भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों की वर्तमान और परिवर्तनशील प्रकृति

प्रश्न: राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियां, जो कम परम्परागत युद्ध सम्बन्धी खतरे हैं, लेकिन अधिक विस्तृत और अस्पष्ट हैं, उनसे अब पृथक्करण प्रक्रिया के तहत नहीं निबटा जा सकता है। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए और साथ ही, ऐसी रणनीति के निरूपण में सरकार के सामने आ रही चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों की वर्तमान और परिवर्तनशील प्रकृति पर चर्चा कीजिए।
  • गैर-परंपरागत युद्ध खतरों की चर्चा कीजिए, जो अधिक विस्तृत और अस्पष्ट हैं। 
  • सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए एकीकृत बहुआयामी प्रकृति की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता का परीक्षण कीजिए।
  • ऐसी रणनीतियों के निरूपण में सरकार के सम्मुख उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

भू-राजनीति तथा सामरिक एवं तकनीकी विकास राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों के लिए अनिश्चितताओं एवं नए आयामों का विस्तार करते हैं। इस प्रकार, सैन्य सुरक्षा पर निर्भर सुरक्षा का पारंपरिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण तो बना हुआ है किन्तु उसकी उपयोगिता उत्तरोतर सीमित होती जा रही है।

संघर्ष की प्रकृति और युद्ध के उद्देश्य परिवर्तित हो रहे हैं। अब साइबर और स्पेस जैसे नए युद्ध क्षेत्र मौजूद हैं। गैर-राज्य अभिकर्ताओं (Non-state actors) ने हमारी सुरक्षा प्रतिक्रियाओं में संशोधन को अनिवार्य बना दिया है। इसके कारण उपपरम्परागत (sub-conventional), हाइब्रिड और सीमित युद्धों की संभावना अधिक बढ़ गई है। भारत के आस-पास मजबूत  पड़ोसी देश हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियां विस्तृत स्तर पर व्याप्त हैं, जो निम्नलिखित कारकों के कारण अधिक बिखरी हुई और अस्पष्ट हैं:

  • चीन-पाक धुरी (China-Pak axis) का विकास और राज्य प्रायोजित आतंकवाद से खतरा।
  • उत्तर-पूर्वी और मध्य भारत में आंतरिक विद्रोह (home grown insurgency) में वृद्धि से उत्पन्न आंतरिक सुरक्षा चुनौतियां।
  • वेपन्स ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन (WMD) जैसे परमाणु हथियारों के प्रसार से खतरा।
  • बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ते नृजातीय, जातीय, सांप्रदायिक विभाजन और राजनीतिकरण ने कानून और व्यवस्था की स्थितियों को गंभीर तथा अधिक निरंतर बना दिया है।
  • गैर-क्षेत्रीय चुनौतियां बनी हुई हैं, जैसे: समुद्री सुरक्षा; हिंद महासागर में चीनी नौसेना की उपस्थति; ऊर्जा और सामरिक खनिजों जैसे दुर्लभ संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्द्धा; मानव, हथियार व ड्रग्स की तस्करी तथा संगठित शिकार आदि।

इसके अतिरिक्त, गैर-परम्परागत सुरक्षा चुनौतियां जैसे- खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, जलाभाव, गरीबी इत्यादि सुरक्षा की परिभाषा को इतना व्यापक बना देती हैं कि ऐसा कुछ भी जो चिंता उत्पन्न करे या जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करे, उसे ‘सुरक्षा समस्या’ कहा जाता है । इसके साथ ही सत्तारूढ़ अभिजात्य वर्ग में रणनीतिक और सुरक्षा जागरूकता की कमी, विभाजित दृष्टिकोण और अनौपचारिक निर्णय निर्माण से समस्या के परिमाण में वृद्धि हो जाती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों को प्रतिसंतुलित करने के लिए बहु-अनुशासनात्मक ऊर्ध्व और पार्श्व विचार- विमर्श (multidisciplinary vertical and lateral consultations) एवं त्वरित निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। इसलिए, एक सुसंगत राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के निर्माण की आवश्यकता है। 1999 में कारगिल रिव्यू कमेटी और 2012 में नरेश चंद्र समिति ने रक्षा मंत्रालय को पुनर्गठित करने तथा अन्य सुधारात्मक उपाय करने की आवश्यकता की सिफारिश की थी।

इस संदर्भ में, निम्नलिखित प्रकार की राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत रणनीति (National Security Doctrine Strategy) होनी चाहिए:

  • विभिन्न एजेंसियों के मध्य समन्वय के लिए विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा को सैन्य और असैन्य आयामों के साथ व्यापक अर्थों में परिभाषित करना चाहिए।
  • एक प्रभावी आतंकवाद-रोधी और एक विप्लव-रोधी रणनीति होनी चाहिए।
  • कार्रवाई योग्य आसूचना प्रदान करने के लिए आसूचना एजेंसियों की कार्यप्रणाली का कायाकल्प किया जाना चाहिए।
  • आधुनिक सीमा प्रबंधन के तौर-तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।

उपर्युक्त के अतिरिक्त, यदि एक सुदृढ़ राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत को लागू करना है तो भारत के सुरक्षा संस्थानों की आधार में सुधार किया जाना चाहिए। इसके लिए प्रशासनिक सुधारों की एक विस्तृत श्रृंखला और कुछ चुनौतियों को हल करने की आवश्यकता है, जैसे कि:

  •  विविध क्षमताओं वाली एजेंसियों का गठन और उनके मध्य तालमेल स्थापित करना।
  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) का सृजन और रक्षा संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन।
  • सौहार्द्रपूर्ण नागरिक-सैन्य संबंध।
  • विस्तृत साइबर सुरक्षा नीति।
  • भारत के लिए निरंतर चलने वाले परिवर्तनों एवं उनके प्रभावों को समझना तथा विवेचना करना।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर व्यापक राजनीतिक सर्वसम्मति का निर्माण करना।

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