1935 के अधिनियम के अंतर्गत कांग्रेस मंत्रालयों के अठ्ठाईस महीनों के शासनकाल की संक्षिप्त पृष्ठभूमि

प्रश्न: 1935 के अधिनियम के अंतर्गत अट्ठाईस महीनों के शासनकाल के दौरान कांग्रेस मंत्रालयों का विधायी और प्रशासनिक रिकॉर्ड सकारात्मक रहा था, लेकिन यह अवधि कांग्रेस के भीतर गंभीर कमजोरियों के उभरने का भी साक्षी बनी। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • 1935 के अधिनियम के अंतर्गत कांग्रेस मंत्रालयों के अठ्ठाईस महीनों के शासनकाल की संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रस्तुत कीजिए।
  • अठ्ठाईस महीनों के इस शासन के सकारात्मक विधायी और प्रशासनिक परिणामों पर चर्चा कीजिए।
  • तत्पश्चात इस अवधि के दौरान एक संगठन के रूप में कांग्रेस के सामने आने वाली समस्याओं पर चर्चा कीजिए।
  • कांग्रेस मंत्रालयों के अठाईस महीनों के शासन के समग्र प्रभाव के साथ संक्षेप में निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

जुलाई 1937 में कांग्रेस ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत छह प्रांतों अर्थात मद्रास, बम्बई, मध्य प्रांत, उड़ीसा, बिहार और संयुक्त प्रांत में तथा बाद में पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत और असम में मंत्रालयों का गठन किया।

प्रांतों में 28 महीनों के इस शासन के दौरान कांग्रेस मंत्रालयों द्वारा कई विधायी और प्रशासनिक कदम उठाए गए, जिसने देश का मनोवैज्ञानिक परिवेश बदल दिया और जन सामान्य को स्वशासन की अनुभूति कराई। इन विधायी और प्रशासनिक कदमों में निम्नलिखित सम्मिलित थे: 

  • सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियमों और ऐसे ही अधिनियमों के माध्यम से प्रांतीय सरकारों द्वारा अधिगृहीत सभी आपातकालीन शक्तियों को निरस्त कर दिया गया, अवैध राजनीतिक संगठनों, पुस्तकों और पत्रिकाओं पर आरोपित प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया गया। प्रेस पर लगे सभी प्रतिबंधों को हटा दिया गया।
  • बम्बई में, सरकार ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान ‘कर नहीं’ अभियान के परिणामस्वरूप सरकार द्वारा जब्त की गई भूमि को उनके स्वामियों को लौटाने के लिए कदम उठाए।
  • 1930 और 1932 के दौरान आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखने वाले पदच्युत किए गए अधिकारियों की पेंशन भी बहाल कर दी गई। कांग्रेस मंत्रालयों ने भूधृति की प्रणाली में विभिन्न सुधार लाकर तथा लगान, भूमि राजस्व एवं ऋण भार में कमी करके किसानों और श्रमिकों को आर्थिक राहत देने का प्रयास किया।
  • संयुक्त प्रांत में अक्टूबर 1939 में काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया, जिसके अंतर्गत आगरा और अवध दोनों ही प्रान्तों के काश्तकारों को जोतों के लिए पूर्ण वंशानुगत अधिकार दिये गए थे।
  • बिहार में नज़राना (जबरन उपहार) और बेगार (जबरन अवैतनिक श्रम) जैसे सभी अवैध आहरणों को समाप्त कर दिया गया।
  • उड़ीसा में काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया जिसमें जोत के स्वामित्व हस्तांतरण का अधिकार प्रदान किया गया था, बकाया लगान पर ब्याज कम कर दिया गया।
  • कई प्रांतों में पुलिस की शक्तियों को नियंत्रित किया गया।

हालाँकि इसी युग में कांग्रेस में गंभीर दुर्बलताएँ भी उभर कर सामने आईं, जैसा नीचे वर्णित किया गया है:

  • वैचारिक और व्यक्तिगत दोनों आधारों पर गुटसंबंधी विरोध था। उदाहरण के लिए, मध्य प्रांत में कांग्रेस मंत्रालय और विधानसभा दल के भीतर गुटबंदी तथा वामपंथ एवं दक्षिणपंथ के मध्य वैचारिक विभाजन था।
  • हरिजन पत्रिका में गांधीजी द्वारा रेखांकित किया गया था कि कांग्रेस के पदस्थ नेताओं में पद का दुरूपयोग बढ़ रहा है और भ्रष्टाचार में वृद्धि हो रही है।
  • नौकरियों और व्यक्तिगत लाभ के पदों के लिए प्रतिस्पर्धा हो रही थी।
  • कई कांग्रेसियों ने सत्ता प्राप्ति के लालच में जातिवाद का मार्ग प्रशस्त करना आंरभ किया।
  • फर्जी सदस्यता की कार्यप्रणाली का उद्धभव एवं विकास होने लगा।

इन सीमाओं के बावजूद, कांग्रेस मंत्रालयों ने अट्ठाईस महीनों तक अपने अच्छे कार्यों को जारी रखा और द्वितीय विश्व युद्ध द्वारा प्रस्तुत किए गए राजनीतिक संकट के कारण अक्टूबर 1939 में त्यागपत्र दे दिया। इस अवधि ने आगामी वर्षों में स्वतंत्रता संग्राम के लिए सभी वर्गों को प्रभावित और प्रेरित किया क्योंकि उन्हें स्व-शासन का महत्व ज्ञात हो गया था। इसने आगे उस मिथक को भी समाप्त कर दिया, जिससे अंग्रेजों ने भारतीयों को अपने अधीन बना रखा था कि भारतीय स्वयं को शासित करने के योग्य नहीं हैं।

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