संविधान एवं जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA)

प्रश्न: किसी व्यक्ति को भारत में संसद हेतु चुनाव लड़ने के अधिकार से किन आधारों पर वंचित किया जा सकता है? क्या जघन्य अपराधों के दोषी व्यक्तियों पर जीवनपर्यन्त प्रतिबंध से राजनीति के अपराधीकरण की समस्या का यथोचित समाधान होगा? चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण

  • संविधान एवं जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) में उल्लिखित चुनाव लड़ने संबंधी निर्हर्ताओं को सूचीबद्ध कीजिए।
  • आजीवन प्रतिबन्ध के कुछ हालिया मुद्दों की चर्चा कीजिए।
  • आजीवन प्रतिबन्ध के पक्ष और विपक्ष की चर्चा कीजिए।

उत्तर

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 चुनाब लड़ने वाले उम्मीदवारों की अहर्ता का निर्धारण करते हैं और संसद को इससे सम्बंधित अन्य प्रावधानों को विकसित करने की अनुमति प्रदान करते हैं। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8, 8A और अन्य प्रावधानों में निर्दिष्ट अपराधों, भ्रष्ट गतिविधियों में संलिप्त होने, कतिपय कानूनों के उल्लंघन आदि के आधार पर अयोग्यता का प्रावधान किया गया है। अयोग्यता की अधिकतम अवधि 6 वर्ष है जिसमें कारावास की अवधि भी सम्मिलित है। विशेष रूप से, चुनाव लड़ने की निर्हर्ता के आधार निम्नलिखित हैं:

  • संवैधानिक (अनुच्छेद 102, 191): लाभ का पद धारण करना, विकृतचित्त (एक सक्षम न्यायालय द्वारा घोषित), अकृत दिवालिया, जो भारत का नागरिक न हो और संसद द्वारा निर्मित किसी भी विधि के तहत अयोग्य व्यक्ति।
  • वैधानिक (जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धाराएँ 8, 8A, 9, 9A, 10, 10A): 
  • IPC, 1860 में उल्लिखित कुछ अपराध, जैसे विभिन्न समाजिक समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना, रिश्वतखोरी, बलात्कार, पति/सम्बन्धी द्वारा किसी महिला के प्रति क्रूरता।
  • अस्पृश्यता का प्रचार और आचरण (नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955)।
  • अन्य अधिनियमों के अंतर्गत किए गए अपराध जैसे नारकोटिक्स एक्ट, FERA, गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, आंतकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम आदि।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्स (ADR) के अनुसार, 16वीं लोकसभा में चुने गए 34 प्रतिशत सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं। 2009 और 2004 में यह आंकड़ा क्रमशः 30 प्रतिशत और 24 प्रतिशत प्रतिशत दर्ज किया गया था। इस प्रकार, राजनीति का अपराधीकरण एक प्रमुख चिंता का विषय है। राजनेताओं के बड़े पैमाने पर भ्रष्ट आचरण एवं पतनोन्मुख नैतिक स्तर को देखते हुए चुनाव आयोग ने भी जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराए गये विधायकों पर आजीवन प्रतिबन्ध लगाए जाने का समर्थन किया है।

आजीवन प्रतिबन्ध इस समस्या का एक समाधान हो सकता है क्योंकि:

  • यह राजनेताओं को आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने से रोकेगा।
  • साफ छवि (रिकार्ड) के लोग ही चुनाव में भाग लेंगे।

हालाँकि, आजीवन प्रतिबन्ध निम्नलिखित कुछ कारणों से सफल नहीं हो सकता:

  • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव और केंद्र सरकार द्वारा इसका विरोध।
  • आधुनिक लोकतंत्र, नागरिकों की अधिकतम भागीदारी के सिद्धान्तों पर निर्मित हुआ है और यहाँ तक कि अपराधियों को भी इन बुनियादी अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • भारतीय न्याय व्यवस्था, विलंब और भ्रष्ट आचरण से ग्रसित है, इसलिए ऐसा प्रतिबन्ध निर्दोष लोगों पर अनुचित कठोरता के रूप में कार्य कर सकता है।

इसलिए, यह नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राजनीति के अपराधीकरण की समस्या से निपटने के लिए उच्च नैतिक मानकों और साफ छवि वाले लोगों का सतर्कता से चुनाव करें। इसी प्रकार, दलों को भी राजनीति के अपराधीकरण की समस्या से निपटने के लिए साफ छवि वाले प्रत्याशियों को चुनाव में उतारना चाहिए।

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