राष्ट्रीय आपातकाल एवं राष्ट्रपति शासन को आरोपित करने हेतु विभिन्न आधारों का विस्तारपूर्वक वर्णन

प्रश्न: उद्घोषणा और मूल अधिकारों एवं केंद्र-राज्य संबंधों पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में राष्ट्रीय आपातकाल और राष्ट्रपति शासन में तुलना कीजिए और अंतर बताइए।

दृष्टिकोण

  • राष्ट्रीय आपातकाल एवं राष्ट्रपति शासन को आरोपित करने हेतु विभिन्न आधारों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  • मूल अधिकारों पर पड़ने वाले इनके प्रभावों की तुलना कीजिए एवं अंतर बताइए। 
  • केंद्र-राज्य संबंधों पर इनके प्रभावों का वर्णन कीजिए।

उत्तर

यदि भारत की अथवा इसके किसी भाग की सुरक्षा के समक्ष युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो गया हो तो अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है। वहीं राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता के आधार पर अनुच्छेद 356 के अंतर्गत घोषित आपातकाल को राष्ट्रपति शासन के नाम से जाना जाता है। यह तब घोषित किया जा सकता है जब किसी राज्य की सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप कार्य करने में अक्षम हो तथा साथ ही इस अक्षमता के कारणों का युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के साथ कोई संबंध न हो।

मूल अधिकारों पर प्रभाव:

जब राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की जाती है तो युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण की परिस्थितियाँ विद्यमान होने के आधार पर अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त छः मूल अधिकार स्वतः ही निलंबित हो जाते हैं। राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 एवं 21 के अतिरिक्त अन्य अधिकारों को लागू करने हेतु न्यायालय में जाने के अधिकार को निलंबित कर सकता है। हालाँकि केवल आपातकाल से सम्बंधित कानूनों को ही चुनौती के विरुद्ध संरक्षण प्राप्त है, अन्य कानूनों को नहीं। इसके साथ ही आपातकाल के दौरान कार्यपालिका द्वारा की गयी कार्यवाही को भी संरक्षण प्राप्त होता है।

दूसरी ओर, राष्ट्रपति शासन का नागरिकों के मूल अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रभाव:

जब राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा लागू होती है तब केंद्र-राज्य के सामान्य संबंधों में मूलभूत परिवर्तन होते हैं जो निम्नलिखित हैं:

  • कार्यपालिका: केंद्र को किसी भी मामले पर राज्य को कार्यकारी दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
    विधायी: राष्ट्रीय आपातकाल के समय संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। यद्यपि किसी राज्य विधायिका की विधायी शक्तियों को निलंबित नहीं किया जाता किन्तु ये संसद की असीमित शक्ति के प्रभावाधीन हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त यदि संसद का सत्र न चल रहा हो तो राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है।
  • वित्तीय: राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा लागू होने पर राष्ट्रपति केंद्र एवं राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है। ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते हैं जिसमें आपातकाल समाप्त होता है।

राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) के दौरान राज्य सरकार को निलंबित कर दिया जाता है। साथ ही राज्य विधायिका को या तो निलंबित अथवा भंग कर दिया जाता है। राष्ट्रपति राज्यपाल के माध्यम से राज्य के प्रशासन का संचालन करता है तथा राज्य हेतु कानूनों का निर्माण संसद द्वारा किया जाता है। संक्षेप में, केंद्र राज्य की कार्यकारी एवं विधायी शक्तियों का अधिग्रहण कर लेता है। राष्ट्रपति राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति संसद अथवा उसके द्वारा निर्दिष्ट किसी अन्य प्राधिकरण को सौंप सकता है। सामान्यतः इस सन्दर्भ में यह प्रथा रही है कि राष्ट्रपति कानून बनाने हेतु उस राज्य के सांसदों से परामर्श करता है। इस प्रकार के कानूनों को राष्ट्रपति के अधिनियम (President’s Acts) के रूप में जाना जाता है।

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