भारत में बच्चों के विरुद्ध अपराध : उत्तरदायी कारण व उपाय

प्रश्न: विद्यमान व्यवस्था और कानूनों के बावजूद, भारत में बच्चों के विरुद्ध अपराध बढ़ रहे हैं। इस प्रवृत्ति के पीछे उत्तरदायी कारणों की चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए और क्या किया जा सकता है?

दृष्टिकोण

  • भारत में अपराधों के विरुद्ध बच्चों की सुरक्षा के लिए विद्यमान व्यवस्था की चर्चा कीजिए।
  • बच्चों के विरुद्ध अपराधों की वर्तमान स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • विद्यमान व्यवस्था और कानूनों की अप्रभाविता को रेखांकित कीजिए और भारत में बाल संरक्षण के संबंध में विद्यमान चिंताओं के समाधान हेतु उठाये जा सकने योग्य क़दमों का सुझाव दीजिए।
  • आगे की राह का सुझाव देते हुए उत्तर समाप्त कीजिए।

उत्तर

  • भारत में अपराधों के विरुद्ध बच्चों की सुरक्षा से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण नीतियों, विधानों और संस्थागत पहलों को स्थापित किया गया है। बच्चों के विरुद्ध हत्या, बलात्कार, उत्पीड़न, अपहरण आदि जैसे अपराधों को भारतीय दंड संहिता(IPC) के अंतर्गत शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त, POCSO, 2012; किशोर न्याय अधिनियम, 2000, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, बाल श्रम निषेध अधिनियम आदि अनेक विशेष कानून उन अपराधों के निवारण से संबंधित हैं जिनके लिए विशेष ध्यान की अवश्यकता होती है। साथ ही, विभिन्न कानूनों के तहत बाल अधिकार संरक्षण हेतु बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्ड, फैमिली कोर्ट, बाल गृह, बाल अधिकारों की सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय और राज्य आयोगों और राज्य किशोर पुलिस इकाइयों जैसी वैधानिक संस्थाओं और संरचनाओं की भूमिकाओं को परिभाषित किया गया है।
  • इसके बावजूद, भारत में बच्चों के विरुद्ध अपराधों की संख्या में वृद्धि हो रही है। हाल ही में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा प्रस्तुत विवरण के अनुसार बच्चों के विरुद्ध अपराधों (शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, यौन शोषण) में 2009 से 2015 तक लगभग 300% की वृद्धि हुई है।

विद्यमान व्यवस्था के बावजूद बढ़ते अपराधों के कारण:

मौजूदा कानूनी ढांचे में अंतराल:

  • यौन अपराध: POCSO अधिनियम के अंतर्गत किए गए प्रावधानों जैसे अंतरिम मुआवजा का प्रावधान, बाल यौन अपराध की रिपोर्ट करने के लिए किसी भी समय सीमा अवधि का न होना आदि के संदर्भ में जागरूकता का अभाव।
  • बाल श्रम: जमीनी स्तर पर, केवल निषिद्ध क्षेत्रों में कार्य करने वाले बच्चों को चिन्हित करना कठिन कार्य है, जो बाल श्रम के विरुद्ध कानून को अप्रभावी बनाता है।
  • बाल विवाहः बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों को देश में व्यक्तिगत कानूनों द्वारा अप्रभावी (diluted) कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त, इस कानून के अनुसार, बाल विवाह को केवल अनुबंधित पक्षकार के विकल्प पर ही अमान्य घोषित किया जाता है, जो विवाह के समय अवयस्क था।
  • दुर्व्यापार: विभिन्न राज्यों के पुलिस विभागों के मध्य समंवय का अभाव, छिद्रिल सीमाओं (porous boundaries), आश्रय स्थलों (shelter homes) की अपर्याप्त संख्या और उनमें दुर्व्यवहार एवं हिंसा की रिपोर्ट सहित देखभाल की गुणवत्ता की कमी, आदि बाल दुर्व्यापार के विरुद्ध प्रचलित कानूनों को निष्प्रभावी कर देते हैं।
  • साइबर अपराध: शर्म, अपराध-बोध, रिपोर्टिंग संबंधी ज्ञान का अभाव या अपने साथ हुए अपराध की अनुभूति के अभाव के कारण अपराध को दर्ज कराने में असमर्थता विद्यमान है।

मंद कार्यान्वयन:

  • मंद न्यायिक प्रक्रिया और दोषसिद्धि की निम्न दर: अप्रभावी जांच और न्यायिक प्रक्रिया की कमियां आरोपियों को दोषमुक्त सिद्ध करने में सहायता प्रदान करती है।
  • बाल संरक्षण इकाइयों, किशोर पुलिस इकाइयों, महिला पुलिस स्टेशनों आदि जैसे संस्थानों में संवेदनशीलता का अभाव इन अपराधों की रिपोर्टिंग के विरुद्ध एक निरोध के रूप में कार्य करता है।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक:
  • निर्धनता, जाति, असमान लिंगानुपात, बालिकाओं की स्थिति आदि जैसे सामाजिक-आर्थिक कारक बच्चों के विरुद्ध अपराधों की संख्या में वृद्धि करते हैं।

आगे की राह:

  •  बच्चों के विरुद्ध अपराधों से संबंधित कानून और उपाय यथा बाल अनुकूल एवं त्वरित न्यायिक कार्यवाही(expeditious trial), को प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा अद्यतन और कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है।
  • बच्चों के विरुद्ध अपराधों से निपटने के दौरान मेडिकल स्टाफ, शिक्षकों, न्यायिक समुदाय और कानून लागू करने वाली एजेंसियों को संवेदनशीलता प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
  • सड़क और अन्य सार्वजनिक स्थानों को बच्चों के लिए सुरक्षित बनाने हेतु सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा सुनिश्चित करना, पर्याप्त प्रकाश, CCTV कैमरे आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • अपराधों की प्रभावी रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने हेतु बच्चों, निकट परिवार के सदस्यों और अन्य हितधारकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम प्रारंभ किया जाना।
  • शिक्षा के अधिकार जैसे विभिन्न विधायी सुरक्षा उपायों के दायरे में किशोरों (14-18 वर्ष) को शामिल करने हेतु अधिकार आधारित दृष्टिकोण का सार्वभौमीकरण करना।
  • निर्धनता, बेरोजगारी, आर्थिक और लैंगिक असमानता जैसे सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में सुधार करना।

बच्चों के विरुद्ध अपराधों की बढ़ती घटनाओं के परिपेक्ष्य में, उपर्युक्त सुधार देश के प्रत्येक बच्चे के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक होंगे।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.