केस स्टडीज : हितधारक और उनके हित

प्रश्न: आपको हाल ही में एक जनजातीय जिले में जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में एक परिवीक्षाधीन अधिकारी के रूप में पदस्थापित किया गया है। एक क्षेत्र भ्रमण के दौरान, आदिवासियों से बातचीत करते हुए, आपको कुछ वर्ष पूर्व स्थापित एक निजी कंपनी के बारे में पता चलता है, जिसने उनके जीवन का कायापलट कर दिया है। आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करते हुए, कंपनी ने उत्पादों की एक श्रृंखला आरंभ की थी और आदिवासियों के लिए आजीविका के कई अवसर उपलब्ध कराए थे। अधिक पूछताछ करने पर, आपको पता चलता है कि जहां आदिवासियों के जीवन में वास्तव में सुधार हुआ है, वहीं लाभ का वितरण अत्यंत असंगत (अननुपातिक) रहा है। कंपनी के परिचालनों में भारी वृद्धि देखी गई है और इसके स्वामियों ने अत्यधिक धन-संपत्ति अर्जित की है। कंपनी IPR भी फाइल करने की योजना बना रही है, जो आदिवासियों के हितों में आगे बाधक भी बन सकता है। आप अनुभव करते हैं कि आदिवासियों को वंचित रखा गया है और उनके संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों का एक समान बंटवारा नहीं हुआ है। जब आपने ग्राम सभा से संपर्क करने और अपनी चिंताओं से उन्हें अवगत कराने का प्रयास किया, तो आदिवासियों ने आपसे हस्तक्षेप न करने का अनुरोध किया, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है।

उनका यह भी तर्क था कि अतीत में सरकारें उनके हितों की रक्षा करने में विफल रही हैं। इस स्थिति को देखते हुए, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(a) इस प्रकरण में सम्मिलित विभिन्न हितधारकों और उनके हितों की पहचान कीजिए।

(b) इस स्थिति में सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता है, जिला मजिस्ट्रेट को यह समझाने हेतु प्रकरण प्रस्तुत कीजिए।

दृष्टिकोण

  • प्रकरण (केस स्टडी) का सार-संक्षेप प्रदान करते हुए उत्तर आरम्भ कीजिए।
  • केस स्टडी में सम्मिलित हितधारकों और उनके हितों के विषय में एक-एक करके बताइए।
  • उपर्युक्त स्थिति में सरकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता के लिए जिलाधिकारी को सहमत करने हेतु उपयुक्त तर्कों का एक संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण दीजिए।
  • उपर्युक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष निकालिए।

उत्तर

दिए गए प्रकरण में एक आदिवासी क्षेत्र की एक विशिष्ट तस्वीर दिखाई गई है जहाँ आदिवासियों के उत्थान के लिए सरकारी प्रयासों की अपर्याप्तता ने एक शून्य पैदा कर दिया है, जिसका उपयोग निजी कंपनियों द्वारा भारी लाभ कमाने के लिए किया जा रहा है। यह निजी कंपनियों द्वारा आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान का उपयोग कर प्राप्त किए जाने वाले लाभों में उचित भाग प्रदान न करने से संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकार के दुरुपयोग की समस्या को भी उजागर करता है। यह जैव विविधता अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के विरुद्ध है।

 (a) केस स्टडी में सम्मिलित हितधारक और उनके संबंधित हित इस प्रकार हैं:

हितधारक सम्मिलित हित
आदिवासी लोग आदिवासियों के आजीविका के अवसर और उनका कल्याण, उनका पारंपरिक ज्ञान
निजी कंपनियां अधिकतम लाभ प्राप्त करना, आदिवासियों के उत्पादों और ज्ञान पर बौद्धिक संपदा अधिकार।
जिलाधिकारी और  राज्य प्रशासन क्षेत्र के लोगों का कल्याण, प्रशासनिक मशीनरी पर विश्वास करने के लिए आदिवासियों को राजी करना, अपने कर्त्तव्य दायित्वों के अनुरूप सभी के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना।
परिवीक्षाधीन अधिकारी कानून के शासन को बनाए रखना, आदिवासियों का कल्याण, आदिवासियों की आत्म-संतुष्टि
ग्राम सभा आदिवासियों का कल्याण, कंपनियों द्वारा लाभ का समान बंटवारा
आदिवासी क्षेत्रों में गैर-सरकारी संगठन आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी लोगों के कल्याण और क्षेत्र के विकास को सुनिश्चित करना।

(b) उपर्युक्त स्थिति में सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता के लिए जिलाधिकारी को सहमत करने हेतु इस मामले का प्रस्तुतीकरण करते समय निम्नलिखित को उजागर करने की आवश्यकता है:

  • आदिवासी क्षेत्र की वर्तमान स्थिति।
  • यह दर्शाना कि आदिवासियों के सामने आने वाली ये समस्याएं किस प्रकार सरकार द्वारा वैकल्पिक प्रयास किए जाने के अभाव का परिणाम हैं।
  • सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से इन समस्याओं के लिए उपाय सुझाना।

