आक्रामक प्रजातियों की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या

प्रश्न: आक्रामक प्रजातियों को परिभाषित कीजिए और भारत में वनस्पति एवं जंतु जगत से उदाहरण प्रस्तुत कीजिए। आक्रामक प्रजातियों के विस्तार से जुड़े खतरे क्या हैं? इस संदर्भ में इन खतरों को दूर करने के उपायों की भी चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • आक्रामक प्रजातियों की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • भारत में वनस्पति एवं जंतु जगत से संबंधित आक्रामक प्रजातियों के आंकड़े एवं उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  • इन प्रजातियों के विस्तार से जुड़े खतरों पर चर्चा कीजिए।
  • अंत में इन खतरों से निपटने के उपायों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

जैविक विविधता पर अभिसमय (Convention on Biological Diversity: CBD) के अनुसार, आक्रामक विदेशज प्रजातियां ऐसी प्रजातियां हैं जिन्हें उनके पुरातन अथवा वर्तमान प्राकृतिक परिवेश के बाहर स्थापित किया जाता है, साथ ही जिनका प्रवेशन एवं प्रसार जैव विविधता के लिए खतरा उत्पन्न करता है। ये सभी वर्गिकी (taxonomic) समूहों, जैसे- जंतुओं, पादपों, कवक आदि में पाई जाती हैं और सभी प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं। विभिन्न आक्रामक प्रजातियां अपना विस्तार करने में सफल रही हैं क्योंकि पर्यावरण में उनका कोई प्राकृतिक परभक्षी विद्यमान नहीं होता है। आक्रामक प्रजातियों के प्रसार में वृद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वैश्वीकरण को उत्तरदायी माना जाता है।

भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI) द्वारा 157 आक्रामक विदेशी प्रजातियों की एक सूची तैयार की गयी है, जिनमें से 58 स्थलीय और ताजे जल क्षेत्रों में और 99 समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में पाई जाती हैं। भारत में विद्यमान कुछ सामान्य जंतु प्रजातियां हैं: अफ्रीकी एप्पल स्नेल (African Apple Snail), पपीता मीली बग (Papaya Mealy Bug) जो असम और पश्चिम बंगाल में पपीते की फसल को प्रभावित कर रही है, कपास मीली बग (Cotton Mealy Bug) जो दक्कन क्षेत्र में कपास की फसल के लिए खतरा उत्पन्न कर रही है, अमेज़न सेलफिन कैटफ़िश जो आर्द्रभूमि क्षेत्र में मछलियों की आबादी के विनाश का कारण बन रही है, इत्यादि।

इसके अतिरिक्त, भारत में कैसिया यूनिफ्लोरा, प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा जैसे आक्रामक विदेशी पादपों की लगभग 173 प्रजातियां भी पाई जाती हैं।

इन प्रजातियों के विस्तार से जुड़े खतरे निम्नलिखित हैं:

  •  IUCN के अनुसार, लगभग 5 से 20 प्रतिशत विदेशी प्रजातियां आक्रामक होती हैं और ये ग्लोबल वार्मिंग के पश्चात् जैव विविधता के लिए दूसरा सबसे गंभीर खतरा हैं। ये प्रजातियाँ समान संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा के माध्यम से देशज प्रजातियों के समक्ष गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकती हैं, इसके अतिरिक्त ये खाद्य श्रृंखला को भी परिवर्तित कर सकती हैं।
  • आक्रामक प्रजातियों को प्रजाति विलोपन का एक महत्वपूर्ण कारक माना गया है।
  • कई आक्रामक विदेशी प्रजातियां कृषि, वानिकी और मत्स्यन उद्योगों के लिए प्रमुख क्षति-कारक हैं।
  • विदेशी प्रजातियां स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी उत्पन्न कर सकती हैं या रोग वाहक के रूप में कार्य कर सकती हैं।
  • आर्थिक स्तर पर ये मनोरंजन गतिविधियों और पर्यटन के समक्ष समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं।

विदेशी आक्रामक प्रजातियों के खतरों से निपटने हेतु उठाए गए कदम निम्नलिखित हैं:

  •  CBD के अनुच्छेद 8(h) और आईची लक्ष्य 9 (Aichi target 9) का उद्देश्य 2020 तक विदेशी प्रजातियों को नियंत्रित या उनका उन्मूलन करना है।
  • CBD के अनुच्छेद 8(h) को सहायता प्रदान करने हेतु वैश्विक आक्रामक प्रजाति कार्यक्रम।
  • नीति-निर्माण के मध्य संपर्क सुनिश्चित करने हेतु, IUCN का आक्रामक प्रजाति विशेषज्ञ समूह (ISSG) सूचना एवं जानकारी के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने और सुविधा प्रदान करने हेतु कार्य कर रहा है।
  • SDG-15 का उद्देश्य आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करना एवं उनका उन्मूलन करना है।
  • इन प्रजातियों के संचरण मार्ग की निगरानी, जैसे- सीमा नियंत्रण उपायों के माध्यम से आक्रामक विदेशी प्रजातियों का प्रबंधन करना।

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