देश के एकीकरण में सरदार पटेल और उनकी रणनीतियां
प्रश्न: रियासतों का सुगम एकीकरण सुनिश्चित करके, सरदार पटेल ने देश के इतिहास के एक नाजुक और सर्वाधिक अशांत वक्त में भारत के बाल्कनीकरण को रोका। चर्चा कीजिए।
दृष्टिकोण
- उत्तर के आरम्भ में स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर विद्यमान परिस्थितियों और रियासतों के एकीकरण की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
- देश के एकीकरण में सरदार पटेल और उनकी रणनीतियों द्वारा निभाई गई भूमिका की चर्चा कीजिए।
- इसके अतिरिक्त, जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर के कठिन मामलों का उल्लेख कीजिए।
- तदनुसार निष्कर्ष दीजिए।
उत्तर
एक कठिन संघर्ष के पश्चात् स्वतंत्रता की पूर्व संध्या का आगमन विभाजन, सांप्रदायिक दंगों और शरणार्थी संकट की जटिल समस्याओं के साथ हुआ। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के प्रावधानों के अनुसार, रियासतें भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित होने अथवा इनसे अलग रहने के लिए स्वतंत्र थीं। इस प्रावधान ने देश के बाल्कनीकरण हेतु पर्याप्त अवसर प्रदान किए। इसके अतिरिक्त, भारत एक अनुपयुक्त औपनिवेशिक मशीनरी तथा संसाधनों के अभाव से ग्रसित था। इस अवधि में, 550 से अधिक रियासतों को एकीकृत करना अत्यंत कठिन कार्य था, जिसे सरदार पटेल और उनकी टीम द्वारा पूर्ण किया गया। स्वतंत्रता पूर्व भारत का 48% क्षेत्र इन रियासतों के अंतर्गत था। इनमें देश की कुल जनसंख्या का 28% हिस्सा निवास करता था।
अपनाई गयी कूटनीतिक रणनीतियां
- पटेल ने अपने सचिव वी पी मेनन और इसके पश्चात् वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के साथ मिलकर राजाओं की राष्ट्रभक्ति को जागृत किया। उन्होंने भारत में सम्मिलित न होने की स्थिति में रियासतों में अराजकता फैलने की संभावना के प्रति आगाह किया तथा भारत में सम्मिलित होने के लिए उन राजाओं को सहमत करने हेतु प्रयास किया।
- उनकी टीम ने एक उपकरण के रूप में यथास्थिति समझौते (Standstill Agreement) का कुशलतापूर्वक उपयोग किया। इस समझौते में पूर्व-विद्यमान समझौतों, प्रशासनिक कार्यप्रणाली और इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (इसके द्वारा शासक भारत सरकार को कुछ विषयों पर नियंत्रण देने हेतु सहमत हुए थे) को जारी रखने का वचन दिया गया था।
- उन्होंने ‘प्रिवी पर्स’ की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसके तहत शाही परिवारों को भारत के साथ विलय हेतु किए गए समझौते के लिए भुगतान किया जाना था।
हालाँकि, तीन महत्वपूर्ण राज्य अभी भी सम्मिलित नहीं हुए थे: जूनागढ़ पाकिस्तान में विलय होने की घोषणा कर चुका था, हैदराबाद स्वतंत्र रहना चाहता था और कश्मीर अनिर्णय की स्थिति में था। पटेल ने इन तीनों के लिए अलग-अलग रणनीतियां अपनाईं:
- जूनागढ़- जूनागढ़ के नवाब द्वारा पाकिस्तान में विलय की घोषणा के पश्चात् जूनागढ़ के लोग नवाब के शासन के विरुद्ध खड़े हो गए और उसे कराची से भागने के लिए विवश कर दिया। पटेल ने जनमत संग्रह की मांग की। इस मांग को पाकिस्तान द्वारा अस्वीकृत करने पर पटेल ने राज्य का विलय करने के लिए सेना भेजी। बाद में, एक जनमत संग्रह का आयोजन किया गया, जिसमें 90% से अधिक लोगों ने भारत का चयन किया।
- हैदराबाद- हैदराबाद के नवाब ने भारत में सम्मिलित होने से इंकार कर दिया और अपनी जनता पर हिंसा का प्रयोग लिया। इसके पश्चात् पटेल ने राज्य की मुक्ति और एकीकरण का नेतृत्व करने के लिए भारतीय सेना को भेजा जिसे ‘ऑपरेशन पोलो के नाम से जाना जाता है।
- कश्मीर- कश्मीर के बारे में पाकिस्तान के उद्देश्य को जानकर, पटेल ने कश्मीर पर कबीलाई समुदाय के पाकिस्तान समर्थित आक्रमण का उपयोग भारत के लाभ हेतु किया। इस आक्रमण का सामना करने के लिए महाराजा ने भारत से सैन्य सहायता की मांग की एवं विलय करने का प्रस्ताव रखा और इस प्रकार एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए गए।
यदि सरदार पटेल की प्रशासनिक दक्षता, राजनीतिक नेतृत्व कौशल, कूटनीति और व्यावहारिकता नहीं होती तो रियासतों के एकीकरण का मुद्दा देश के बाल्कनीकरण का कारण बन सकता था। सरदार पटेल की भूमिका का स्मरण करने के लिए 31 अक्टूबर को उनकी जयंती पूरे देश में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाई जाती है।
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