भारत में ग्रामीण समाज पर वैश्वीकरण के प्रभाव : वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों से निपटने हेतु रणनीतियां
प्रश्न: भारत में ग्रामीण समाज पर वैश्वीकरण के प्रभाव का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। साथ ही, वैश्वीकरण द्वारा प्रस्तुत किए गए अवसरों का दोहन करने हेतु कुछ रणनीतियों की रुपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
दृष्टिकोण
- वैश्वीकरण की अवधारणा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- भारत में ग्रामीण समाज पर वैश्वीकरण के प्रभाव का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों से निपटने हेतु कुछ रणनीतियों की रुपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
वैश्वीकरण से तात्पर्य वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी, प्रौद्योगिकी, विचारों, सूचनाओं तथा व्यक्तियों के व्यापक सीमा-पार विनिमय से है। भारत द्वारा LPG (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) सुधारों को अपनाने के पश्चात 1990 के दशक के प्रारंभ में महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन किए गए। इसने उत्पादकता, विकास, आय वितरण, प्रौद्योगिकियों, आजीविका की सुरक्षा तथा नीतियों को प्रभावित करते हुए भारतीय समाज में सभी व्यक्तियों के कल्याण की प्रतिबद्धता अभिव्यक्त की। हालाँकि, इसके साथ वैश्वीकरण ने ग्रामीण भारतीय समाज के लिए कई वास्तविक खतरें भी उत्पन्न किए।
भारत में ग्रामीण समाज पर वैश्वीकरण के प्रभावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कृषि: वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप, किसानों को पारंपरिक फसलों के स्थान पर निर्यात उन्मुख नकदी फसलों के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया गया। कृषि आदानों (inputs) के कुशल उपयोग ने कृषि को आर्थिक रूप से व्यवहार्य तथा लाभदायक बना दिया है। हालांकि, विकासात्मक दबाव ने कृषि भूमि जोतों के आकार को कमी तथा कृषि के व्यावसायीकरण ने किसानों की निजी अभिकर्ताओं पर निर्भरता में वृद्धि की है। इसके अतिरिक्त कृषि सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) के प्रतिबंधों ने राज्यों द्वारा किसानों को प्रदान की जाने वाली सहायता में अवरोध उत्पन्न किया है।
- आर्थिक: एक ओर, इसके द्वारा भारत के निर्मित उत्पादों के लिए वैश्विक बाजार को विस्तारित किया है और नई विनिर्माण प्रौद्योगिकियों को प्रस्तुत किया है। हालाँकि, दूसरी ओर विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं छोटे भारतीय उद्यमों के मध्य असमान प्रतिस्पर्धा के कारण भारत के छोटे एवं मध्यम स्तर के ग्रामीण उद्योग को अत्यधिक प्रतिकूल रूप में प्रभावित किया है। वैश्वीकरण ने ग्रामीण युवाओं को विदेशों में कम कुशल नौकरियों (less skilled job) के अवसरों की खोज करने हेतु भी प्रेरित किया है।
- प्रवास: वैश्वीकरण ने अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी को कम करने तथा शहरी क्षेत्रों में नौकरियों के सृजन में योगदान दिया है। हालांकि, इसने ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यबल को कम कर दिया है। 2011 से 2016 के मध्य लगभग 9 मिलियन लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों (अधिकांशतः) से शहरी क्षेत्रों में प्रवास किया। इसके अतिरिक्त ये नौकरियां सामान्यतः अल्प-भुगतान, जोखिमपूर्ण तथा अनौपचारिक बाजार से संबंधित होती हैं।
- डिजिटल विभाजन: वैश्वीकरण ने ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया है। हालाँकि, शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट का असंतुलित प्रवेश एवं पहुँच ने मौजूदा डिजिटल विभाजन को और अधिक व्यापक बना दिया है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य: सांस्कृतिक अवरोधों की समाप्ति से ग्रामीण भारत में भी संकीर्ण-मानसिकता क्षीण हुई है। हालांकि, इस प्रकार के विचार प्रायः ग्रामीण भारतीय समाज की सामाजिक नैतिकता के साथ संघर्षरत रहते हैं, जिस कारण इससे विवाह, पारिवारिक संरचना तथा भूमि-संबंध नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।
- महिलाओं पर प्रभाव: वैश्वीकरण ने यहाँ तक की ग्रामीण भारत में भी कार्यबल में विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हेतु प्रत्यक्ष योगदान दिया है, जिससे उनके सामाजिक एवं आर्थिक सुदृढ़ीकरण में सहायता प्राप्त हुई है। हालाँकि, इसने महिलाओं के लिए एक ही समय में घरेलू एवं कार्यालय संबंधी उत्तरदायित्वों को संतुलित करने संबंधी ‘दोहरे जोखिम’ (double jeopardy) को भी उत्पन्न किया है।
वैश्वीकरण द्वारा प्रस्तुत किए गए अवसरों का दोहन करने हेतु कुछ रणनीतियाँ निम्नलिखित हैं: ,
- निर्यात उन्मुखता: लोगों को अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से बाहर निकालने में सहायता करने हेतु रोजगार सृजन और पूंजी पुनर्वितरण पर केंद्रित नीतियों द्वारा समर्थन प्रदान करके निर्यातों में वृद्धि करना, जिससे आय में वृद्धि तथा निर्धनता को कम किया जा सकती है।
- कौशल प्रदान करना: शिक्षित श्रमिक वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभावों से अधिक लाभान्वित हुए हैं। इसलिए, कार्यबल को पर्याप्त रूप से कुशल बनाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, कौशल विकास एवं रोजगार पर राष्ट्रीय नीति, USTAAD इत्यादि जैसी योजनाओं एवं नीतियों को उचित प्रकार से क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
- अवसंरचना: सूचना और संचार प्रौद्योगिकी(ICT) संबंधी अवसंरचना का विकास, इंटरनेट पहुँच तथा डिजिटल गांवों के विकास को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उत्पन्न करने में भी सहायता मिलेगी। अतः इससे ग्रामीण क्षेत्रों से प्रवास को कम किया जा सकेगा।
- लघु एवं मध्यम स्तरीय उद्योगों का सुदृढ़ीकरण: वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ एकीकरण के लिए सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) को नीतिगत समर्थन प्रदान करते हुए उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि की जानी चाहिए।
- फॉरवर्ड लिंकेज: कृषि क्षेत्र खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों के विकास, कृषि सहकारी प्रणाली या शीत भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) और वेयरहाउसिंग सुविधाओं हेतु सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के प्रोत्साहन इत्यादि के माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ फॉरवर्ड लिंकेज द्वारा लाभान्वित हो सकता है।
- मानव विकास: शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक सुरक्षा आदि के अंतर्गत सामाजिक क्षेत्रक संबंधी व्यय में वृद्धि की जानी चाहिए। शहरी निवासियों को प्राप्त सुविधाओं को सर्व सुलभ बनाने हेतु प्रारंभिक बाल्यावस्था के विकास संबंधी कार्यक्रमों को सार्वभौमिक बनाया जाना चाहिए।
समग्र रूप से, वैश्वीकरण एक ऐसी वास्तविकता है जो वर्तमान में अनिवार्य एवं स्थिर बन चुकी है। इसके परिणामस्वरूप, उपर्युक्त उपायों को नीतिगत दृष्टिकोण के अंतर्गत एकीकृत किया जाना चाहिए ताकि वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों को अधिकतम संभव सीमा तक कम किया जा सके।
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