सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी (probity) का महत्व

प्रश्न: सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी (probity) का महत्व दर्शाइए। शासन में ईमानदारी सुनिश्चित करने की क्या अपेक्षाएं हैं? इस संदर्भ में भारत में प्रमुख चिंताओं का उल्लेख करते हुए, कुछ उपचारात्मक उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • अपनी समझ पर विशेष ध्यान देते हुए ईमानदारी (Probity) को परिभाषित कीजिए।
  • इस संदर्भ में शासन में ईमानदारी को निर्धारित करने वाले कारकों तथा देश के समक्ष समस्या उत्पन्न करने वाले विभिन्न प्रासंगिक मुद्दों को सूचीबद्ध कीजिए।
  • अंत में, सभी मुद्दों का समाधान करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण प्रदान कीजिए।

उत्तर

ईमानदारी को सत्यनिष्ठा से विचलित न होने तथा सच्चरित्रता को बनाए रखने के आधार पर अपने नैतिक सिद्धांतों के सख्ती से पालन करने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

सार्वजनिक जीवन से संबंधित नोलन सिद्धांतों के अनुसार, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी के उच्च स्तर को बनाए रखने का अर्थ है- निःस्वार्थता, सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, उत्तरदायित्व, खुलापन, ईमानदारी तथा नेतृत्व के सिद्धांतों का पालन करना।

आधुनिक युग में, सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्र भ्रष्टाचार, बेईमानी तथा सत्यनिष्ठा की कमी की समस्याओं से ग्रस्त हैं।

इन सिद्धांतों के बिना अनुशासन को कायम नहीं रखा जा सकता है, जबकि यह गुन्नर मर्डल के अनुसार विकास के लिए अत्यावश्यक है। वास्तव में भ्रष्टाचार हमारे जीवन के सभी पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे निपटने के लिए सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी का होना आवश्यक है।

शासन में ईमानदारी को सुनिश्चित करने के लिए, भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति के साथ-साथ प्रभावी संस्थाओं की भी आवश्यकता है जोकि सार्वजनिक जीवन को शासित करने वाले कानूनों, नियमों एवं विनियमों का निरीक्षण और कार्यान्वयन कर सकें। इस संदर्भ में, शासन में ईमानदारी को सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में भारत में निम्नलिखित चिंताएं व्याप्त हैं:

  • भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कानूनों की उपलब्धता के बावजूद, उन्हें अक्षरशः कार्यान्वित करने की इच्छाशक्ति का अभाव
  • शक्ति एवं सूचना के मध्य व्याप्त असमानता के कारण विधि के शासन का अभाव है। इससे राज्य की कार्यकारी शाखा के साथ संलग्न लोगों द्वारा राज्य पर आश्रित लोगों के शोषण का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • समाज के बड़े वर्गों में एक आवश्यक बुराई के रूप में भ्रष्टाचार की स्वीकृति।
  • सरकार में गैर-पारदर्शिता की संस्कृति व्याप्त है जोकि परिव्यय के माध्यम से लाभ प्राप्ति को हतोत्साहित करती है।

इस स्थिति का समाधान करने हेतु, द्वि-आयामी दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है:

विधिक-प्रशासनिक दृष्टिकोण से निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  • सरकारी कर्मचारियों के अनुचित कृत्यों का अन्वेषण करने के लिए एक व्यापक कानून को कार्यान्वित करना।
  • सरकारी कर्मचारियों द्वारा अवैध रूप से अर्जित संपत्ति को जब्त करने के लिए कानून का निर्माण करना।
  • व्हिसल ब्लोअर की रक्षा करने के लिए व्हिसल-ब्लोअर संरक्षण अधिनियम को सुदृढ़ करना।
  • सूचना को अधिकार (RTI) अधिनियम को अक्षरशः कार्यान्वित करना।
  • लोकपाल संस्थान को सुदृढ़ बनाना।
  • आपराधिक न्यायिक प्रणाली को सुदृढ़ करना अर्थात सभी पहलुओं में सुधार करना जिनमें पुलिस / जांच एजेंसी, अभियोजन एजेंसी, वकील, गवाह और न्यायपालिका भी सम्मिलित है।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक लेखापरीक्षा जैसे उपायों को अपनाना।

एक सामान्य दृष्टिकोण के तहत समाज के एक अभिन्न अंग के रूप में हमें घरों एवं स्कूलों में मूल्य संबंधी शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है। चूंकि बच्चे बुजुर्गों से बहुत कुछ सीखते हैं, इसलिए हमें एक आदर्श व्यक्ति एवं अच्छा नागरिक बनने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि युवा पीढ़ी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को अपनाने की ओर अग्रसर हो सके।

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