नैतिकता का परीक्षण

प्रश्न: नैतिकता का परीक्षण सरल लागत लाभ विश्लेषण से कहीं अधिक है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • नैतिकता की अवधारणा कि संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • उदाहरणों सहित चर्चा कीजिए कि कैसे किसी कार्रवाई की नैतिकता निर्धारित करने में लागत लाभ विश्लेषण अपर्याप्त है। 
  • उन सिद्धांतों को इंगित कीजिए जिन्हें किसी कार्रवाई की नैतिकता निर्धारित करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।

उत्तर:

सामान्यतया नैतिकता (Morals) और नीतिशास्त्र (ethics) को परस्पर पर्यायवाची समझा जाता है। इनका आशय सिद्धांतों के ऐसे समुच्चय से है जिसके द्वारा हम किसी कार्य के उचित या अनुचित होने के संबंध में निर्णय करते हैं। इनके मध्य प्रमुख अंतर यह है कि जहां नैतिकता के द्वारा हम स्वयं के उचित या अनुचित होने का मूल्यांकन करते हैं वहीं नीतिशास्त्र के माध्यम से किसी समूह या संस्था (जैसे समाज, सरकार, धर्म, पेशेवर संघ इत्यादि) के उचित या अनुचित होने का निर्धारण किया जाता है।

अतः कभी कभी इन दोनों में टकराव उत्पन्न हो सकता है। हालांकि, किसी व्यक्ति द्वारा उचित या अनुचित का मूल्यांकन करना इस पर निर्भर करता है कि वह किन सिद्धांतों का उपयोग कर रहा है, उसे कैसा माहौल प्राप्त हुआ है, उसके विचार एवं विश्वास तथा मूल्य एवं सिद्धांत क्या हैं। ऐसे में नैतिकता के परीक्षण हेतु लोगों द्वारा एक सरल तरीके के रूप में लागत-लाभ विश्लेषण को अपनाया जाता है। यदि लागत प्राप्त लाभ से कम है तो सामान्यतया लोग इसे सही कार्रवाई मानेंगे। हालांकि इस दृष्टिकोण का क्षेत्र सीमित है और इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

इस प्रकार, प्रयुक्त सिद्धांत के आधार पर स्वयं नैतिकता भी परिवर्तित हो सकती है। इसके लिए आवश्यक होता है:

  • अधिकतम लोगों को सुख प्रदान करना, भले ही इससे कुछ लोग आहत हों।
  • सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करना और यह सुनिश्चित करना कि कुछ अधिकारों का उल्लंघन कभी न हो।
  • यह सुनिश्चित करना कि किसी कार्य की नैतिकता निर्धारित करने हेतु साधन और साध्य दोनों ही समान रूप से उचित हों।
  • किसी व्यक्ति का कार्य उसकी स्वतंत्र इच्छा का परिणाम हो, न कि उसे इस हेतु बाध्य किया जाए। उदाहरण के लिए किसी बाध्यकारी सामुदायिक सेवा को नैतिक नहीं माना जा सकता है क्योंकि व्यक्ति इसका निष्पादन स्वतंत्र इच्छा से नहीं कर रहा होता है।

इस प्रकार हम यह देखते हैं कि कोई एक सुनिश्चित सिद्धांत या विधि नहीं है। नैतिकता निर्धारित करने के लिए लागत लाभ दृष्टिकोण अपनाने में निम्नलिखित समस्याएँ हैं:

  • यह व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करता है और मनुष्य को एक साधन मानता है तथा प्रायः अन्य व्यक्तियों के अधीन मानता है। उदाहरण के लिए एक बांध बनाने के लिए किसी व्यक्ति को उसके अधिवास और आजीविका से वंचित करने से कई लोगों को तो लाभ हो सकता है लेकिन उस व्यक्ति को होने वाली हानि का आकलन कर पाना संभव नहीं है।
  • यह सभी प्रकार के सुखों और दुःखों का एक ही पैमाने पर मापन करता है और इसके आधार पर यह अधिकतम सुख का आकलन करता है। लेकिन कुछ सद्गुणों जैसे साहस, दयालुता, निष्ठा, निष्पक्षता इत्यादि के मापन हेतु कोई मापदंड उपलब्ध नहीं है।
  • यह इस सिद्धांत की उपेक्षा करता है कि कोई कार्य इसलिए किये जाने योग्य होता है क्योंकि वह कार्य स्वयं में ही नैतिक होता है। उदाहरण के लिए, बच्चों की चाह रखने वाले दंपतियों के लिए सरोगेसी लाभप्रद हो सकती है, लेकिन जैविक मां को होने वाली हानि (विशेष रूप से जो उसे उसके मातृत्व के अपरिहार्य अधिकार से वंचित कर देने से होती है) की क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। केवल हानि की क्षतिपूर्ति कर देने से कोई कार्य नैतिक नहीं हो जाता।
  • यह उच्चतर शुभ (greater good) प्राप्ति की मंशा या इसकी प्राप्ति हेतु अपनाए गए साधनों को कोई महत्व प्रदान नहीं करता। उदाहरण के लिए, यदि कोई चिकित्सक रोगी के जीवन को बचाने का प्रयास करता है, लेकिन कुछ कारणों का चिकित्सक के नियंत्रण से परे होने के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है तो इस परिप्रेक्ष्य में चिकित्सक की योग्यता को कम नहीं आंका जाना चाहिए।

इसलिए नैतिकता के परीक्षण में मूलभूत मानवीय मूल्यों, मौलिक एवं सार्वभौमिक अधिकारों, न्याय तथा निष्पक्षता को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।

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