वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) तंत्र के विभिन्न रूप : न्याय के वितरण में इनकी भूमिका से सम्बंधित मुद्दों और चुनौतियों का उल्लेख

प्रश्न: भारत में उपलब्ध वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) तंत्र के विभिन्न रूप क्या हैं?इनके द्वारा सामना की जा रही समस्याओं की पहचान करते हुए, इनकी प्रभावशीलता बढाने के लिए आवश्यक सुझाव प्रदान कीजिए।

दृष्टिकोण

  • वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) तंत्र के विभिन्न रूपों का उल्लेख करते हुए परिचय दीजिए।
  • न्याय के वितरण में इनकी भूमिका से सम्बंधित मुद्दों और चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • इनकी प्रभावशीलता में सुधार लाने हेतु सुझाव दीजिए।

उत्तर

वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) विधिक विवादों के समाधान हेतु सामान्य न्यायालयों के अतिरिक्त अन्य विभिन्न रूपों को संदर्भित करता है। इन रूपों को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 तथा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 जैसे कानूनी प्रावधानों द्वारा सुनिश्चित किया जाता है। भारत में वैकल्पिक विवाद निवारण तंत्र के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं:

  • पंचाट: इसके अंतर्गत एक तीसरा पक्ष मामले से संबंधित साक्ष्यों की समीक्षा करता है और दोनों पक्षों पर विधिक रूप से बाध्यकारी निर्णय को लागू करता है। यह समीक्षा एवं अपील के सीमित अधिकारों के साथ प्रवर्तनीय होता है। यह अनुबंध के अनुसार अनिवार्य या स्वैच्छिक हो सकता है।
  • मध्यस्थता: इसमें एक तटस्थ तीसरे पक्ष द्वारा निर्दिष्ट संचार और वार्ता तकनीकों का प्रयोग करके सौहार्द्रपूर्ण ढंग से अन्य पक्षों के विवादों को सुलझाने में सहायता की जाती है। मध्यस्थ केवल वार्ता समाधान तक पहुंचने के लिए एक सहायक के रूप में कार्य करता है। वह कोई निर्णय नहीं देता है तथा निष्पक्ष समाधान के संदर्भ में अपना विचार अधिरोपित नहीं करता है।
  • समाधान: यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है जिसके तहत पक्षों द्वारा विवाद के समाधान हेतु एक सुलहकर्ता की सहायता ली जाती है। यह दोनों पक्षों से अलग-अलग मिलकर तनावों को कम कर, संचार में सुधार कर तथा संभावित समाधानों की खोज के माध्यम से एक समझौते के रूप में समाधान करता है।
  • लोक अदालत: इनका गठन विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत हुआ है। यह सार्वजनिक समाधान का एक रूप है। इसके 2 या 3 सदस्य होते हैं जो न्यायाधीश या अनुभवी अधिवक्ता होते हैं। उन्हें एक निश्चित सीमा तक सिविल न्यायालय की शक्तियां दी गई हैं।
  • न्याय पंचायतें: इन ग्राम न्यायालयों को ग्रामीण समुदाय की स्थानीय परंपराओं, संस्कृति और व्यवहार प्रतिरूप द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है। इस प्रकार न्याय के प्रशासन में विश्वास उत्पन्न होता है। ये 200 रुपये तक के आर्थिक दावे की सुनवाई कर सकते है। इनका आपराधिक क्षेत्राधिकार उत्तरदायित्वों के प्रति लापरवाही, अनधिकृत प्रवेश, उपद्रव आदि जैसे छोटे मामलों तक विस्तारित है। इसमें सुलह पर बल दिया जाता है।

ADR के लाभ

  • सरल , तीव्र और सस्ता न्याय प्रदान करता है।
  • यह विधिक न्यायालयों की भाँति मामलों के संचालन में विभिन्न नियमों से बँधा नहीं है।

ADR से संबंधित मुद्दे

  • पारंपरिक न्यायपालिका के विपरीत इसमें अंतिम समाधान की कोई गारंटी नहीं होती।
  • आम लोगों के मध्य अज्ञानता के साथ-साथ सुलहकर्ताओं और मध्यस्थों के मध्य पेशेवर प्रशिक्षण की कमी।
  • मुख्य रूप से बड़े शहरों के आसपास केंद्रित होने के कारण इसकी प्रभावशीलता सीमित हो जाती है।
  • ADR के प्रसार प्रचार के लिए भारत में संस्थागत अवसंरचना की कमी है।
  • ADR के कुछ स्वरूप न्याय के प्रतिकूल तंत्र के समान या उससे भी अधिक महँगे हैं।
  • ऐसी परिस्थितियां, जहां ADR के माध्यम से सौहार्द्रपूर्ण समाधान संभव नहीं है, इसकी एक प्राकृतिक सीमा हैं।

इनकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए मुख्य सुझाव हैं:

  •  प्रक्रियात्मक सत्यनिष्ठा, समय पर निवारण और पक्षों की संतुष्टि सुनिश्चित करने के लिए ADR के सभी पहलुओं को नियंत्रित करने वाले एक समग्र कानून को लागू करने की आवश्यकता है।
  • मध्यस्थों, बिचौलियों या सुलहकर्ताओं के गैर-पक्षपातपूर्ण प्रदर्शन करने हेतु एक आचार संहिता या नीति संहिता विकसित की जानी चाहिए।
  • याचिका पूर्व चरणों में ADR की भूमिका का विस्तार किया जाना चाहिए। वर्तमान में अधिकांशतः दोनों पक्षों द्वारा याचिका दायर करने के पश्चात इनका उपयोग किया जाता है।
  • विवादों के समाधान के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को परिवर्तित कर विरोध के बजाय सबके लिए अनुकूल समाधान पर लाने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • सामुदायिक संबंधों की गतिविधियों के एक अभिन्न अंग के रूप में स्थापित कर , विश्वास का निर्माण करना।
  • इस क्षेत्र में कानूनी शिक्षा को बढ़ावा देना।
  • भारत के बदलते सामाजिक-आर्थिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए ADR को व्यावसायिक बनाना।

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