सिर पर मैला ढोने की प्रथा का वर्णन : सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा की अनियंत्रित मौजूदगी के पीछे उत्तरदायी कारणों का विश्लेषण

प्रश्न: यद्यपि 25 वर्ष पूर्व ही सिर पर मैला ढोने की प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था, तथापि भारत में यह प्रथा अभी भी प्रचलित है। इस समस्या के पीछे उत्तरदायी कारणों का विश्लेषण करते हुए, चर्चा कीजिए कि इससे निपटने के लिए क्या किया जा सकता है। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • सिर पर मैला ढोने की प्रथा का वर्णन कीजिए तथा इसके प्रचलन की वर्तमान स्थिति के विषय में कुछ तथ्यों/आंकड़ों को स्पष्ट कीजिए।
  • सिर पर मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित करने हेतु किए गए प्रयासों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  • सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा की अनियंत्रित मौजूदगी के पीछे उत्तरदायी कारणों का विश्लेषण कीजिए तथा संभावित समाधानों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

सिर पर मैला ढोना या मैनुअल स्केवेन्जिंग शुष्क शौचालयों तथा सीवरों से मानव मल की हाथों से सफाई, ढुलाई, निपटान या किसी भी अन्य रूप में उसके समाधान को संदर्भित करता है। सामाजिक, आर्थिक एवं जातिगत जनगणना, 2011 के अनुसार 167,487 परिवारों ने परिवार के एक सदस्य को सिर पर मैला ढोने वाले के रूप में दर्ज करवाया है।

वर्ष 1993 में भारत सरकार द्वारा सिर पर मैला ढोने वालों के रूप में लोगों के नियोजन को गैरकानूनी घोषित किया गया तथा उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2013 में ‘सिर पर मैला ढोने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत इस उद्देश्य को दोहराया गया था। इसके बावजूद अभी भी भारत में यह कुप्रथा एक सामाजिक बुराई के रूप में प्रचलित है।

इसके कुछ पहचाने गए संभावित कारण निम्नलिखित हैं:

  • अस्वास्थ्यकर शौचालय: पुराने अस्वास्थ्यकर शौचालयों की व्यापक विद्यमानता। जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 2.6 मिलियन शुष्क शौचालय हैं, अर्थात् ऐसे शौचालय जहाँ जल का प्रयोग नहीं होता तथा मल का निपटान हाथों से किया जाता है।
  • राज्यों में भिन्नता: संविधान की 7वीं अनुसूची के अंतर्गत स्वच्छता राज्य सूची का विषय है। इसी कारण सिर पर मैला ढोने के प्रतिषेध का क्रियान्वयन सम्पूर्ण देश में एक समान नहीं है।
  • विधिक कमियां: 2013 का अधिनियम इसे सख्ती से प्रतिबंधित नहीं करता है क्योंकि यह सिर पर मैला ढोने संबंधी कुछ कार्यों को अनुमति प्रदान करता है (जैसे नियोक्ता द्वारा सुरक्षात्मक उपकरणों को उपलब्ध करवाने पर सेप्टिक टैंक्स की हाथों से सफाई तथा रेलवे यात्री कोच में सुरक्षात्मक उपकरणों का प्रयोग कर वॉटर फ्लश वाले शौचालयों की हाथ से सफाई)।
  • जागरुकता की कमी: सिर पर मैला ढोने का कार्य अधिकतर समाज के हाशिए पर स्थित वर्ग द्वारा किया जाता है तथा सामान्यत: वे अपने अधिकारों के प्रति जागरुक नहीं होते।
  • निरक्षरता तथा निम्न कौशल : सिर पर मैला ढोने वाले अधिकांश लोग निरक्षर होते हैं तथा स्वच्छता से संबंधित कार्य के अतिरिक्त उन्हें किसी अन्य प्रकार के कार्य का अनुभव या ज्ञान नहीं होता। उनमें स्व-रोजगार परियोजनाओं के संचालन हेतु आत्म-विश्वास का अभाव होता है। उनमें से अनेक किसी कौशल विकास प्रशिक्षण का लाभ उठाने को भी तैयार नहीं हैं।
  • ऋण तक पहुंच: बैंक सिर पर मैला ढोने वालों को ऋण प्रदान करने के संबंध में संशय की स्थिति में रहते हैं। इसी प्रकार सफाई कर्मचारियों से ऋण वापसी की निम्न दर के कारण विभिन्न राज्य चैनलाइजिंग एजेंसियां भी सिर पर मैला ढोने वालों तक ऋण के विस्तार हेतु इच्छुक नहीं हैं।
  • जाति प्रथा: जातीय पदानुक्रम अभी भी विद्यमान है तथा यह व्यवसाय के साथ जातीय संबंध को सुदृढ़ बनाता है। सिर पर मैला ढोने वाले लगभग सभी लोग निम्न जाति से संबंधित होते हैं।

यद्यपि सरकार ने इस प्रथा से निपटने हेतु कई उपाय किए हैं जैसे कि सिर पर मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित करने के लिए विधि निर्माण, सिर पर मैला ढोने वालों के कौशल विकास हेतु योजनाएं, शुष्क शौचालयों का फ्लश शौचालयों में परिवर्तन, कंपोजिट टॉयलेटों एवं बायो टॉयलेटों को बढ़ावा देना इत्यादि। परन्तु अभी और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है, जैसे कि:

  • स्वच्छ भारत अभियान द्वारा संयुक्त एवं जैव शौचालयों को बढ़ावा दिया जाना।
  • सिर पर मैला ढोने वालों से संबंधित मौजूदा योजनाओं तथा कार्यक्रमों की निगरानी हेतु नियमित सर्वेक्षण तथा समाजिक लेखा परीक्षण किया जाना।
  • आजीविका के वैकल्पिक स्रोत हेतु सिर पर मैला ढोने वालों की पहचान करना तथा उनमें क्षमता निर्माण करना।
  • सिर पर मैला ढोने वालों के विधिक संरक्षण के संबंध में जागरुकता उत्पन्न करना तथा ऐसे कानूनों में विद्यमान अस्पष्टता को समाप्त करना।
  • सभी रेलवे यात्री कोचों में बायो/वैक्यूम टॉयलेट की व्यवस्था करना।
  • सेप्टिक टैंकों तथा नालियों की सफाई के लिए मानव के प्रवेश करने की प्रथा का उन्मूलन करने के उद्देश्य से प्रौद्योगिकीय नवाचार।
  • सामुदायिक सम्पर्क कार्यक्रमों के माध्यम से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रो में जाति आधारित सामाजिक विभाजन को कमजोर करना, जनसम्पर्क साधनों, नागरिक समाज, पंचायती राज संस्थानों (PRIs), स्वयं-सहायता समूहों (SHGs) तथा गैरसरकारी संगठनों (NGOs) के माध्यम से सामाजिक जागरुकता, बच्चों में मूल्य आधारित शिक्षा का विकास तथा प्रासंगिक योजनाओं एवं कानूनों के सख्ती से क्रियान्वयन के माध्यम से समाजिक-आर्थिक गतिशीलता को सुनिश्चित करने के द्वारा जाति-व्यवसाय सम्बन्ध को समाप्त करना।

सिर पर मैला ढोने की प्रथा के सभी रूपों का उन्मूलन संविधान में प्रतिष्ठापित गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार की पुष्टि करेगा तथा यह दीर्घकालिक मानवोचित जीवन हेतु मार्ग प्रशस्त करेगा।

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