का एक साधन मानते रहेंगे।
  • बेहतर छवि वाली फर्मों (clean firms) को प्रोत्साहित करने और सांठ-गांठ युक्त रिश्वतखोरी में लिप्त फर्मों को दंडित करने के लिए सामाजिक प्रतिबंधों की एक प्रभावी प्रणाली की आवश्यकता है।
  • रिश्वत को हतोत्साहित करने वाले ढांचे का निर्माण करने हेतु कॉर्पोरेट जगत के वित्तीय क्षेत्र और साथ ही अन्य मामलों में प्रकटीकरण और पारदर्शिता में सुधार करना।

हाल ही में भारत में भ्रष्टाचार सम्बन्धी कानून में रिश्वत देने वालों को भी शामिल किया गया है। भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम रिश्वत देने को भी दंडनीय अपराध बनाता है। इसमें प्रावधान किया गया है कि किसी व्यक्ति को रिश्वत देने के लिए मजबूर किए जाने पर वह सात दिनों के भीतर इस भ्रष्टाचार की रिपोर्ट कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, विधायी उपायों जैसे कि सरकारी विवेकाअधिकार के दुरुपयोग को रोकने हेतु सेवाओं के अधिकार और सार्वजनिक खरीद विधेयकों को लागू किए जाने, कंपनी की ओर से किसी के भी रिश्वत में शामिल होने पर निदेशक मंडल की जवाबदेहिता, भ्रष्टाचार के मामलों की समयबद्ध सुनवाई तथा व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम को लागू किए जाने आदि की आवश्यकता है। इस प्रकार दोनों पक्षों के भ्रष्टाचार को समाप्त किए जाने हेतु काम किया जाना चाहिए।

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