पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) : संधारणीय विकास के लिए इसके महत्व का वर्णन

प्रश्न: संधारणीय विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) की महत्ता के बावजूद, इसके संचालन के तरीके से लेकर रिपोर्टों के क्रियान्वयन तक यह अब भी कई मुद्दों से घिरा है। टिप्पणी कीजिए।

दृष्टिकोण

  • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के संबंध में संक्षिप्त परिचय दीजिए और संधारणीय विकास के लिए इसके महत्व का वर्णन कीजिए।
  • EIA के व्यवहार में लागू होने संबंधी मुद्दों का उल्लेख कीजिए।
  • EIA में जो कुछ सुधार किए जा सकते हैं, उनका उल्लेख करते हुए संक्षिप्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

संधारणीय विकास हेतु पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह योजना के प्रारंभिक अवस्था में विकास की प्रक्रिया में पर्यावरण संबंधी चिंताओं के समाकलन को संदर्भित करता है और इसके न्यूनीकरण के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव देता है। यह संसाधनों के अधिकतम उपयोग, न्यूनतम सामाजिक एवं पर्यावरणीय जोखिम को सुनिश्चित करता है।

इसके अंतर्गत उपयुक्त आकड़ों का संग्रहण, विशेषज्ञों के साथ परामर्श, परियोजनाओं का मूल्यांकन, अनिवार्य जन सुनवाई, पर्यावरण प्रबंधन योजना का निर्माण एवं प्रस्तुति तथा मंत्रालय को संबंधित परियोजना की रिपोर्ट, शामिल होते हैं।

हालांकि, भारत में EIA का उचित प्रकार से संचालन नहीं किया जाता है। वास्तव में, यह आरोप लगाया गया हैं कि कुछ परियोजनाओं में इसे अभी तक लागू भी नहीं किया गया है, उदाहरण के लिए, सरदार सरोवर परियोजना, अमरावती परियोजना आदि से संबंधित कुछ निर्माण कार्यों में।

EIA प्रभाव आकलन के विभिन्न चरणों से संबंधित अनेक मुद्दों में उलझ गया है:

  • निर्माण-स्थल का निर्धारण: अधिकांश मामलों में परियोजना के प्रस्तावक द्वारा नियुक्त पर्यावरणीय सलाहकारों को निर्माण-स्थल की मौजूदा सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिकीय समस्याओं के संबंध में पर्याप्त जानकारी नहीं होती है। कई बार पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील परियोजनाएं अधिनियम में प्राप्त अधिकतम सीमा छूट के कारण EIA प्रक्रिया में गतिरोध उत्पन्न करती हैं।
  • अस्पष्ट दिशा-निर्देश: EIA अधिसूचना, 2006 में जाँच और कार्यक्षेत्र की प्रक्रियाओं के संदर्भ में।
  • अध्ययन का आयोजन: आधारभूत डेटा प्राय: अपर्याप्त होता है और उपयोग किए जाने वाले एप्लिकेशन और पूर्वानुमान उपकरण प्राय असंगत होते हैं। कभी-कभी आर्थिक लाभ के लिए प्रतिकूल प्रभाव की उपेक्षा कर दी जाती है जैसे सेतु समुद्रम परियोजना की मंजूरी से बढ़ती नौ-परिवहन गतिविधि के माध्यम से प्रवाल भित्ति के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव की उपेक्षा की गई
  • जन सुनवाई: सामान्यत: स्थानीय लोगों के मध्य जागरूकता की कमी होती है और कभी-कभी परियोजना का विरोध करने वाले व्यक्ति के साक्ष्य भी रिकॉर्ड नहीं किए जाते हैं।
  • परियोजना रिपोर्ट: रिपोर्ट को न तो स्थानीय भाषा में तैयार किया जाता है और न ही कभी इसे समीक्षा हेतु पब्लिक डोमेन में रखा जाता है। प्राय: इसमें कुछ महत्वपूर्ण सूचनाओं का अभाव होता हैं। उदाहरण के लिए अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में बांध निर्माण, जिसने ब्लैक-नेक्ड क्रेन के शीतकालीन आवास को प्रभावित किया हैं। यह एक संरक्षित प्रजाति है और इसके नाम को EIA परियोजना रिपोर्ट में शामिल नहीं किया गया था।
  • निगरानी और कार्यान्वयन: 2017 में पर्यावरण मंजूरी पर कैग की एक लेखा परीक्षा रिपोर्ट में कानूनों का अनुपालन न करने और विनियमन में शिथिलता को दर्शाया गया है। इसके अनुसार 7% मामलों में, पर्यावरण मंजूरी से पहले ही निर्माण कार्यों को प्रारंभ किया जा चुका था।

इसके अतिरिक्त, EIA सामान्यत: लघु अवधि के लिए आयोजित किया जाता है जो कि क्षेत्र की मौजूदा पर्यावरणीय स्थिति और रुझानों को समझने हेतु अपर्याप्त है। उपर्युक्त कमियों के चलते EIA केवल एक नौकरशाही प्रक्रिया बनकर रह जाता है। यह निश्चित करने के लिए कि EIA प्रक्रिया संधारणीयता को सुनिश्चित करे, कई कदम उठाए जाने चाहिए जैसे कि अधिक पारदर्शिता, विश्वसनीय एवं प्रामाणिक डेटा की समय पर उपलब्धता, नियामकों की जवाबदेही सुनिश्चित करना, EIAS का संचालन स्वतंत्र अधिकृत पेशेवरों द्वारा, स्वतंत्र पर्यावरणीय नियामक एवं निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में जन भागीदारी की गुणवत्ता में सुधार।

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