दोहरे तुलन पत्र (ट्विन बैलेंस शीट) समस्या की संक्षेप में चर्चा

प्रश्न: NPAS एवं धोखाधडी की बढ़ती घटनाओं के चलते, दोहरे तुलन पत्र (ट्विन बैलेंस शीट) की समस्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है। इस मुद्दे पर टिप्पणी कीजिए तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा और दीर्घकालिक संवृद्धि के लिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता में एक गेम चेन्ज़र होने की क्षमता का विश्लेषण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • दोहरे तुलन पत्र (ट्विन बैलेंस शीट) समस्या की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
  • संक्षेप में वर्णन कीजिए कि हाल ही में इस समस्या में किस प्रकार वृद्धि हुई है।
  • दिवाला और दिवालियापन संहिता 2016 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए बताइए की यह किस प्रकार उपर्युक्त समस्या का समाधान करने में सहायता करेगा।
  • अंत में सकारात्मक निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

दोहरे तुलन पत्र (ट्विन बैलेंस शीट) की समस्या अति ऋणग्रसित एवं संकटग्रस्त कंपनियों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बढ़ती NPA की समस्या को संदर्भित करती है:

  • कंपनियों पर ऋण संचय की अधिकता के कारण वे ऋणों पर ब्याज का भुगतान करने में असमर्थ हैं।
  • बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्तियां (NPAS) भारत की कुल बैंकिंग व्यवस्था का 9% हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का NPA लगभग 12.1% है। कंपनियों द्वारा मूल धन एवं ब्याज के भुगतान की असमर्थता के कारण बैंकों के समक्ष भी समस्या उत्पन्न हो गयी है।

यह देश में निजी निवेश को अवरुद्ध करता है, जिसके कारण अन्य सभी क्षेत्रों का विकास भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है।

बैंक के बहीखातों में अशोध्य ऋण (Bad Loan) के कारण पूंजी क्षरण के जोखिम में वृद्धि हुई है एवं NPAS ने बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता को बाधित किया है। ऋण (credit) आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है तथा इसकी कमी आर्थिक संकुचन/शिथिलता की स्थिति को उत्पन्न कर सकती है। दूसरी ओर, पंजाब नेशनल बैंक, किंगफिशर इत्यादि जैसे धोखाधड़ी के मामलों ने भी बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता को बाधित किया है तथा इनके परिणामस्वरूप बैंक ऋण प्रदान करने के लिए अधिक इच्छुक नहीं हैं।

इस संदर्भ में, सरकार द्वारा दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) 2016 को जारी किया है, जो निम्नलिखित प्रकार से समाधान प्रक्रिया में सहायता करेगी:

  • सभी लेनदारों पर लागू: यह संहिता घरेलू और विदेशी लेनदारों के साथ एक समान व्यवहार करती है।
  • व्यवहार्य होने पर परिसंपत्तियों की शीघ्र पहचान एवं त्वरित समाधान: पेशेवर 180 दिनों के भीतर समाधान योजनाओं को प्रस्तुत करने हेतु बाध्य हैं।
  • फास्ट ट्रैक इन्सोल्वेंसी: यदि एक बार फास्ट ट्रैक इन्सोल्वेंसी की प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिए अभियोजन प्राधिकरण में आवेदन किया जाता है तो पूरी प्रक्रिया को इसके प्रारंभ होने की तिथि से 90 दिनों के भीतर समाप्त किया जाएगा तथा जिसमें केवल एक बार 45 दिनों का विस्तार प्रदान किया जा सकता है।
  • सीमा-पारीय दिवालियापन: यह संहिता सीमा-पारीय दिवालियापन से सम्बन्धी प्रावधान भी प्रदान करती है।
  • प्रक्रिया में पारदर्शिता: भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) की स्थापना संहिता के प्रशासन में सुशासन एवं पारदर्शिता के प्रोत्साहन हेतु की गई है।
  • प्रबंधन में परिवर्तन: संहिता के अंतर्गत रुग्ण/समस्याग्रस्त कंपनी के प्रबंधन में परिवर्तन का प्रावधान किया गया है।

किंतु IBC की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसके लागू होने के पश्चात सरकार, न्यायालय, न्याधिकरण तथा भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) कितनी सजगता के साथ उनके दायरे में उत्पन्न होने वाले आरंभिक स्तर के मुद्दों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। यह भी चिंता व्यक्त की गई है की बैंकों को भुगतानों में 40-50% तक की हानि हो सकती है। इसके अतिरिक्त, दिवालियापन संहिता के अंतर्गत स्थापित सूचना इकाइयों द्वारा एकत्रित ऋण और डिफाल्ट से संबंधी संवेदनशील वित्तीय जानकारी को भी निष्पक्ष प्रक्रिया एवं बेहतर वित्तीय निर्णयन हेतु संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है।

IBC को सहायता प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा FRDI बिल, 2017 भी पेश किया गया है। यह IBC के समान है, परन्तु इसका सम्बन्ध केवल वित्तीय क्षेत्रक की कंपनियों से ही है। यदि दोनों का कार्यान्वयन प्रभावी ढंग से किया जाए, तो ये भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा और दीर्घकालिक विकास के लिए एक गेम चेन्ज़र सिद्ध हो सकता है।

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