भारत में शेल गैस के भंडारों की संभावना की संक्षिप्त व्याख्या

प्रश्न: भारत को शेल गैस से समृद्ध बेसिनों की पहचान करने और शेल गैस के निष्कर्षण हेतु आवश्यक तकनीक प्राप्त करने की दिशा में लंबा रास्ता तय करना है। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में शेल गैस के भंडारों की संभावना की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • इन भंडारों की खोज संबंधी स्थिति और शेल गैस के निष्कर्षण से संबंधित समस्याओं, विशेषकर प्रौद्योगिकी का अभाव, के सन्दर्भ में चर्चा कीजिए।
  • आगे की राह के साथ उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

भारत विश्व के सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ताओं में से है, परन्तु यह स्वयं पर्याप्त ऊर्जा संसाधनों से संपन्न नहीं है। आयातित ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भरता देश की वित्तीय स्थिरता एवं ऊर्जा सुरक्षा को संकट में डालती है। इसलिए, शैल गैस निष्कर्षण में आमूल परिवर्तनों से कुछ सुधार हो सकता है

भारत में शेल गैस भंडार

संयुक्त राज्य भूगर्भ सर्वेक्षण (United States Geological Survey) द्वारा किए गए अध्ययन में भारत के 26 में से 3 अवसादी बेसिनों में प्राप्य संसाधनों का अनुमान लगाया गया है। पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा भारत में शेल गैस के छह संभावित बेसिनों की पहचान की गयी है। ये निम्नलिखित हैं: 

  • असम-अराकान बेसिन
  • गोंडवाना बेसिन (दामोदर घाटी)
  • कृष्णा-गोदावरी बेसिन
  • कावेरी बेसिन
  • कैम्बे (खंभात) बेसिन
  • इंडो-गंगेटिक बेसिन इन संसाधनों की और अधिक पहचान किये जाने एवं प्रमाणीकरण की संभावना है।

 

शेल गैस के निष्कर्षण संबंधी तकनीकी चुनौतियां

  •  क्षैतिज ड्रिलिंग: शेल चट्टानें कभी-कभी सतह से 3,000 मीटर नीचे पायी जाती हैं। इसलिए, गहरी ऊर्ध्वाधर ड्रिलिंग के पश्चात, गैस समृद्ध चट्टानों को निष्कर्षित करने के लिए विभिन्न दिशाओं में पर्याप्त दूरी तक क्षैतिज ड्रिल करने हेतु इस प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है।
  • हाइड्रो फ्रैक्चरिंग की तकनीक: शेल के निष्कर्षण के लिए गैसयुक्त चट्टानों में दरारों के निर्माण के लिए उनमें अति उच्च तापमान पर जल और अन्य रसायनों को अंत:क्षेपित करने की आवश्यकता होती है। चट्टान को तोड़ने के लिए जल का उपयोग करने की प्रक्रिया को “हाइड्रो फ्रैक्चरिंग” या “फ़ैकिंग” कहा जाता है। इस प्रक्रिया के लिए भारतीय कंपनियों के पास पर्याप्त संसाधनों और पूंजी का अभाव है।
  • संसाधन मूल्यांकन: धन की कमी और अनाकर्षक सरकारी प्रोत्साहनों के कारण वास्तविक संभाव्यता का पता लगाना चुनौतीपूर्ण कार्य है।

उपर्युक्त तकनीकी चुनौतियों के अतिरिक्त, शेल गैस निष्कर्षण के लिए निम्नलिखित मुद्दों के समाधान की भी आवश्यकता होगी:

  • विनियामकीय और पर्यावरणीय फ्रेमवर्क: शेल-गैस के उत्पादन के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर जल संदूषित होता है।
  • खुली भूमि की उपलब्धता: प्राकृतिक गैस की तुलना में, शेल गैस उत्पादन हेतु अन्वेषण और निष्कर्षण के लिए विशाल भू भाग की आवश्यकता होती है।
  • जल की उपलब्धता: निष्कर्षण की प्रक्रिया में जल का भारी मात्रा में उपयोग, जल संकट का सामना कर रहे भारत के लिए एक चुनौती है।
  • गैस की कीमतों को युक्ति संगत बनाना – यह निवेश और निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए आवश्यक है। तेल एवं गैस उत्पादन में गतिहीनता और आयात पर बढ़ती निर्भरता के कारण, शेल गैस की संभावनाओं का दोहन करने के लिए उपर्युक्त चुनौतियों से निपटने का प्रयास करना एक सही कदम होगा। भारत सरकार द्वारा एकीकृत लाइसेंस प्रदान करने के लिए हाल ही में अपनायी गयी हाइड्रोकार्बन उत्खनन एवं लाइसेंसिंग नीति (HELP) 2016 और अन्य आकर्षक उपाय भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं।

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