केस स्टडीज : किसानों और राज्य के हितों के बीच वास्तविक मतभेद

प्रश्न : आप एक ऐसे जिले में जिला मजिस्ट्रेट के रूप में कार्य कर रहे हैं जो बार-बार पड़ने वाले सूखे के प्रति प्रवण है। जल की कमी का मुद्दा वर्ष प्रति वर्ष गंभीर होता जा रहा है। यहां तक कि उच्च वर्षा वाले वर्षों के दौरान भी जिले में कृषि उद्देश्यों की पूर्ति हेतु जल की भारी कमी देखी गई है, ऐसा मुख्य रूप से अधिक जल उपयोग वाली फसलों की कृषि के कारण हुआ है। यह स्पष्ट है कि जिले के पिछड़ेपन का एक मुख्य कारण जल की कमी है। इसे पहचानते हुए, राज्य सरकार ने ऐसी फसलों की कृषि हेतु प्रदत्त कुछ प्रोत्साहनों को वापस लेने और इस क्षेत्र की कृषि-जलवायविक परिस्थितियों के लिए अधिक उपयुक्त फसल प्रतिरूप को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया है। हालांकि, ऐसी परिस्थितियों में अपनी आर्थिक स्थिति बिगड़ने का अनुमान लगाते हुए, किसानों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने का मार्ग चुना है। सरकार के ऐसे सोद्देश्यपूर्ण कदम के बावजूद, किसानों का मानना है कि राज्य प्रशासन की प्रतिक्रिया किसान विरोधी और क्रूर है। इस परिस्थिति को देखते हुए, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(a) क्या आप मानते हैं कि जिले के किसानों और राज्य के हितों के बीच एक वास्तविक मतभेद है?

(b) जिले के किसानों के हित में आपको किन तात्कालिक कदमों का समर्थन करना चाहिए?

दृष्टिकोण

  • दी गई केस स्टडी के सार को रेखांकित करते हुए उत्तर आरंभ कीजिए।
  • उपर्युक्त केस स्टडी में सम्मिलित विभिन्न प्रमुख हितधारकों का उल्लेख कीजिए।
  • उपर्युक्त केस स्टडी में सम्मिलित नैतिक दुविधाओं को स्पष्ट कीजिए। 
  • उपर्युक्त मुद्दे का समाधान करने हेतु अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय सुझाइए।
  • एक आशावादी टिप्पणी के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

भारत मानसून पर निर्भर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। अतः मॉनसून की अनिश्चितता के कारण सूखा, कृषक संकट, सामाजिक अशांति और आर्थिक पिछड़ेपन जैसी परिस्थितियां प्रशासन के समक्ष निरंतर चुनौतियां उत्पन्न करती हैं।

दिए गए मामले के प्रमुख हितधारकों में सम्मिलित हैं: जिला मजिस्ट्रेट, जिले के कृषक, बैंकिंग संस्थान, स्थानीय निवासी, कृषि उपज पर निर्भर व्यवसायी, राज्य सरकार और पर्यावरण।

(a) प्रस्तुत केस स्टडी में, जल की कमी एक ऐसा मुद्दा है जो उत्तरोत्तर कृषक संकट के तीव्र होने का प्रमुख कारण है। इसके साथ ही, राज्य सरकार द्वारा किसानों को किसी विशेष फसल के लिए प्रदत्त प्रोत्साहनों को वापस लेने का निर्णय किया गया है, जिसे किसान विरोधी निर्णय के रूप में देखा जा रहा है।

लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति होने के कारण राज्य से स्वतः ही लोगों के सर्वोत्तम हित में निर्णय लेने की अपेक्षा की जाती है। इस प्रकार, राज्य और किसानों के हितों के बीच कोई टकराव नहीं हो सकता। संघर्ष वास्तविक से अधिक अवधारणात्मक (सोच में भिन्नता के कारण) है। किसान हित में तात्कालिक और राज्य के हित में दीर्घकालिक विचार के कारण यह अवधारणात्मक है।

