भारत को वैश्विक तेल की अस्थिर कीमतों से सुरक्षित करने के लिए दीर्घकालिक उपाय
प्रश्न: कच्चे तेल की उच्च वैश्विक कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती हैं? दीर्घावधि में भारत को वैश्विक तेल की अस्थिर कीमतों से सुरक्षित करने के लिए उत्तरोत्तर कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं? (250 शब्द)
दृष्टिकोण
- कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में हालिया वृद्धि का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी पहलुओं के लिए कच्चे तेल की उच्च वैश्विक कीमतों के शुद्ध नकारात्मक प्रभाव की चर्चा कीजिए।
- भारत को वैश्विक तेल की अस्थिर कीमतों से सुरक्षित करने के लिए दीर्घकालिक उपाय सुझाइए।
उत्तर
कच्चे तेल की उच्च वैश्विक कीमतों के लिए मांग और आपूर्ति संबंधी कारकों को उत्तरदायी माना जा सकता है। कच्चे तेल की कीमतों में हालिया वृद्धि मुख्य रूप से आपूर्ति कारकों जैसे वेनेजुएला संकट और OPEC सदस्यों एवं रूस द्वारा कार्टेलाइज़ेशन (Cartelization) से सम्बंधित है। यह परमाणु समझौते से अमेरिका के एकपक्षीय निकास (unilateral exit) और ईरान पर प्रतिबंध आरोपित करने जैसे भू-राजनीति से भी प्रभावित हुई है।
इससे तेल निर्यात करने वाले देश लाभान्वित हुए हैं, जबकि तेल आयात करने वाले देशों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। ऐसे परिदृश्य में, भारतीय अर्थव्यवस्था निम्नलिखित रूपों में प्रभावित हुई है:
- विदेशी मुद्रा भंडार में कमी: देश के आयात बिल में कच्चे तेल के आयात का अंश लगभग 80% है। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण आयात बिल में भी उच्च वृद्धि होती है और परिणामतः भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होगी।
- चालू खाता घाटा (CAD): निर्यात में होने वाली वृद्धि के बिना कच्चे तेल के आयात में वृद्धि के कारण CAD में वृद्धि होगी।
- राजकोषीय दबाव: कीमतों में वृद्धि से सरकार के ईंधन सब्सिडी संबंधी व्यय में वृद्धि होगी जिससे उपलब्ध राजकोषीय विस्तार पर दबाव पड़ेगा।
- मुद्रास्फीति: उच्च कीमतों का प्रभाव खुदरा कीमतों पर भी होगा जिससे सामान्य मूल्य स्तर में वृद्धि हो सकती है।
- व्यक्तिगत क्रय शक्ति में कमी: मुद्रास्फीति में वृद्धि परिवारों की वास्तविक प्रयोज्य आय को कम करके उपभोक्ताओं की स्वैच्छिक मांग (discretionary demand) को हानि पहुंचा सकती है।
- निर्यात: तेल निर्यात भारत की निर्यात बास्केट का प्रमुख घटक है। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण ये निर्यात भी महंगे होंगे और इसलिए, अप्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
- कॉर्पोरेट लाभप्रदता पर प्रभाव: विभिन्न उद्योग अपने अंतिम उत्पादों के लिए कच्चे माल के रूप में कच्चे तेल और इसके सह उत्पादों का उपयोग करते हैं और इनकी कीमतों में वृद्धि उनके लाभांश को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी।
भारत को कच्चे तेल की अस्थिर कीमतों से सुरक्षित रखने के उपाय:
- मांग में कमी- कच्चे तेल के विकल्प को विकसित करना। जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 में प्रावधानित इथेनॉल आधारित जैव ईंधन उत्पादन में वृद्धि के माध्यम से मिश्रण अनुपात (blending proportion) का विस्तार करना।
- आयात निर्भरता में कमी लाना – देश में कुल डीजल बिक्री का लगभग 70% हिस्सा परिवहन क्षेत्र के लिए होता है। इसलिए, प्रोत्साहन तंत्र और सहायक आधारभूत अवसंरचनाओं के विकास के माध्यम से इसे इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में तीव्रता से स्थानांतरित करना आवश्यक है।
- भारत की वृद्धिशील ऊर्जा सुरक्षा संरचना के एक भाग के रूप में स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व का निर्माण।
- भारत की ऊर्जा बास्केट का विविधीकरण करना – भारत को जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करते हुए जैव ईंधन सहित नवीकरणीय विद्युत आपूर्ति पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
- भारत के निर्यात में वृद्धि – भारत के निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए मेक-इन-इंडिया और विशेष आर्थिक क्षेत्र जैसी योजनाओं के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।
- ईंधन को वस्तु एवं सेवा कर के तहत लाने के नए तरीकों की खोज की जानी चाहिए। यह उपयोगकर्ताओं पर अवांछित बोझ को कम करेगा और लीकेज से सुरक्षा प्रदान करेगा। साथ ही इससे दक्षता में भी सुधार होगा।
सरकार द्वारा वर्तमान परिस्थितियों का उपयोग तेल के आयात पर देश की निर्भरता में कमी और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने के एक अवसर के रूप किया जाना चाहिए। इसके साथ ही तेल बाजार में विद्यमान अवांछित विकास की स्थिति में अपने वित्तीय बाजारों को कम अस्थिर बनाया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, कुछ स्थानों पर स्ट्रेटेजिक रिज़र्व के निर्माण की वर्तमान नीति कच्चे तेल के वैश्विक बाजार में अल्पकालिक आघातों से भारतीय अर्थव्यवस्था को सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
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