भारत में मृदा प्रदूषण के लिए उत्तरदायी कारक : पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर इसके प्रभाव

प्रश्न:भारत में मृदा प्रदूषण के लिए उत्तरदायी कारकों का परीक्षण कीजिए। विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर इसके प्रभाव की विवेचना करते हुए, प्रदूषित मृदा का जीर्णोद्धार करने के लिए कुछ उपचारात्मक उपायों का सुझाव दीजिए।

दृष्टिकोण

  • मृदा प्रदूषण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • भारत में मृदा प्रदूषण के लिए उत्तरदायी कारकों का परीक्षण कीजिए।
  • विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  • कुछ उपचारात्मक उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

मृदा प्रदूषण, मृदा में ऐसे रसायनों या पदार्थों की मौजूदगी को संदर्भित करता हैं, जो सामान्य सांद्रता की तुलना में अधिक सांद्रता में अनुपस्थित या उपस्थित होते है, तथा जिसका गैर-लक्षित जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भारत में मृदा प्रदूषण के लिए उत्तरदायी मुख्य कारक निम्नलिखित हैं:

  • मानवजनित कारक
  • औद्योगिक गतिविधियों में उपयोग होने वाले या उपोत्पाद के रूप में उत्पादित रसायन।
  • रसायनों के घरेलू स्तर पर उत्पादन एवं उचित निपटान तंत्र की अनुपस्थिति होना।
  • पशुधन एवं नगरपालिका अपशिष्ट (अपशिष्ट जल सहित) 
  • एग्रोकेमिकल्स, फार्मास्यूटिकल संबंधी अपशिष्ट, जैविक प्रदूषक एवं पेट्रोलियम-व्युत्पन्न उत्पाद।
  •  पर्यावरण में आकस्मिक रूप से निर्मुक्त रसायन, उदाहरणार्थ: रिसाव, तेल रिसाव या लैंडफिल से निक्षालन द्वारा, या स्वेच्छा से जैसे उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग करना, अनुपचारित अपशिष्ट जल द्वारा सिंचाई।
  • प्रगलन (smelting), परिवहन, कीटनाशक अनुप्रयोगों से स्प्रे ड्रिफ्ट तथा कई पदार्थों के अपूर्ण दहन के कारण वायुमंडलीय जमाव के परिणामस्वरूप मृदा प्रदूषक संग्रहित होते हैं।

प्राकृतिक कारक

  • वनाग्नि (forest fire) जैसी परिघटनाओं के कारण प्राकृतिक मृदा प्रदूषण होता है।
  • प्राकृतिक प्रक्रियाओं का मृदा में मानव द्वारा निर्मुक्त विषैले रसायनों पर भी प्रभाव पड़ सकता है, यह मृदा की सकल प्रदूषक विषाक्तता या संदूषण स्तर को बढ़ा अथवा घटा सकते है।

विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं पर प्रभाव

  • मृदा प्रदूषण खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है क्योंकि संदूषित पदार्थों के विषाक्त स्तर के कारण फसल की पैदावार कम होती है, साथ ही संदूषित मृदा में उत्पादित फसलें पशुओं एवं मनुष्यों के उपभोग हेतु असुरक्षित भी होती है।
  • अधिकांश संदूषित पदार्थ मृदा के माध्यम से सतही जल और भौमजल में पहुँच जाते हैं, अतः सुपोषण (eutrophication) द्वारा व्यापक पर्यावरणीय क्षति होती है, साथ ही दूषित पेयजल के कारण मानव स्वास्थ्य भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है।
  • प्रदूषक प्रत्यक्ष रूप से मृदा के सूक्ष्मजीवों एवं वृहत स्तर पर मृदा में रहने वाले जीवों को भी हानि पहुंचाते हैं साथ ही इसके परिणामस्वरूप मृदा की जैव विविधता तथा प्रभावित जीवों द्वारा प्रदत्त सेवाएं भी प्रभावित होती हैं।

उपचारात्मक उपाय

मृदा उपचारात्मक तकनीकों को दो मुख्य समूहों में विभाजित किया जा सकता है: इन सीटू (स्व स्थाने ) तथा एक्स-सीटू (बाह्य स्थाने) उपचार। अतः इस संदर्भ में उपलब्ध उपचारात्मक विकल्पों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

  • भौतिक उपचारात्मक: इसमें वेपर एक्सट्रैक्शन, एयर स्पार्जिंग, वॉशिंग/पंप एंड ट्रीट, इलेक्ट्रो-रेमेडिएशन और पार्टिकल सॉर्टिंग जैसी तकनीकें शामिल हैं।
  • रासायनिक उपचार: इसमें ऑक्सीडेशन, रिडक्शन, हाइड्रोलिसिस, डाईक्लोरिनेशन और pH मैनिपुलेशन जैसी तकनीक शामिल हैं।
  • जैविक उपचार: इसमें माइक्रोबियल गतिविधि, लैंडफार्मिंग, बायो-पाइलिंग, कम्पोस्टिंग, बायोरिएक्टर, बायोलिचिंग एवं फाइटोडिग्रडेशन जैसी तकनीकें शामिल हैं।

साथ ही, मृदा संदूषण को कम करने हेतु सुदृढ़ नियामक कार्यक्रमों को प्रारंभ करने की आवश्यकता हैं। सरकार को कृषिगत मृदा प्रदूषण को रोकने के लिए उर्वरकों पर अपनी नीतियों को विनियमित करने की भी आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त प्लास्टिक एवं विभिन्न अन्य सामग्रियों के पुनर्चक्रण (recycling) द्वारा भराव क्षेत्र (लैंडफिल) में मलबा या अपशिष्ट की मात्रा को कम करना चाहिए, यह मृदा प्रदूषण के विरुद्ध प्रभावी उपाय हो सकता है।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.