भारत में नीति-निर्माण में जनसांख्यिकीय भिन्नता (डेमोग्राफिक डाइवर्जेस)
प्रश्न: एक युवा प्रधान उत्तर और एक प्रौढ़ दक्षिण एवं पश्चिम का एक उभरता हुआ प्रतिरूप दृष्टिगत हो रहा है। भारत में नीति-निर्माण में इस तरह के जनसांख्यिकीय भिन्नता (डेमोग्राफिक डाइवर्जेस) के संभावित निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये।
दृष्टिकोण
- युवा प्रधान उत्तर और प्रौढ़ दक्षिण एवं पश्चिम के एक उभरते प्रतिरूप के संबंध में लिखिए।
- भारत में नीति-निर्माण के संभावित निहितार्थों की चर्चा कीजिए।
- इसके साथ ही, भिन्न जनसांख्यिकीय संक्रमण (डाइवर्जेंट डेमोग्राफिक ट्रांजिशन) के प्रभावी प्रबंधन हेतु उपाय सुझाइए।
उत्तर
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 2017 (NFHS-4) के अनुसार, भारत में प्रजनन दर तेजी से प्रतिस्थापन स्तर पर पहुंच रही है। हालांकि, उत्तरी राज्यों में कुल प्रजनन दर (TFR) 2.2 के राष्ट्रीय औसत से अधिक बनी हुई है। इसने जनसांख्यिकीय अन्तराल की स्थिति उत्पन्न की है। उत्तर में युवा जनसंख्या में आनुपातिक वृद्धि और दक्षिण एवं पश्चिम की प्रौढ़ जनसंख्या इस अन्तराल को इंगित करती है। उत्तर और दक्षिण में जनसंख्या वृद्धि की दर में यह असमानता, देश के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप को नया आकार प्रदान कर सकती है। साथ ही नीति-निर्माण एवं विकासात्मक योजना के लिए भी इसके निहितार्थ हैं।
नीति-निर्माण के लिए निहितार्थः
- संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व की समीक्षा: उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्यों में युवा जनसंख्या विद्यमान है और यह जनसंख्या कई अन्य राज्यों की तुलना में और अधिक बढ़ती रहेगी। लोकसभा में इन राज्यों के प्रतिनिधित्व की समीक्षा की जानी चाहिए क्योंकि 2026 तक आरोपित रोक के कारण संसद में इन राज्यों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि नहीं हुई
- अंतर्राज्यीय प्रवासन नीति विकसित करना: प्रजनन दर में अंतर के साथ-साथ आर्थिक वृद्धि में असमानता के कारण प्रवासन प्रभावित होता है। अंतर्राज्यीय प्रवासन में वृद्धि हो रही है और प्रवासियों की संख्या तीव्रता से दक्षिणी राज्यों में संकेंद्रित हो रही है। नीति के अंतर्गत इस प्रवासन के प्रवाह को ध्यान में रखा जाना चाहिए ताकि आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि के पर्याप्त प्रावधान सुनिश्चित किए जा सकें।
- परिवार नियोजन से संबंधित नीतियां: असम, गुजरात और हरियाणा जैसे राज्य प्रतिस्थापन दर की प्राप्ति के स्तर पर पहुंचने वाले हैं, इसलिए ऐसे राज्यों में एक ऐसी नीति अधिक प्रभावी होगी जो जन्म को सीमित करने के स्थान पर गर्भधारण की आयु में वृद्धि पर ध्यान केन्द्रित करे। ऐसे स्थानों पर जहाँ प्रजनन में कमी करने की आवश्यकता है, वहाँ यह गुणवत्ता युक्त परिवार नियोजन सेवाओं की उपलब्धता और उनके उपयोग में वृद्धि के माध्यम से होनी चाहिए।
- कार्यशील जनसंख्या की मांग-आपूर्ति: जैसा कि अधिकतर जनसांख्यिकीय क्षमता उत्तरी राज्यों में विद्यमान है, इसलिए यहाँ कौशल विकास में निवेश आवश्यक है जिससे जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाया जा सके।
- सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दे: जनसांख्यिकीय और आर्थिक रूप से निर्धन राज्यों से विकसित राज्यों की ओर प्रवासन स्थानीय निवासियों और प्रवासियों के मध्य तनाव और संघर्ष का कारण बन सकता है।
- राज्य-विशिष्ट स्वास्थ्य और अवसंरचना संबंधित प्राथमिकताओं के लिए निहितार्थ: प्रवासियों के मूल स्थान पर निवास करने वाले उनके बच्चों और बुजुर्गों के लिए एक प्रभावी और समग्र समर्थन तंत्र के निर्माण की आवश्यकता है। इसी प्रकार, केंद्र द्वारा आरम्भ की गई स्वास्थ्य नीतियों को राज्यों की जनसांख्यिकीय संरचना को ध्यान में रखना चाहिए। उदाहरण के लिए, युवा जनसंख्या वाले राज्यों पर बीमारी का बोझ (disease burden), प्रतिस्थापन प्रजनन दर प्राप्ति स्तर के निकट वाले राज्यों या ऋणात्मक जनसंख्या वृद्धि दर वाले राज्यों की तुलना में भिन्न होगा। शहरी नियोजन एवं अवसंरचना विकास परियोजनाओं और धन के आवंटन में इस प्रकार की प्राथमिकताएँ प्रतिबिंबित होनी चाहिए।
इस प्रकार, जनसांख्यिकीय लाभांश को पूर्ण रूप से प्राप्त करने हेतु नीति-निर्माताओं को इस जनसांख्यिकीय संक्रमण (डेमोग्राफिक ट्रांजिशन) को ध्यान में रखना आवश्यक है।
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