स्वतंत्रता पूर्व और स्वातंत्र्योत्तर काल में स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और महिला अधिकारों की समर्थक के रूप में कमला देवी चट्टोपाध्याय की भूमिका

प्रश्न: कमला देवी चट्टोपाध्याय का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उनका स्वतंत्रता पूर्व और स्वातंत्र्योत्तर भारत में योगदान महत्वपूर्ण था। स्पष्ट कीजिए।

दृष्टिकोण

  • स्वतंत्रता पूर्व और स्वातंत्र्योत्तर काल में स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और महिला अधिकारों की समर्थक के रूप में कमला देवी चट्टोपाध्याय की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • कला और संस्कृति में उनके योगदान का वर्णन कीजिए।
  • उनके योगदान के लिए उन्हें प्रदत्त पुरस्कारों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

कमला देवी चट्टोपाध्याय (1903-1988) अनेक गहन अभिरुचियों और गुणों से युक्त असाधारण महिला थीं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसी प्रकार वह अंतरराष्ट्रीय समाजवादी नारीवादी आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्तित्व थीं। वह विऔपनिवेशीकरण के विचार की प्रतिपादक और वैश्विक दक्षिण के विचार के प्रारंभिक समर्थकों में से एक थीं। स्वतंत्रता पूर्व और स्वातंत्र्योत्तर भारत में विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदानों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

स्वतंत्रता आंदोलन: 

  • वह 1926 में मद्रास विधानसभा में राजनीतिक पद के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं। हालांकि वह बहुत कम अंतर से हार गईं थीं।
  • 1923 में वह सेवा दल में सम्मिलित हो गईं और स्वयं को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया।
  • नमक सत्याग्रह के दौरान, उन पर नमक कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया और कारावास का दंड दिया गया। उन्होंने उस समय राष्ट्र का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जब एक घटना के दौरान अधिकारियों के साथ संघर्ष करते हए वह तिरंगे झंडे से लिपटी रहीं।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, भारतीय स्वतंत्रता के लिए समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने विभिन्न देशों की यात्राएं कीं।
  • वह स्वतंत्र भारत के नए संविधान के हस्ताक्षरकर्ताओं में सम्मिलित थीं।

महिला अधिकार:

  • युवावस्था में विधवा होने के बावजूद, उन्होंने पुनर्विवाह किया और रूढ़िवादी समाज के विरोध का सामना किया। आगे चलकर उन्होंने तलाक की अर्जी देकर परंपरा को तोड़ा।
  • वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की पहली आयोजक सचिव थीं और 1936 में इसकी अध्यक्षा बनीं।
  • वह अंतरराष्ट्रीय नारीवादी आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में थीं। उन्होंने 1929 में बर्लिन में इंटरनेशनल एलायंस ऑफ़ वीमेन में भाग लिया था।
  • वह महिलाओं के लिए लेडी इरविन कॉलेज की स्थापना से भी जुड़ी रहीं।
  • भले ही वह नमक सत्याग्रह की प्रबल समर्थक थीं परन्तु मार्च से महिलाओं को बाहर रखने के गांधीजी के निर्णय के साथ उनका मतभेद था।
  • वह सहकारी आंदोलन की पथप्रदर्शक थीं, जिसने महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने में सहायता की।

सामाजिक कार्य:

  • 1923 में वह गांधीवादी संगठन सेवा दल में सम्मिलित हो गईं जो सामाजिक उत्थान को बढ़ावा देता था। इसके बाद वह महिला वर्ग की प्रभारी बनीं, जहां वह युवतियों और महिलाओं को स्वैच्छिक कार्यकर्ता ‘सेविका’ बनने के लिए नियोजित और प्रशिक्षित करती थीं।

स्वातंत्र्योत्तर और पुनर्वास:

  • विभाजन के पश्चात, उन्होंने फरीदाबाद शहर की स्थापना के लिए अथक प्रयास किया, जहाँ पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के शरणार्थियों को फिर से बसाया जा सकता था। उन्होंने वहां स्वास्थ्य सुविधाएं स्थापित करने में भी सहायता की।

कला और संस्कृति:

  • हस्तशिल्प, वस्त्र, नाटक, कला, कठपुतली आदि के पुनरुद्धार में योगदान दिया।
  • दिल्ली में रंगमंच शिल्प संग्रहालय सहित भारत की देशज कला और शिल्प का संग्रह करने के लिए शिल्प संग्रहालयों की शृंखला स्थापित की।
  • 1944 में नाट्य इंस्टीट्यूट ऑफ़ कथक एंड कोरियोग्राफी और इंडियन नेशनल थिएटर का शुभारंभ किया।
  • वह अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड की स्थापना में सहायक थीं और इसकी अध्यक्ष भी थीं।
  • आय-सर्जक शिल्प संबंधी कार्यशालाओं, प्रदर्शनियों आदि के माध्यम से आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए 1964 में विश्व शिल्प परिषद की स्थापना की।
  • ‘तानसेन’ और ‘शंकर पार्वती’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया।

साहित्यिक दक्षता: 

  • उन्होंने लगभग 20 पुस्तकें लिखीं, जिनमें- ‘जापान-इट्स वीकनेस एंड स्टॅथ्स’,’भारतीय हस्तशिल्प’, इंडियन वीमेन्स बैटल फॉर फ्रीडम’ आदि सम्मिलित हैं।

पुरस्कार:

  • उन्हें ‘पद्म भूषण’, ‘पद्म विभूषण’, ‘सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ तथा संगीत नाटक अकादमी द्वारा ‘रत्न सदस्य’ और शान्ति निकेतन द्वारा ‘देशिकोत्तम’ की उपाधि सम्मानित किया गया, जो दोनों संगठनों का सर्वोच्च पुरस्कार है।
  • हस्तशिल्प प्रोत्साहन के प्रति उनके योगदान के लिए UNESCO ने उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया था। विभिन्न क्षेत्रों में अपने अद्वितीय योगदान से, उन्होंने भारत में एक अमिट छाप छोड़ी है।

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