आत्म-संदेह और नेतृत्व : सहयोग तथा बाधा दोनों उत्पन्न सकता है

प्रश्न: आत्म संदेह नेतृत्व में सहयोग तथा बाधा दोनों उत्पन्न सकता है। उदाहरण सहित चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • दिए गए संदर्भ में आत्म-संदेह और नेतृत्व को परिभाषित कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि यह किस प्रकार नेतृत्व में सहयोग कर सकता है।
  • अन्य पहलू जैसे- यह किस प्रकार नेतृत्व में बाधा उत्पन्न कर सकता है- की भी चर्चा कीजिए।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

आत्म-संदेह को किसी व्यक्ति की क्षमताओं एवं कौशल में आत्मविश्वास की कमी से उत्पन्न असुरक्षा, अनिश्चितता तथा आत्म-घृणा की भावना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। दूसरी ओर, नेतृत्व वह कला है जिसके अंतर्गत लोगों के एक समूह को साझा लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाता है।

प्रारम्भ में, आत्म-संदेह तथा नेतृत्व के मध्य सामंजस्य स्थापित करना कठिन होता है। जॉर्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन जैसे महान नेताओं ने भी बड़ी जिम्मेदारियों को संभालने से पूर्व आत्म-संदेह के क्षणों का अनुभव किया। परंतु उन्होंने आत्म-संदेह को अपनी शक्ति में परिवर्तित कर लिया। आत्म-संदेह निम्नलिखित तरीकों से नेतृत्व में सहायता कर सकता है:

  • यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक निर्णय पर कार्यान्वयन से पूर्व पर्याप्त तैयारी और विचार-विमर्श किया जाए। इस प्रकार, यह आवश्यक कौशल को विकसित करने हेतु प्रोत्साहित करता है तथा परिणामों को लेकर सतर्क रहने के लिए प्रेरित करता है।
  • यह जल्दबाजी में निर्णय लेने की स्थिति का परिहार करता है। साथ ही निर्णयों द्वारा वांछित परिणामों को प्राप्त करने में विफल होने की परिस्थिति से पूर्व ही उनका उपचार किया जा सकता है।
  • कुछ हद तक, यह स्वयं पर अविश्वास के बदले टीम के अन्य सदस्यों में विश्वास विकसित करने और गंभीरता से उनके विचारों पर विचार-विमर्श करने में सहायता कर सकता है।
  • यह प्रत्येक व्यक्ति को परिस्थित्रियों के प्रति विनम्र, सुग्राही तथा अधिक अनुकूलशील बनाता है।

परंतु नकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ, आत्म-संदेह प्रभावी नेतृत्व में निम्नलिखित तरीकों से व्यवधान भी उत्पन्न कर सकता है:

  • आत्म-संदेह द्वारा उत्पन्न अनिश्चितता एवं विलंब के कारण अवसरों को प्राप्त करने में चूक हो सकती है।
  • अत्यधिक सतर्कतापूर्ण दृष्टिकोण रचनात्मकता एवं नवाचार की संभावना को न्यून कर देता है।
  • नेतृत्वकर्ता एवं टीम के अन्य सदस्यों द्वारा अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग न करने के कारण मानव पूंजी उल्लेखनीय रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है।
  • अधीनस्थों में उनके नेतृत्वकर्ता के प्रति विश्वास में कमी हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप उनके विचारों, नियमों तथा _आदेशों का पालन नहीं किया जा सकता है।
  • आत्म-संदेह से लिप्त व्यक्ति में दूसरों पर संदेह करने की भी प्रवृत्ति पाई जाती है और अपनी टीम पर विश्वास नहीं करने से बेहतर परिणामों को प्राप्त नहीं किया जा सकता हैं।

एक नेतृत्वकर्ता में आत्म-संदेह का होना हानिकारक सिद्ध हो सकता है। वास्तव में आत्म-संदेह के द्वारा झूठी विनम्रता या आगे बढ़ने में विफलता की बजाए आसपास की वास्तविकता के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार, एक संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है। इसलिए, नेतृत्व को अपने निर्णयों एवं कार्यों के प्रति ‘सतर्क’ रहने की तुलना में अधिक ‘जागरूक’ होने का प्रयास करना चाहिए।

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