सभी संभावित आयामों को उजागर करने और उन्हें प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, जैसे:

  •  आदिवासियों के लिए आजीविका के अवसरों की कमी की समस्या को रेखांकित करते हुए, उस क्षेत्र में निजी कंपनी द्वारा प्रदान किये गए आजीविका के अवसरों के आंकड़ों को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। इस प्रक्रिया में आदिवासियों के जीवन पर आय सृजन और अन्य लाभों के परिप्रेक्ष्य में पड़े प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
  • प्रकरण में निजी कंपनी और आदिवासियों के बीच लाभ की परस्पर साझेदारी करने के समझौते और उनके बीच लाभ के वितरण प्रतिशत का विवरण भी होना चाहिए।
  • इसमें पूछताछ के दौरान विनिर्मित उत्पादों के प्रकार, उनकी विनिर्माण लागत, विक्रय लागत और आदिवासियों को दिये गए इसके संबंधित भाग के विषय में प्राप्त किया गया विवरण भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • इसमें आदिवासियों और उनके पारंपरिक ज्ञान पर निजी कंपनी द्वारा बौद्धिक संपदा अधिकार फाइल किए जाने के संभावित प्रभाव को भी उजागर किया जाना चाहिए।
  • आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित किए जाने और प्रशासन के विरुद्ध उनकी शिकायतों की समझ तथा उन्हें सरकारी तंत्र में अपना विश्वास बनाये रखने के लिए राजी करने की आवश्यकता को भी स्पष्ट किया जाना चाहिए। उन्हें राजी करने के लिए नागरिक समाज या स्थानीय नेतृत्व का उपयोग किया जा सकता है।

जिलाधिकारी के संज्ञान में भी यह मामला लाना चाहिए कि सरकार की ओर से पर्याप्त प्रयास न किए जाने के कारण आदिवासियों को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

  • इसके लिए प्रस्तुत किए गए तर्कों को अतीत में सरकार द्वारा किए गए प्रयासों और इसकी विफलता के कारणों को रेखांकित करते आंकड़ों और रिकॉर्डों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए। यह भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि सरकार द्वारा अपर्याप्त प्रयासों के कारण निर्मित शून्य ने आदिवासियों को उनके उत्पादों को निजी कंपनी को बेचने के लिए विवश किया है, जो इस अवसर का उपयोग अपने स्वयं के लाभ को अधिकतम बनाने के लिए कर रही हैं।
  • सरकार की ओर से उदासीनता के कारण, आदिवासी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली ग्राम सभा सरकार का हस्तक्षेप नहीं चाहती, क्योंकि उन्हें भय है कि इससे उस निजी कंपनी के साथ उनके संबंध प्रभावित हो सकते हैं, जो उनके लिए आजीविका का एकमात्र स्रोत है। ऐसी स्थिति में, आदिवासियों को स्वदेशी उत्पादों के विपणन में सम्मिलित अन्य निजी कंपनियों या गैर सरकारी संगठनों को आमंत्रित करने के विकल्प प्रदान किए जा सकते हैं।

मामले के प्रस्तुतीकरण के दौरान सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता और उपर्युक्त समस्याओं से निपटने के लिए आगे का राह भी स्पष्ट की जानी चाहिए, जो निम्नानुसार है:

  •  आदिवासी क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों की सहायता से सरकार को आदिवासी लोगों के लिए वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करने हेतु तत्काल प्रयास करने चाहिए।
  • निजी कंपनी को कंपनी द्वारा अर्जित लाभों में आदिवासी लोगों के लाभों की हिस्सेदारी बढ़ाने के दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं।
  • आदिवासी उत्पादों की बेहतर कीमत पर विपणन के लिए ट्राइब्स इंडिया के ई-कॉमर्स प्लेटफार्म, जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (TRIFED) जैसे संस्थानों की सहायता से आदिवासी हाट आदि प्लेटफार्मों का उपयोग किया जा सकता है।
  • सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि बौद्धिक संपदा अधिकार के संबंध में भारतीय पेटेंट अधिनियम, 2005; जैविक विविधता अधिनियम, 2002 इत्यादि जैसे अधिनियमों और कानूनों का सिद्धांत और व्यवहार, दोनों दृष्टियों से पालन किया जाना चाहिए।
  • आदिवासी जनजातीय लोगों के कल्याण के लिए निर्णय लेने में ग्राम सभा जैसे निकायों सहित जमीनी स्तर की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति के लिए विभिन्न हितधारकों के हितों को ध्यान में रखते हुए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

इससे न केवल आदिवासियों के सामने आने वाली समस्याओं को हल करने में सहायता मिलेगी, बल्कि इससे आदिवासी क्षेत्र का समग्र विकास भी सुनिश्चित होगा।

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