राजनीतिक सत्ता : समालोचनात्मक चर्चा

प्रश्न: राजनीतिक सत्ता के अनुसरण में प्राय: साधनों से समझौता किया जाता है, जिससे अनैतिक व्यवहारों के प्रति प्रतिस्पर्धात्मक निर्भरता पैदा होती है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक विश्वास का क्षरण होता है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • राजनीतिक सत्ता के अनुसरण में साधनों से समझौता करने से संबद्ध मुद्दों का संक्षिप्त परिचय दीजिए। 
  • सार्वजनिक विश्वास पर अनैतिक साधनों के प्रयोग के संभावित निहितार्थों को रेखांकित कीजिए। 
  • सार्वजनिक विश्वास के पुनर्सजन हेतु उपायों का सुझाव देते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

नैतिक विमर्श में “साधन” को भी “साध्य” के समान महत्वपूर्ण माना जाता है। विभिन्न विचारधारा वाले राजनीतिक दल देश के कल्याणार्थ अपने दृष्टिकोण को क्रियान्वित करने (या कम से कम, क्रियान्वित करने का दिखावा करने) का प्रयास करते हैं और इस साध्य की पूर्ति हेतु निर्वाचक पद्धति से सत्ता प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण साधन है। इस प्रकार एक लोकतंत्र में राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति अत्यंत प्रतियोगितापूर्ण प्रतिस्पर्धा बन गई है। उल्लेखनीय है कि किसी भी कीमत पर विजयी होना सामान्यतया सभी दलों की रणनीति होती है।

इस प्रतिस्पर्धा में तथाकथित साध्य (अर्थात् वे उद्देश्य जिस हेतु सत्ता हेतु दावा प्रस्तुत किया जाता है) उचित हो सकते हैं, परन्तु सत्ता की प्राप्ति हेतु प्रयुक्त साधन प्राय: अनैतिक, अनुचित व कपटपूर्ण होते हैं। सामान्यतया दल या तो वायदों (भावनात्मक या वित्तीय) के माध्यम से मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं या धमकी अथवा दबाव के द्वारा मतदाता को अपने पक्ष में मतदान करने हेतु बाध्य करते हैं।

दोनों उपाय निर्वाचकों और साथ ही राज्य की दुर्बलताओं पर आधारित होते हैं। राजनीतिक दल मतदाताओं को आकर्षित करने हेतु प्रतिस्पर्धात्मक रूप से मिथ्यापूर्ण वायदों को प्रस्तुत करते हैं। अधिकांश मतदाताओं के पास इन वायदों का विस्तृत विश्लेषण करने हेतु पर्याप्त सामर्थ्य, साधन अथवा समय नहीं होता। जो विश्लेषण करने में सक्षम होते हैं तथा जिन्हें मिथ्या बोध हो जाता है वे तत्काल निर्वाचन प्रक्रिया से विरक्त हो सकते हैं। वे व्यक्ति जो झूठे वायदों के जाल में फंसकर मत देते हैं कुछ समय पश्चात् निर्वाचन प्रक्रिया से विरक्त जाते हैं। इन दोनों मामलों में, निर्वाचन प्रक्रिया में सार्वजनिक विश्वास का क्षरण हो जाता है।

इसी प्रकार, धन एवं बाहुबल के प्रयोग के माध्यम से मतदाताओं का अवपीड़न लोगों के विश्वास और निर्वाचन प्रक्रिया में सहभागी बनने की उनकी इच्छा को क्षति पंहुचाता है। अनैतिक साधनों का प्रयोग, जैसे कि ज्ञात आर्थिक अपराधियों से अनुदानों की स्वीकृति, निर्वाचित होने के पश्चात् प्रतिपूर्ति की मांग के रूप में निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।

अनैतिक साधनों के अन्य पहलुओं में शामिल हैं- विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष के नेताओं पर व्यक्तिगत आक्षेप तथा सत्ता पक्ष के नेताओं द्वारा भी विपक्ष के प्रति किया गया इसी प्रकार का व्यवहार, दलीय स्वार्थपूर्ति हेतु सरकारी तंत्र का दुरुपयोग तथा घृणित एवं मिथ्यापूर्ण प्रचार-प्रसार जो जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के आधार पर विभाजन में वृद्धि करते हैं। इससे निर्वाचन प्रक्रिया के स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होने के मूल उद्देश्य का ह्रास होता है। परिणामस्वरूप सार्वजनिक विश्वास का क्षरण होता है, जो निम्नलिखित के रूप में अभिव्यक्त होता है:

  • यह निर्वाचन प्रक्रिया में लोगों की सहभागिता में ह्रास का कारण बन सकता है।
  • इसने निर्वाचित प्रतिनिधियों और लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को कम किया है।
  • भविष्य में सरकार के निर्णयों एवं कार्यों में विश्वसनीयता का अभाव होगा तथा वे अल्प स्वीकार्य हो सकते हैं।
  • सुशिक्षित एवं प्रबुद्ध व्यक्तियों की ‘निर्वाचक राजनीति’ में प्रवेश हेतु रुचि कम होती है तथा ‘साधनों से समझौता’ राजनीति में शामिल न होने के उनके संकल्प को और मजबूत करता है।
  • इससे आपराधिक एवं कपटी तत्व राजनीति में शामिल होने हेतु प्रोत्साहित होते हैं।
  • राजनेता अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं तथा भले ही समाज में उनकी प्रशंसा न की जाती हो पर उनका व्यापक रूप से अनुसरण किया जाता है। अतः जनसामान्य उनके अनैतिक व्यवहार से व्यापक रूप में प्रभावित होता है।

उपर्युक्त कारणों से महात्मा गांधी द्वारा ‘सिद्धांतविहीन राजनीति’ को सात अपकर्मों में से एक के रूप में वर्णित किया गया था। नैतिकता विहीन राजनीति एक स्वस्थ समाज के विकास को अवरुद्ध करती है। इस समस्या के समाधान हेतु लोगों, निर्वाचित प्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों की ओर से सामूहिक कार्यवाही समय की आवश्यकता है।

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