नीतिशास्त्र एवं विधि के मध्य संबंध

प्रश्न: नीतिशास्त्र एवं विधि के मध्य क्या संबंध है? उदाहरणों के साथ व्याख्या कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • नीतिशास्त्र एवं विधि को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • नीतिशास्त्र एवं विधि के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर, दोनों के मध्य संबंध की व्याख्या कीजिए।
  • समुचित निष्कर्ष प्रदान कीजिए।

उत्तर:

नीतिशास्त्र, नैतिक सिद्धांतों का एक तर्कसंगत ढांचा है। यह ढांचा इससे सम्बंधित है कि व्यक्तियों और समाज के लिए क्या अच्छा है। जबकि विधि का आशय किसी व्यक्ति के व्यवहार, कार्यों और सामाजिक संबंधों को नियंत्रित करने के लिए एक निश्चित प्राधिकरण के माध्यम से लागू नियमों और विनियमों की एक संरचित प्रणाली से है।

नीतिशास्त्र एवं विधि के मध्य संबंध

समानताएँ:

  • नीतिशास्त्र एवं विधि दोनों ऐसी प्रणालियां हैं जो नैतिक मूल्यों का एक समुच्चय निर्धारित करती हैं तथा लोगों को उनका उल्लंघन करने से प्रतिबंधित करती हैं। दोनों ही प्रणालियाँ किसी निश्चित परिस्थिति में लोगों के व्यवहार के सन्दर्भ में दिशानिर्देश प्रदान करती हैं। अधिकांश विधियां, नैतिक मानवीय व्यवहार के न्यूनतम मानकों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • जब कुछ नैतिक सिद्धांत व्यापक रूप से स्वीकार कर लिए जाते हैं तो उन्हें ‘विधियों’ के रूप में संहिताबद्ध कर लिया जाता है। उदाहरण के लिए, हमारे समाज में ‘मातृत्व’ को पवित्र माना जाता है और इसका कोई मौद्रिक मूल्य नहीं माना जाता। इसलिए भारत में सरोगेसी को विनियमित करने वाली विधि केवल परोपकार में सरोगेसी की अनुमति प्रदान करती है।

असमानताएँ:

  • सबसे महत्वपूर्ण असमानता यह है कि विधि के उल्लंघन के लिए दंड की व्यवस्था होती है अर्थात सक्षम प्राधिकारी द्वारा विधिक रूप से प्रवर्तनीय कार्रवाई की जा सकती है। जबकि दूसरी तरफ नीतिशास्त्र के उल्लंघन पर सामाजिक प्रतिबंध आरोपित किए जा सकते हैं परंतु न्यायालय में विधिक रूप से प्रवर्तनीय दंड का प्रावधान नहीं है।
  • ऐसे विभिन्न क्षेत्र हो सकते हैं जहां विधि विद्यमान नहीं है अथवा प्रभावी नहीं है। किन्तु नीतिशास्त्र और नैतिकता का दायरा व्यापक है। उदाहरण के लिए, विधि द्वारा एक व्यापारी को उसके प्रतिद्वंद्वी को उधार न चुकाने वाले नए ग्राहक के संबंध में जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जबकि नीतिशास्त्र उस परिस्थिति में भी निर्णय के लिए मार्गदर्शन कर सकता है।
  • नीतिशास्त्र अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है क्योंकि विभिन्न लोगों की राय किसी निश्चित मुद्दे पर भिन्न-भिन्न हो सकती है। किन्तु विधि में यह स्पष्ट रूप से वर्णन किया जाता है कि क्या अवैध है; चाहे उसके सम्बन्ध में लोगों के विचार जो भी हों।
  • जहाँ कुछ हद तक नीतिशास्त्र सुपरिभाषित नहीं है, वहीं विधि परिभाषित और सटीक होती है।
  • समाज के परिपक्व होने की स्थिति में नीतिशास्त्र को आचार संहिता के रूप में विकसित किया जा सकता है लेकिन विधि को विधायिका की विशिष्ट कार्रवाई के माध्यम से ही परिवर्तित किया जाता है।

नीतिशास्त्र और विधि के मध्य संबंध गतिशील और समय के अनुसार परिवर्तनीय हैं।नीतिशास्त्र विधियों को मार्गदर्शन प्रदान करता है। नीतिशास्त्र और नैतिक मानकों में परिवर्तन होने पर मौजूदा विधियों में संशोधन होता है अथवा वे अमान्य हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, सरकारी कामकाज में पारदर्शिता की नैतिकता को संहिताबद्ध करने के लिए सूचना का अधिकार लागू किया गया था। इसी तरह समलैंगिकता को पहले व्यापक रूप से अप्राकृतिक और अनैतिक माना जाता था। लेकिन सामाजिक प्रगति के साथ धारा 377 को अब असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है क्योंकि इसके अनुसार “समान लिंग के वयस्कों के मध्य सहमति पर आधारित यौन आचरण” को अपराध माना गया था।

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