प्राचीन भारत में श्रेणियों की अवधारणा की व्याख्या : बाजार के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने में उनकी भूमिका

प्रश्न: श्रेणियाँ बेहतर और स्थिर संस्थाएं थी, जिनकी न केवल अपने सदस्यों के मध्य बल्कि समाज में भी काफी नैतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा थी। इस कथन के आलोक में, प्राचीन भारत में श्रेणियों या गिल्ड्स के महत्वपूर्ण पहलुओं की व्याख्या कीजिए। (150शब्द)

दृष्टिकोण

  • प्राचीन भारत में श्रेणियों की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
  • बाजार के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने में उनकी भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • सामाजिक पहलुओं पर उनके प्रभावों की चर्चा कीजिए।

उत्तर

गिल्ड्स या श्रेणियाँ शिल्पकारों के पेशेवर निकाय होते थे जिनके अंतर्गत जौहरी, बुनकर, कुम्हार, हाथीदांत पर नक़्क़ाशी करने वाले और यहां तक कि नमक-निर्माता भी सम्मिलित होते थे। ये सभी व्यापारी उत्पादन की गुणवत्ता को नियंत्रित करने, एक बेहतर व्यावसायिक नैतिकता स्थापित करने तथा उचित मजदूरी एवं कीमतों को निर्धारित करने के लिए एकजुट होते थे। श्रेणियों की शुरुआत व्यापार और वाणिज्य की देखभाल करने हेतु पूर्व-मौर्य काल में मूलभूत रूप से आर्थिक इकाइयों के रूप हुई थी, हालांकि वे बहुउद्देशीय संगठनों के रूप में विकसित हुए जिन्होंने लोकतांत्रिक शासन की संस्था, श्रमिक संघ व न्यायालय के साथ-साथ तकनीकी संस्थानों के रूप में भी कार्य किया। इस प्रकार, उन्हें अपने सदस्यों के साथ-साथ संपूर्ण समाज में उल्लेखनीय नैतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी।

श्रेणियों के अन्य महत्वपूर्ण पहलू निम्नलिखित हैं:

  • उनके द्वारा व्यवसाय के स्थानीयकरण के साथ-साथ व्यवसायों के वंशानुगत चरित्र को भी मान्यता प्रदान की गई।
  • उन्होंने सामूहिक कार्यप्रणाली को बढ़ावा दिया, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से कार्य करने के विपरीत एक निकाय के रूप से कार्य करना आर्थिक रूप से बेहतर था। एक निगम के रूप में कार्य करने पर अन्य सदस्यों से सहायता प्राप्त की जा सकती थी।
  • प्रत्येक श्रेणी की स्वयं की एक पेशेवर संहिता, कार्य संचालन व्यवस्था, कर्त्तव्य एवं दायित्व तथा लोकतांत्रिक तरीके से पालन किए जाने योग्य धार्मिक रीति-रिवाज भी होते थे।
  • उनके द्वारा बैंकिंग संबंधी कार्य, जैसे कि लोगों से जमा स्वीकार करना और ऋण प्रदान करना इत्यादि भी किए जाते थे।
  • उन्होंने परोपकारिता को कर्त्तव्य संबंधी एक विषय के रूप में माना। उनसे अपेक्षित था कि वे अपने लाभ के एक भाग का उपयोग सभा-कक्षों, जलसंभरों, तीर्थस्थानों, तालाबों और उद्यानों के संरक्षण व रख-रखाव तथा साथ ही विधवाओं, निर्धनों और निराश्रितों की सहायता के लिए भी करेंगे।
  • उन्होंने राजाओं द्वारा किए जाने वाले उत्पीड़न तथा सामान्य रूप से किये जाने वाले कानूनी भेदभाव के विरुद्ध व्यापारियों और शिल्पकारों के हितों की रक्षा की।
  • उन्होंने व्यापारियों को एक घनिष्ठ समुदाय के रूप में स्थापित किया और प्रशिक्षित श्रमिकों के कार्य करने हेतु अनुकूल परिवेश प्रदान किया गया।
  • श्रेणियों के प्रमुख शाही न्यायालयों में उपस्थित थे तथा संभवतः उन्हें कुछ आधिकारिक प्राधिकार भी प्रदान किए गए थे। गुप्त काल के कुछ साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि विभिन्न श्रेणियों के प्रमुख जिला प्रशासन के सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्यरत थे।

इस प्रकार, श्रेणियों के साथ संबद्धता ने इनके सदस्यों की सामाजिक प्रस्थिति में वृद्धि की। इसे रामायण के इस सन्दर्भ में विस्तृत लेखों और गुप्त काल के साथ-साथ तमिल संगम साहित्य के विभिन्न नाटकों के माध्यम से देखा जा सकता है। श्रेणियाँ एक प्रकार से अद्वितीय सामाजिक नवाचार थीं, जिनके द्वारा आर्थिक और सामाजिक दोनों प्रकार के उपयोगी कार्यों का संचालन किया जाता था। संभवतः ये विश्व की सबसे प्रारंभिक लोकतांत्रिक संस्थाएँ थीं।

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