भक्ति साहित्य का एक संक्षिप्त परिचय

प्रश्न: 1000 से 1800 ई. के बीच मध्यकालीन भारतीय साहित्य का सबसे मजबूत चलन भक्तिपरक (भक्ति) कविताएं हैं, जो देश की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में प्रमुखता से विद्यमान हैं। टिप्पणी कीजिए।

दृष्टिकोण

  • भक्ति साहित्य का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  • उन उदाहरणों को प्रस्तुत कीजिए जो विभिन्न भाषाओं में भक्ति काव्य की प्रधानता को दर्शाते हैं।

उत्तर

भक्ति साहित्य, धर्म का एक काव्यात्मक तथा काव्य (कविता) का एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। भक्ति आंदोलन सातवीं सदी के दौरान तमिलनाडु में प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे उत्तर की ओर प्रसारित हुआ। परिणामस्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं में भक्तिपरक काव्य को बढ़ावा मिला और साथ ही सभी भाषाओं में लौकिक प्रेम सम्बन्धी काव्य के पुराने स्वरुप को नवीन व्याख्या एवं नवीन अर्थ प्रदान किया गया।

विभिन्न भक्ति संतों द्वारा अपनी शिक्षाओं को जनसामान्य तक सरलता से पहुँचाने के लिए पारंपरिक भाषाओं जैसे संस्कृत का प्रयोग नहीं किया बल्कि उसके स्थान पर तमिल, बंगाली, मराठी, हिंदी आदि भाषाओं का प्रयोग किया। उदाहरण के लिए:

  • कन्नड़ साहित्य, कृष्ण, राम और शैव संप्रदायों के विभिन्न संतों जैसे बासवन्ना, अल्लामा प्रभु, अक्का महादेवी आदि के वचनों से समृद्ध हुआ।
  • मराठी साहित्य में, ज्ञानेश्वर, एकनाथ और तुकाराम आदि साहित्यकारों द्वारा लघु काव्य कथाओं, भक्तिपरक अभंग (एक साहित्यिक रूप) और गीतों की रचना की गयी।
  • 12 वीं शताब्दी में, नरसी मेहता एवं प्रेमानंद आदि गुजराती कवियों की गणना प्रमुख वैष्णव कवियों में की जाती थी।
  • चैतन्य और चंडीदास द्वारा राधा और कृष्ण के प्रेम के विषय पर विस्तृत लेखन हेतु बंगाली भाषा का प्रयोग किया गया। इसने वैष्णववाद को एक धार्मिक के साथ-साथ साहित्यिक आंदोलन में परिवर्तित कर दिया।
  • चौदहवीं शताब्दी में, लल्लेश्वरी (जिन्हें लाल देद के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा रचित ‘वोख’, कश्मीरी भाषा की प्रारंभिक रचनाओं में से एक है। लल्लेश्वरी कश्मीरी शैववाद की रहस्यवादी रचनाकार हैं।
  • 15वीं शताब्दी के अंतिम एवं 16वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में, एक असमिया भक्ति कवि शंकर देव द्वारा वैष्णववाद का प्रचार-प्रसार करने हेतु नाटक (अंकिया-नट) और कीर्तन (भक्ति गीत) का प्रयोग किया गया।
  • इसी प्रकार, एक महान प्रसिद्ध कवि जगन्नाथ दास ने ओड़िया में भागवत (कृष्ण की कहानी) की रचना की, जिसने आध्यात्मिक रूप से उड़ीसा के सभी लोगों को एकजुट करने का कार्य किया और उनमें एक जीवंत चेतना उत्पन्न की।
  • भक्ति संतों जैसे कबीर, नानक, सूरदास और मीराबाई आदि संतों द्वारा हिंदी के प्रारम्भिक भाषाई स्वरूप का प्रयोग किया गया, जिसने हिंदी को एक महत्वपूर्ण दर्जा प्रदान किया गया।

इसप्रकार, भक्तिपरक कविताएं देश की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में प्रमुखता से विद्यमान हैं।

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