भारतीय कृषि क्षेत्रक में महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका

प्रश्न: भारतीय कृषि क्षेत्रक में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को ध्यान में रखते हुए, कृषि उत्पादकता में सुधार लाने के लिए लिंग विशिष्ट हस्तक्षेप महत्पूर्ण हो सकते हैं। चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भारतीय कृषि क्षेत्रक में महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • लिंग विशिष्ट हस्तक्षेप की आवश्यकताओं को स्पष्ट कीजिए।
  • कृषि उत्पादकता में सुधार करने हेतु सहायक लिंग विशिष्ट हस्तक्षेपों पर चर्चा कीजिए।
  • निष्कर्ष दीजिए।

उत्तर

कृषि क्षेत्रक का ‘स्त्रीकरण’ की दिशा में एक स्पष्ट परिवर्तन हुआ है। इस क्षेत्रक में महिलाएं किसानों, उद्यमियों तथा मजदूरों के रूप में कार्य कर रही हैं। देश के कुल कृषि श्रम बल में 42% से अधिक महिलाएं संलग्न हैं। कृषि क्षेत्रक हेतु निर्मित नीतियों को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए उनका निर्माण करते समय इस प्रवृत्ति को ध्यान में रखना आवश्यक है। महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली असंख्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए कृषि में लिंग विशिष्ट हस्तक्षेपों की आवश्यकता है। इन चुनौतियों में शामिल हैं:

  • पुरुषों के बहिवासन के कारण बढ़ता कार्यभार तथा पर्यावरणीय निम्नीकरण के कारण जल एवं ईंधन तक पहुंच में कमी।
  • ऋण का लाभ उठाने हेतु संपार्श्विक के रूप में भूमि तक सुरक्षित पहुंच की कमी क्योंकि 87% महिलाओं के पास भूमि का अभाव है।
  • घरेलू/प्रजनन कार्य का अतिरिक्त बोझ तथा स्वयं के श्रम पर सीमित नियंत्रण।
  • सीमित शैक्षणिक पृष्ठभूमि, खराब आपसी संपर्क (नेटवर्क) और गतिशीलता प्रतिबंध का होना।

इसलिए, प्रायः घर की महिला प्रमुख को फसल पद्धतियों और कृषि व्यवस्था के साथ समायोजन करने हेतु विवश होना पड़ता है। इससे अपर्याप्त कृषि उत्पादकता और कम पौष्टिक फसलों की ओर स्थान्तरण होता है, परिणामस्वरूप कुपोषण और खाद्य असुरक्षा में व्यापक वृद्धि होती है। अतः, लिंग विशिष्ट हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • जेंडर रिस्पान्सिव बजट नीतियां लैंगिक समानता, मानव विकास और आर्थिक दक्षता के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता करेंगी।
  • महिला-कृषकों का क्षमता निर्माण और कौशल उन्नयन।
  • ग्रामीण सहकारी समितियों में अधिमान्य सदस्यता के साथ ही प्रौद्योगिकी, ऋण तथा विपणन तक पहुंच; महिला समूहों की बाजार तक पहुंच को प्रोत्साहित करने वाली संस्थानों को सुदृढ़ करना।
  • इसके सफल उदाहरण हैं- सेवा (SEWA), ग्रामीण बैंक, SHG संघ इत्यादि। महिलाओं को भूमि-स्वामित्व से वंचित करने वाले वंशानुगत कानूनों (inheritance laws) और रीति-रिवाजों को परिवर्तित करना।
  • निर्णय-निर्माण निकायों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना।
  • यथोचित सहायता सेवाएं जैसे- बाल देखभाल सेवाएं- क्रेच (Creche), बालवाड़ी, पर्याप्त मातृत्व एवं स्वास्थ्य देखभाल इत्यादि प्रदान करना।

विभिन्न पहले जैसे प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस के रूप में आयोजित करना तथा मॉडल एग्रीकल्चर लैंड लीजिंग एक्ट, जिसका उद्देश्य भूमि के वास्तविक खेतिहरों को किसानों के रूप में मान्यता प्रदान करना है, इत्यादि सरकार द्वारा उठाए गए स्वागतयोग्य कदम हैं। वास्तव में, संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुमान के अनुसार, यदि महिलाओं की भी पुरुषों के समान उत्पादक संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित की जाए तो वे अपने खेतों पर कृषि उपज में 20-30% तक वृद्धि कर सकती हैं।

आज एक ऐसी समावेशी परिवर्तनीय कृषि नीति की आवश्यकता है, जिसका उद्देश्य लिंग-विशिष्ट हस्तक्षेपों के माध्यम से छोटी कृषि जोतों (holdings) की उत्पादकता में वृद्धि और महिलाओं को ग्रामीण रूपांतरण में सक्रिय अभिकर्ताओं के रूप में एकीकृत करना हो।

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