विदेश नीति में मूल्यों की भूमिका
प्रश्न: यद्यपि सैद्धांतिक रूप में अधिकतर राष्ट्र सार्वभौमिक मूल्यों के प्रति वचनबद्धता का दावा करते हैं, लेकिन व्यवहार में इन मूल्यों का उल्लंघन अधिक और अनुपालन कम किया जाता है। इस कथन के सन्दर्भ में, विदेश नीति में मूल्यों की प्रासंगिकता पर टिप्पणी कीजिए।
दृष्टिकोण
- उत्तर के आरंभ में सार्वभौमिक मूल्यों का उल्लेख कीजिए और चर्चा कीजिए की किस प्रकार विभिन्न देश इनका पालन करते हैं।
- विदेश नीति में मूल्यों की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- उत्तर के निष्कर्ष में बताइए की कैसे भारत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इनका पालन करता है।
उत्तर
कोई भी मूल्य एक सार्वभौमिक मूल्य तब बनता है जब इसे सभी व्यक्तियों द्वारा मान्यता प्रदान की जाए और समान रूप से महत्वपूर्ण माना जाए। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में, राष्ट्र राज्य अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष की स्थिति में शांतिपूर्ण समाधान, न्याय की खोज, मानवीय जीवन की गरिमा का सम्मान, संप्रभु समानता और मानवीय सहयोग तथा अन्य कई मूल्यों को सार्वभौमिक मूल्यों के रूप में मान्यता प्रदान करते हैं। यद्यपि प्राचीन काल से ही इनमें से अधिकांश मूल्य आदर्शों के रूप में मौजूद थे, द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात इनका संहिताकरण महत्वपूर्ण हो गया।
पालन से अधिक उल्लंघन
हालांकि, अधिकांश राष्ट्र सार्वभौमिक मूल्यों के प्रति अपनी वचनबद्धता का दावा प्रस्तुत करते हैं, परंतु कई अवसरों पर, उन्हें इन मूल्यों के आधार पर अपनी विदेश नीति को संचालित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि समकालीन समय में विदेश नीति व्यावहारिक राजनीति (realpolitik) द्वारा शासित होती है, जो कि राष्ट्रीय हित को सर्वोच्च मानती है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध युद्ध या युद्ध के खतरे की पृष्ठभूमि में स्व-हितों की पूर्ति हेतु संचालित किए जाते हैं। यह संयुक्त सैन्य अभ्यासों अथवा ‘प्रतिबंधों’ को आरोपित करने या आयातों पर उच्च टैरिफ आरोपित करने जैसे उपकरणों द्वारा शक्ति को प्रदर्शित करने के तरीकों या उसके लक्ष्यीकरण में परिलक्षित होता है। हालाँकि, सार्वभौमिक मूल्य वैश्विक मुद्दों, जैसे कि जलवायु परिवर्तन या कुछ राष्ट्रों में मानवाधिकार संकट अथवा संक्रमणीय रोग और चिकित्सा अनुसंधान में महत्वपूर्ण कारक होते हैं।
उदाहरण के लिए, हालांकि अधिकांश देश विदेश नीति में गैर-हस्तक्षेप एवं शांतिपूर्ण आचरण हेतु प्रतिबद्ध होते हैं, परंतु वास्तव में वे शक्ति को अधिकतम बनाने में लगे हुए होते हैं जो कि उन्हें इसी प्रकार की इच्छा रखने वाले अन्य देशों की विरोधी स्थिति में पहुंचा देता है। इसी प्रकार अधिकांश देश पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी वचनबद्ध होते हैं, परंतु वास्तव में वे पर्यावरणीय क्षति की कीमत पर देश के आर्थिक विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।
अन्य मामलों में, कुछ राष्ट्रों को उनके अस्तित्व तथा गरिमा को बनाये रखने हेतु इन मूल्यों को दरकिनार करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। उदाहरणार्थ- अहिंसा एवं शांति के प्रति अपनी वचनबद्धता के बावजूद भारत को परमाणु शक्ति बनना पड़ा।
विदेश नीति में मूल्यों की प्रासंगिकता
चूंकि देश स्वयं में संप्रभु संस्था होता है, इसलिए कोई भी बाह्य शक्ति अपनी गतिविधियों द्वारा उस पर अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सकती है। फिर भी, कुछ विक्षेप होने के बावजूद, देशों ने कुछ मूलभूत सार्वभौमिक मूल्यों को उल्लेखनीय ढंग से अपनाया हुआ है क्योंकि ये उन्हें किसी भी विदेशी शक्ति के साथ की जाने वाली वार्ता में निरंतरता और पूर्वानुमेयता प्रदान करते हैं। वास्तव में, विश्वास किसी देश के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के निर्माण में एक महत्वपूर्ण कारक होता है। लघुगामी हितों की प्राप्ति से उस देश को तत्काल लाभ प्राप्त हो सकते हैं परंतु इससे विश्व भर में उसके प्रति विश्वास को क्षति पहँच सकती है।
यदि कोई देश संधि का पालन नहीं करता है या एकपक्षीय रूप से पीछे हट जाता है, तो यह अन्य देशों को भी हतोत्साहित करता है। यह आंशिक रूप से सार्वभौमिक मूल्यों के अनुपालन के कारण ही है कि 3 दशकों में दो विश्व युद्धों के घटित होने के पश्चात, अगले 70 वर्षों तक इस पैमाने के किसी भी प्रकार के विनाशकारी संघर्ष को टाला जा सका है। लोकतंत्र एक ऐसा ही सार्वभौमिक मूल्य है जिसमें अधिकांश पूर्ववर्ती एशियाई और अफ्रीकी उपनिवेशों ने अपनी निष्ठा व्यक्त की है।
सार्वभौमिक मूल्यों का पालन करने में भारत की पिछली उपलब्धियाँ किसी भी अन्य देश की तुलना में कम नहीं रही हैं। शत्रुतापूर्ण पड़ोस होने के बावजूद, भारत कभी भी आक्रामक नहीं रहा है। इसके अतिरिक्त मानवतावाद सदैव भारत की विदेश नीति का केंद्र रहा है। भारत ने विश्व भर से आने वाले शरणार्थियों की सर्वाधिक संख्या को शरण प्रदान की है।
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