MSP की अवधारणा और इसके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन

प्रश्न: फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कृषि संकट का एक अल्पकालिक समाधान है जो दीर्घकालीन समस्याएं पैदा करता है। परीक्षण कीजिए। MSP व्यवस्था की कमियों से निजात पाने हेतु उपाय सुझाइए।

दृष्टिकोण

  • MSP की अवधारणा और इसके महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  • वर्तमान MSP व्यवस्था से संबंधित दीर्घकालिक समस्याओं का निरीक्षण कीजिए।
  • MSP व्यवस्था की कमियों से निजात पाने हेतु उपाय तथा विकल्प सुझाइए।

उत्तर

न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimun Support Price: MSP) सरकार द्वारा एक बाजारीकृत हस्तक्षेप है, जिसके अंतर्गत कृषि उत्पादकों को कीमतों में तीव्र गिरावट की स्थिति में फसलों का उचित मूल्य उपलब्ध कराया जाता है। MSP को लागू करने के पीछे प्रमुख उद्देश्य किसानों को उनकी उपज अथवा फसलों हेतु गारंटीकृत मूल्य और सुनिश्चित बाजार प्रदान करने के साथ ही उन्हें कीमतों में उतार-चढ़ाव और बाजार की त्रुटियों से संरक्षित करना है। हालांकि, MSP विभिन्न मुद्दों से संबंधित है, जैसे कि:

  • फसल प्रतिरूप का विरूपण- दालों, तिलहन और मोटे अनाजों जैसी फसलों के स्थान पर गेहूं, चावल तथा गन्ने की खरीद  पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • कृषि पारिस्थितिकी का निम्नीकरण– कृषि-जलवायु क्षेत्र के लिए प्रतिकूल फसलें कृषि भौम जलस्तर के ह्रास, मृदा निम्नीकरण तथा जल की गुणवत्ता में गिरावट का कारण बनती हैं। उदाहरण स्वरुप, पंजाब और हरियाणा (अर्द्ध शुष्क क्षेत्र) में चावल की कृषि हेतु अनुपयुक्त परिस्थिति होने के बावजूद चावल को व्यापक रूप से उगाया जाता है। इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के भौम जलस्तर का ह्रास हुआ है।
  • क्षेत्रीय असंतुलन- पूर्वी राज्यों में खरीद अवसंरचना (प्रोक्योरमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर) का अभाव है, जिस कारण इन राज्यों के किसान MSP के मौद्रिक लाभ के साथ-साथ सरकार द्वारा सुनिश्चित खरीद के लाभ से भी वंचित रह जाते हैं। कृषिगत प्राक्कलनों (agriculture estimates) पर शांता कुमार की रिपोर्ट के अनुसार देश के लगभग 4% किसान ही MSP व्यवस्था द्वारा लाभान्वित होते हैं।
  • एक बीमा, न कि प्रतिफल – MSP एक बीमा है न कि लाभकारी मूल्य- एम.एस. स्वामीनाथन समिति द्वारा MSP को उत्पादन लागत से डेढ़ गुना तक करने की अनुशंसा की गई है।
  • ऋण दायित्व- ऋण दायित्व के कारण संसाधन विहीन सीमांत तथा छोटे भूमिधारकों को फसलों का एक पर्याप्त अनुपात स्थानीय निजी व्यापारियों और इनपुट डीलरों को बेचना पड़ता है।

MSP व्यवस्था की कमियों से निजात पाने हेतु विभिन्न उपाय निम्नलिखित हैं:

  • MSP व्यवस्था के तहत खरीद के दायरे में वृद्धि। यह किसी विशिष्ट क्षेत्र या फसलों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए।
  • MSP घोषणाओं में अंतराल एवं राज्यवार जागरूकता स्तर में व्याप्त भिन्नताओं को दूर करना।
  • केंद्र सरकार द्वारा MSP की गणना तथा इसके क्रियान्वयन तंत्र की कार्य-प्रणाली पर राज्य सरकार के साथ यथार्थपूर्ण परामर्श करना। शीघ्र भुगतान को सुनिश्चित करना।
  • MSP को बुआई मौसम से पूर्व ही घोषित किया जाना चाहिए ताकि किसान फसलों को योजनाबद्ध रूप से उगाने में सक्षम हो सकें।

MSP संबंधी निम्न विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिए:

  • प्राइस डेफिशियेंसी पेमेंट: इस व्यवस्था के तहत MSP और बिक्री मूल्य के बीच के अंतर को प्रतिपूर्ति के रूप में बैंक खातों में प्रत्यक्ष अंतरण के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है।
  • यह अधिकांश भंडार (stock) का विक्रय सरकार को किये जाने संबंधी समस्या का भी समाधान करेगा।
  • क्षेत्रीय नियोजन/प्रतिबंध: उदाहरणार्थ UK में 5 हेक्टेयर से अधिक के सभी खेतों में फसल उगाने हेतु भूमि उपयोग के लिए अनुमोदन प्राप्त करना जरुरी होता है। यह किसी विशिष्ट फसल के अंतर्गत कृषि क्षेत्र को प्रतिबंधित कर अत्यधिक उत्पादन के कारण होने वाली कीमतों की गिरावट को नियंत्रित कर सकता है।
  • प्रत्यक्ष आय समर्थन: तेलंगाना एवं कर्नाटक में कृषि क्षेत्र के आधार पर प्रत्यक्ष आय समर्थन का प्रावधान किया गया है। इसमें MSP की तुलना में निम्न विरूपणकारी प्रभाव के रूप में लाभ प्राप्त होगा।

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