तात्कालिक रूप से, किसान किसी अन्य फसल को अपनाना नहीं चाहेंगे, क्योंकि ऐसा करना आर्थिक रूप से कम लाभप्रद हो सकता है। दूसरी ओर, राज्य का संबंध जिले के सभी लोगों के हितों से होगा – न कि केवल उन किसानों से जो अत्यधिक जल दोहन वाली फसल की कृषि कर रहे हैं। चूंकि कृषि द्वारा जल का उपभोग सर्वाधिक है, अतः किसानों द्वारा लिए गए निर्णयों के कारण शेष आबादी नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। दीर्घकाल में प्रतिफल में अनिश्चितता और कमी होने के कारण किसानों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव होगा। इसलिए, राज्य द्वारा किसानों के वृहद कल्याण के लिए कदम उठाया गया है। भले ही यह निर्णय लोकप्रिय नहीं है किन्तु अपने दृष्टिकोण और दूरदर्शिता के कारण अधिक न्यायसंगत और प्रगतिशील है।

इस मामले में सरकार का निर्णय ‘स्थितिपरक मूल्यों’ के बजाय ‘स्थायी मूल्यों’ द्वारा निर्देशित है और यह उचित भी है। यह सुनिश्चित करेगा कि इस क्षेत्र की कृषि-जलवायविक परिस्थितियों के लिए अधिक उपयुक्त फसल प्रतिरूप का अनुसरण किया गया है। सतत कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करने से न केवल अपेक्षाकृत दीर्घ अवधि तक किसानों को आय सहायता प्राप्त होगी, बल्कि जन सामान्य के कल्याण और पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।

(b) सरकार द्वारा लिया गया निर्णय सुविचारित है किन्तु इसके संदर्भ में जन सामान्य को भलीभांति जागरुक नहीं किया गया। तात्कालिक लोक हित विरोधों को नियंत्रित करने, खाद्य और जल संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा शीघ्रातिशीघ्र जिले के कृषि प्रतिरूप को अधिक उपयुक्त कृषि-जलवायविक प्रतिरूप में स्थानांतरित करने में निहित हैं। इन उद्देश्यों के साथ, निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  • यह सुनिश्चित करना कि ऐसे समय में भोजन और जल की आपूर्ति लोगों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो।
  • केंद्र सरकार के साथ-साथ पड़ोसी जिलों से तत्काल सहायता की मांग की जानी चाहिए।
  • प्रदर्शनकारियों के लिए भी जल का प्रबंध करना: विरोध प्रदर्शन करना उनका अधिकार है तथा राज्य का कर्तव्य है कि वह इस बात को सुनिश्चित करे कि किसी भी व्यक्ति की भूख अथवा प्यास से मृत्यु न हो।
  • प्रदर्शनकारी किसानों को शांत करने और सरकार की योजनाओं एवं प्रस्तावों के बारे में उन्हें प्रभावी ढंग से जानकारी प्रदान करने के लिए सभी संभव उपाय करना। साथ ही विरोध प्रदर्शन को हिंसक बनाने का प्रयत्न करने वाले उपद्रवियों से कठोरता से निपटना।
  • कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन करने और किसानों की स्वीकार्य मांगों के अंतिम उद्देश्य के आधार पर एक विस्तृत योजना तैयार करना।
  • यह योजना किसान नेताओं की भागीदारी से निर्मित की जाए ताकि यह अधिक स्वीकार्य हो।
  • किसानों को बुवाई, जुताई, कटाई, बीमा, विपणन और उनकी उपज की बिक्री के संबंध में प्रत्येक संभव सहायता का आश्वासन प्रदान करना।
  • संसाधनों के कुशल उपयोग, उच्च उत्पादकता को सुनिश्चित करने के तरीकों के बारे में जानकारी का प्रसार करने आदि क लिए कृषि वैज्ञानिकों व कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ सहयोग बढ़ाना।

दीर्घकालिक रूप से, प्रशासन को अधिक पारदर्शी बनाना होगा और निर्णय निर्माण से पूर्व सभी हितधारकों को शामिल करना होगा ताकि निर्णय की स्वीकार्यता अधिक हो। उपर्युक्त उपायों से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों का निपटान एक ऐसे प्रभावी तरीके से किया जाए जो न केवल उनके लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी हितकारी हो।

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