निवेश की स्विस चुनौती विधि की व्याख्या

प्रश्न: आप निवेश के स्विस चुनौती विधि (Swiss Challenge method) से क्या समझते हैं? इस मॉडल के लाभों और संबंधित समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • निवेश की स्विस चुनौती विधि की व्याख्या कीजिए।
  • इस मॉडल के लाभों पर चर्चा कीजिए। 
  • निवेश के इस मॉडल से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। 
  • उचित निष्कर्ष के साथ उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तरः

स्विस चुनौती विधि, सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया का एक रूप है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत निजी निवेशक द्वारा स्वतः संज्ञान के आधार पर किसी परियोजना का चयन किया जाता है तथा परियोजना को प्रारम्भ करने संबंधी प्रस्ताव को सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसके पश्चात् सरकार द्वारा इसका मूल्यांकन किया जाता है कि निवेशक के पास परियोजना आरम्भ करने हेतु तकनीकी, वाणिज्यिक, प्रबंधकीय और वित्तीय क्षमताएं पर्याप्त हैं या नहीं। तत्पश्चात, इस प्रस्ताव को अपनी मूल्यांकन रिपोर्ट के साथ अनुमोदन हेतु संबंधित अवसंरचना से सम्बद्ध प्राधिकरण को प्रेषित कर दिया जाता है। इस प्राधिकरण द्वारा प्रस्ताव में संशोधन की अनुशंसा की जा सकती है, जिसके पश्चात् मूल प्रस्तावक अपने प्रस्ताव पर पुनर्विचार/संशोधन कर उसे पुनः स्वीकृति हेतु प्रस्तुत कर सकता है।

इसके बाद सरकार द्वारा परियोजना के लिए एक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया आरम्भ की जाती है, जिसमें सरकार अन्य निवेशकों को परियोजना हेतु बोली लगाने की अनुमति प्रदान करती है। सर्वश्रेष्ठ योजना प्रस्तुत करने वाले प्रस्तावक को परियोजना संबंधी अनुबंध प्रदान कर दिया जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं जिनमें मूल प्रस्तावक को उसकी बौद्धिक संपदा हेतु भुगतान किया जाता है और उसे “पहले अस्वीकृत करने का अधिकार (Right of first refusal)” भी प्रदान किया जाता है अर्थात् यदि उसके द्वारा परियोजना को आरम्भ करने से मना कर दिया जाता है, केवल उसी स्थिति में किसी तीसरे पक्ष को अनुबंध प्रदान किया जाता है।

भारत में उच्चतम न्यायालय द्वारा सार्वजनिक परियोजनाओं को इस विधि के माध्यम से प्रदान किए जाने को वैध ठहराया गया है। सरकार ने इस विधि को सड़क और रेलवे परियोजनाओं, आईटी आदि क्षेत्रों में भी लागू किया है।

मॉडल के लाभ हैं:

  • बेहतर मूल्य निर्धारण में सहायता: यह प्रस्तावक को खुली नीलामी एवं एक बंद निविदा प्रणालियों की विशेषताओं को मिश्रित करने की सुविधा प्रदान करता है, ताकि इष्टतम मूल्य प्राप्त किया जा सके।
  • सफलता की सुनिश्चितता: चूँकि प्रारम्भ से ही परियोजना के लिए सदैव एक इच्छुक निवेशक की उपलब्धता बनी रहती है, इस कारण परियोजना के विफल होने की संभावना कम होती है।
  • सार्वजनिक आवश्यकताओं को विकसित करने की पहल: निजी निवेशक नवीन समाधानों और नई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में सहयोग कर सकेंगे।
  • बेहतर परियोजना निर्माण: इच्छुक निवेशकों द्वारा परियोजना-पूर्व अध्ययन किया जाएगा, जिससे परियोजना से संबंधित जोखिम, समय-सीमाओं तथा समय एवं लागत बचत उपायों की शीघ्र पहचान की जा सकेगी।
  • तनावग्रस्त परिसंपत्तियों का समाधान: यदि स्विस विधि को दिवालिया परिसंपत्तियों से संबंधित मामलों में लागू किया जाता है तो बैंक तनावग्रस्त परिसंपत्तियों की नीलामी से अधिक पूंजी प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, जैसा कि हाल ही में कुछ सीमेंट कंपनियों के दिवालिया होने के मामले में परिलक्षित हुआ है।
  • उद्यम को बढ़ावा मिलता है: यह मॉडल लालफीताशाही को समाप्त करता है और निजी क्षेत्रक को उसके नवीन विचारों हेतु पुरस्कृत करता है। इसके अतिरिक्त, यह न केवल सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करता है बल्कि निजी प्रतिभागियों के मध्य प्रतिस्पर्धा और दक्षता को भी बढ़ावा देता है।

इस विधि से संबंधित चुनौतियां:

  • पारदर्शिता का अभाव: भारत में PPP पर विजय केलकर समिति द्वारा स्विस चुनौती विधि की आलोचना की गई है, क्योंकि इनके द्वारा प्रस्तुत अस्पष्ट विवरण के कारण अधिग्रहण प्रक्रिया में सूचनागत अस्पष्टता बनी रहती है।
  • पर्याप्त विनियामकीय ढांचे का अभाव: इस विधि के अंतर्गत परियोजनाओं की प्रदायगी तथा विवाद समाधान के संबंध में पर्याप्त विनियामकीय एवं कानूनी ढांचे का अभाव है।
  • क्रोनी कैपिटलिज्म: इस विधि में कंपनियां परियोजनाओं को अनुचित माध्यमों से प्राप्त कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा मिल सकता है। यह किसी प्रस्तावक को परियोजना से संबंधित विचार प्रस्तुत करने की अनुमति देकर और पहले अस्वीकृत करने का अधिकार प्रदान कर पक्षपात को प्रोत्साहित कर सकती है।
  • बोली लगाने संबंधी असंगतता : बोली लगाने वाले प्रस्तावकों को परियोजना संबंधी प्रस्ताव को तैयार करने हेतु दिए गए समय तथा परियोजना को तैयार करने हेतु मूल प्रस्तावक द्वारा लिए गए समय में अंतर के कारण विभिन्न प्रस्तावकों के मध्य असंगतता विद्यमान रहती है।

हालांकि इन कमियों को उपचारात्मक प्रावधानों के साथ एक केंद्रीय स्विस चुनौती नीति को तैयार करके दूर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, उस प्राधिकारी का स्पष्ट रूप से निर्धारण किए जाने की भी आवश्यकता है जिससे आगामी परियोजना से संबंधित योजनाओं हेतु संपर्क किया जाना हो।

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