कृषि में जल उपयोग दक्षता : सिंचाई तक पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व

प्रश्न: जहाँ सिंचाई तक पहुँच महत्वपूर्ण है, वहीँ जल उपयोग दक्षता भी यदि अधिक नहीं तो उतनी ही महत्वपूर्ण है। परीक्षण कीजिए।

दृष्टिकोण

  • सिंचाई तक पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व की संक्षिप्त जांच कीजिए।
  • कृषि में जल उपयोग दक्षता सुनिश्चित करने की आवश्यकता को विस्तार से सिद्ध कीजिए।

उत्तर

  • सिंचाई, वर्षा और सूखे की अनियमितताओं के विरुद्ध एक सुरक्षात्मक भूमिका का निर्वहन करती है। उच्च पैदावार वाली किस्मों को अपनाने के साथ-साथ, रासायनिक उर्वरक और विविध फसलें, अत्यधिक नियंत्रित सिंचाई उत्पादक कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कृषि के लिए कृषि योग्य भूमि के सर्वोत्तम उपयोग हेतु मार्ग प्रशस्त करता है। हालांकि, जल के अभाव से त्रस्त देश में, जहां कृषि हेतु कुल जल का लगभग 70 प्रतिशत उपयोग होता है वहाँ यह अति आवश्यक है कि जल के उपयोग को इसके अवशोषण में वृद्धि और दुरूपयोग को कम करके दक्ष बनाया जाए।
  • जल उपयोग दक्षता, प्रभावी जल उपयोग और वास्तविक जल निकासी के मध्य अनुपात को सूचित करती है। इसके द्वारा यह वर्णित किया जाता है कि फसलों में जल को कितने प्रभावी ढंग से वितरित किया जाना है और साथ ही यह भूमि, खेत, कमान क्षेत्र या प्रणाली स्तर पर जल की व्यर्थ होने वाली मात्रा को इंगित करता है।
  • वर्तमान संदर्भ में, भारत के लगभग 52% कृषि क्षेत्र अर्थात 141.4 मिलियन हेक्टेयर शुद्ध बोए गए क्षेत्र में 73.2 मिलियन हेक्टेयर अभी भी सिंचित नहीं हैं। इस प्रकार, सिंचाई तक पहुंच सुनिश्चित करना कृषि उत्पादकता में क्षेत्रीय और आकारश्रेणी असमानताओं को कम करने के लिए उचित है जो प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक-आर्थिक असंतुलन को प्रभावित करता है।
  • सिंचाई की उपलब्धता के साथ-साथ, पंजाब और हरियाणा में चावल की पैदावार (उपज) देश में सबसे अधिक है (चीन की तुलना में)। साथ ही, छत्तीसगढ़ और झारखंड के कम उपज वाले क्षेत्रों में काफी हद तक इनकी वृद्धि हुई है। हालांकि, पंजाब में प्रयुक्त जल की मात्रा झारखंड में उपयोग होने वाले (जल की मात्रा से) लगभग 3 गुना अधिक है। इससे यह संकेत मिलते हैं कि जल के उपयोग की दक्षता में सुधार के साथ, उच्च पैदावार (क्षमता) भी प्राप्त की जा सकती है।

जल उपयोग दक्षता का महत्व:

  • कृषि से अलग होती अर्थव्यवस्था का विविधीकरण, बढ़ती आबादी और बढ़ते शहरीकरण ने भारत जैसे विकासशील देशों में जल के लिए अंतर-क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा की गति को बढ़ा दिया है।
  • भारत जैसे जल अभाव ग्रस्त देश में कृषि क्षेत्र में लगभग 78 प्रतिशत ताज़े जल का उपयोग होता है और खाद्यों में होने वाली खपत और उत्पादन के मौजूदा प्रक्रियाओं की प्रवृत्ति के निरंतर बने रहने पर कुल वाष्पन-उत्सर्जन की मात्रा आगामी 50 वर्षों तक दोगुना होने की संभावना है।
  • सूखा जैसे प्राकृतिक आपदाओं के लिए कृषि की भेद्यता जलवायु परिवर्तन के साथ ही बढ़ने की संभावना है, जो इसे अपर्याप्त जल संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए इसे और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।
  • निम्नस्तरीय कृषि-जलवायु परियोजना के कारण, उस क्षेत्र की फसल पैटर्न से संबंधित सिंचाई जल क्षमता (विशेष रूप से चावल और गन्ना जैसे अधिक जल खपत वाले फसलों के लिए) के साथ असंतुलित हैं। उदाहरण के लिए भारत के अपेक्षाकृत जल की बहुलता वाले पूर्वी राज्य चावल और गन्ना के उत्पादन में पीछे रह गए हैं। भारतीय कृषि के लिए भूमि की तुलना में जल स्वयं को एक बाधा के रूप में प्रस्तुत करता है।
  • सिंचाई के आधारभूत संरचनाओं में अत्यधिक निवेश करना उद्देश्यपूर्ण नहीं हो सकता, जब तक कि इसके माध्यम से कृषि में उच्च जल उपयोग दक्षता को बढ़ावा देने हेतु नीतियां और कार्यक्रम विद्यमान न हों। हाल ही में नाबार्ड द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ने फसल उत्पादकता से जल उत्पादकता में बदलाव की आवश्यकता को इंगित किया है, जिसका अर्थ यह है कि भूमि क्षेत्र की प्रति इकाई में उत्पाद की प्रति इकाई उत्पादकता पर पुनः एक बार ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, इस प्रकार ‘प्रति बूंद अधिकतम फसल’ (more crop per drop) के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।
  • इसे ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली, सुदृढ़ कृषि-जलवायु परियोजना, वाटरशेड के विकास और जल संचयन एवं प्रबंधन परियोजनाओं को बढ़ावा देकर प्राप्त किया जा सकता है। कृषि कार्य में जल की सदुपयोगिता, जल का संरक्षण और पर्यावरणीय दृष्टि से संधारणीय बनाने में ही भविष्य निहित है।

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