भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण : मरुस्थलीकरण हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारण एवम समाधान हेतु उपाय
प्रश्न: भारत द्वारा सामना की जा रही प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों के रूप में भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण के कारणों और निहितार्थों की चर्चा कीजिए। उनसे निपटने के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव दीजिए।
दृष्टिकोण
- भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण को परिभाषित कीजिए तथा स्पष्ट कीजिए कि यह कैसे भारत के लिए एक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौती है।
- मरुस्थलीकरण हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारणों की चर्चा कीजिए।
- भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण के कुछ निहितार्थों का उल्लेख कीजिए।
- इसके समाधान हेतु कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।
उत्तर
भू-निम्नीकरण, भूमि की स्थिति में होने वाला एक ऐसा परिवर्तन है जो इसकी उत्पादन क्षमता में कमी करता है। मरुस्थलीकरण, एक प्रकार का भू-निम्नीकरण है जिसमें अपेक्षाकृत शुष्क भू-क्षेत्र, विशिष्ट रूप से अपने जल निकायों और साथ ही साथ वनस्पति एवं वन्य जीवों की क्षति के साथ उत्तरोत्तर शुष्क भूमि में परिवर्तित होता रहता है।
भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण हेतु उत्तरदायी प्रमुख कारण
- जल अपरदन: वर्षा एवं सतही अपरदन के कारण मृदा आवरण की क्षति।
- वनस्पति निम्नीकरण: वनोन्मूलन, स्थानांतरण कृषि और चारागाह घास भूमियों एवं झाड़ीदार भूमियों का निम्नीकरण।
- पवन अपरदन: विशेषतया देश के पश्चिमी भाग में वायु के कारण मृदा की ऊपरी परत का हटना (बालू का प्रसार)।
- लवणता: कृषि भूमि, विशेष रूप से अनुपयुक्त जल निकासी वाले सिंचित क्षेत्रों में।
- मानव जनित/बस्तियां: खनन और अनियोजित नगरीकरण जैसी विकासात्मक गतिविधियां।
- अन्य: जल भराव, तुषारापात, वृहत संचलन आदि।
सीमांत और निम्न क्षमता वाली भूमियों अथवा प्राकृतिक संकटों के प्रति सुभेद्य भूमियों पर कृषि का विस्तार, अनुचित फसल चक्रण, कृषि रसायनों का अत्यधिक उपयोग इत्यादि भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण की समस्या में वृद्धि करते हैं।
भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण के निहितार्थ:
- पर्यावासों की क्षति, जिसके कारण पृथ्वी पर छठे व्यापक प्रजाति विलोप (sixth mass species extinction) का संकट उत्पन्न हो रहा है।
- यह जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्ता है, जिसमें अकेले वनोन्मूलन का कुल मानव प्रेरित ग्रीन हाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में लगभग 10% का योगदान है।
- जैव-विविधता और पारस्थितिकी तंत्र सेवाओं की क्षति।
- भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण, जटिल मार्गों के माध्यम से मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।
स्वास्थ्य पर मरुस्थलीकरण के संभावित प्रभाव निम्नलिखित हैं:
- कम होती खाद्य और जल आपूर्तियों के कारण कुपोषण का अत्यधिक जोखिम।
- पवन अपरदन और अन्य वायु प्रदूषकों से उत्पन्न वायुमंडलीय धूल के कारण श्वसन संबंधी रोग।
भू-निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु उपाय
- प्रक्षेत्र (rangeland) में चारागाह दबाव प्रबंधन, घास एवं चारा फसल सुधार, सिल्वोपैस्टोरल मैनेजमेंट, खरपतवार और कीट प्रबंधन, उपयुक्त अग्नि व्यवस्था को बनाए रखने इत्यादि के माध्यम से सुधार करना।
- खनन क्षेत्रों में खनन स्थलों पर ही खनन अपशिष्टों का प्रबंधन, खनन स्थलों की स्थलाकृति में सुधार और शीर्षमृदा के शीघ्र प्रतिस्थापन के माध्यम से सुधार करना।
- आर्द्रभूमि क्षेत्रों में, बिंदु एवं गैर-बिंदु प्रदूषण स्रोतों पर नियंत्रण करना, एकीकृत भूमि और जल प्रबंधन रणनीतियों को अपनाना तथा आर्द्रभूमि जलविज्ञान (wetland hydrology), जैव-विविधता आदि की पुनर्स्थापना।
- भू-निम्नीकरण करने वाले खाद्य पदार्थों एवं असंधारणीय स्रोतों से प्राप्त होने वाले पशु प्रोटीन के उपयोग को कम करना तथा खाद्य क्षति एवं अपव्यय में कमी करना।
- धारणीय प्रथाओं की अभिकल्पना और कार्यान्वयन में देशज लोगों एवं स्थानीय समुदायों सहित भूमि प्रबंधकों की मुख्य भूमिका को मान्यता प्रदान करना। विकृति उत्पन्न करने वाले प्रोत्साहनों, जैसे- सिंचाई सब्सिडी आदि को समाप्त करना तथा धारणीय भूमि प्रबंधन प्रथाओं के अंगीकरण को बढ़ावा देने वाले सकारात्मक प्रोत्साहनों पर विचार करना।
- अन्य: शहरी नियोजन, देशज प्रजातियों का पुनर्रोपण, हरित अवसंरचना विकास, संदूषित और आच्छादित मृदाओं (जैसे एस्फाल्ट के नीचे दबी हुई) का उपचार तथा नदी धाराओं का पुनरुद्धार। भू-निम्नीकरण में कमी और भूमि का पुनरुद्धार न केवल सामाजिक-आर्थिक लाभ हेतु बल्कि SDGs एवं पेरिस समझौते के तहत निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है।
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