भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRAS) का महत्व
प्रश्न: भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRAS) का महत्व स्पष्ट कीजिए और इनकी कार्यप्रणाली से संबद्ध मुद्दों को रेखांकित कीजिए।
दृष्टिकोण
- क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRAS) और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उनके महत्व के बारे में संक्षेप में बताइए।
- CRAS के कार्यकरण से सम्बंधित मुद्दों का वर्णन कीजिए।
- निष्कर्ष के तौर पर ऐसे उपाय सुझाइए जो ऐसे मुद्दों का समाधान कर सकें।
उत्तर
कोई क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (CRA) एक ऐसी कंपनी होती है जो किसी इकाई की साख का आकलन करती है। यह ऋणदाताओं को समय पर ऋण वापस करने की क्षमता और डिफ़ॉल्ट करने की संभावना के आधार पर मूल्यांकित करती है। रेटिंग जितनी बेहतर होती है पुनर्भुगतान करने की क्षमता भी उतनी ही बेहतर होती है और इसलिए इकाई द्वारा जिन नियमों और शर्तों के आधार पर ऋण लिया जाता है, वो भी बेहतर होते हैं। एक ऋणी इकाई कोई निजी कंपनी, कोई सरकारी सार्वजनिक उपक्रम, कोई सरकार (केंद्र/राज्य/स्थानीय) आदि हो सकती है। ये इकाइयां विभिन्न बॉन्ड या प्रतिभूतियां निर्गत कर सकती हैं।
भारत में CRAS को सेबी (SEBI) अधिनियम, 1992 के सेबी (क्रेडिट रेटिंग एजेंसी) विनियम, 1999 द्वारा विनियमित किया जाता है। वर्तमान में सेबी (SEBI) के अंतर्गत CRISIL, ICRA, CARE, SMERA, फिच इंडिया और ब्रिकवर्क रेटिंग्स नामक छह क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां पंजीकृत हैं।
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का महत्व:
- CRAS निवेश से जुड़े जोखिम के स्तर को निर्धारित करके निवेशकों और धन जुटाने वाली इकाइयों के बीच विश्वास बनाने में मदद करती हैं।
- बाजार में प्रतिभागियों के पूल को बढ़ाने के लिए विश्वास निर्मित करना अत्यावश्यक है। इससे एक जीवंत कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट विकसित करने और बैंकों के उधार देने पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलती है।
- क्रेडिट रेटिंग इस बात का एक पैमाना है कि कोई इकाई आर्थिक रूप से कितनी सक्षम और सुदृढ़ है। यह सरकारी बॉन्डों की रेटिंग के माध्यम से समग्र अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मापक बन जाता है।
स्वाभाविक रूप से किसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी को अच्छी रेटिंग प्राप्त होना उसके लिए हितकारी होता है। किसी CRA को संचालित किए जाने का तरीका यह निर्धारित करता है कि उसकी रेटिंग कितनी विश्वसनीय होगी। गत वर्ष IL&FS तरलता संकट ने भारत में CRAS से जुड़ी चुनौतियों को उजागर किया है:
- CRAS और जारीकर्ता कंपनियों के अधिकारियों के मध्य कथित मिलीभगत: उदाहरण के लिए IL&FS प्रकरण में, सम्मिलित CRAS की फॉरेंसिक ऑडिट द्वारा सम्बंधित पार्टियों के मध्य सांठ-गांठ का खुलासा किया गया था। लेकिन इन सभी मुद्दों की जानकारी होने के बावजूद IL&FS समूह की रेटिंग को कम नहीं किया गया।
- लिखतों के जारीकर्ता द्वारा भुगतान किए जाने का मॉडल: CRA को उसी कंपनी द्वारा भुगतान किया जाता है जिसको वह रेटिंग प्रदान करती है। इससे हितों का संभावित टकराव होता है और CRA ऋणदाता की ऋण चुकाने की क्षमता से सम्बंधित मुद्दों को नजरअंदाज करने के लिए प्रोत्साहित होती है।
- CRA और देनदारों के मध्य गैर-प्रकटीकरण समझौते होते हैं, इसलिए निवेशकों के पास रेटिंग को सत्यापित करने का कोई तरीका नहीं होता है।
- रेटिंग शॉपिंग: यह जारीकर्ता एजेंसी द्वारा ऐसी रेटिंग एजेंसी चुने जाने के तरीके को संदर्भित करता है जो या तो उच्चतम रेटिंग प्रदान करे या वांछित रेटिंग प्राप्त करने के लिए सबसे नम्य मानदंड उपयोग करती हो।
- दंड का अभाव: एक समेकित कानून के अभाव के कारण गलत रेटिंग देने में सम्मिलित लोगों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई न्यूनतम है।
- समर्पित नियामक की कमी भी CRAS को पर्यवेक्षण से बचने में मदद करती है।
इन मुद्दों को दूर करने के उपाय
- ‘जारीकर्ता द्वारा भुगतान किए जाने के मॉडल’ के स्थान पर सरकार को ‘निवेशक भुगतान मॉडल’ या ‘नियामक या सरकार द्वारा भुगतान मॉडल’ जैसे विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए। यह हितों के संभावित टकराव को रोकने में भी मदद करेगा।
- सेबी के परामर्श से निर्मित किये गए बेंचमार्क की सहायता से ऋण लिखतों की रेटिंग निर्धारित की जानी चाहिए।
- सटीकता में सुधार करने के लिए CRAS को एकसमान कार्यप्रणाली और प्रेडिक्शन मॉडल तैयार करने चाहिए। उन्हें ऐतिहासिक आंकड़ों निर्भर रहने के बजाय बेहतर बाजार आसूचना और निगरानी पर ध्यान देना चाहिए।
सेबी ने ‘क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा संवर्धित प्रकटीकरण के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनके अनुसार निवेशकों के हितों के लिए रेटिंग एजेंसियों को उनके द्वारा मूल्यांकित (रेट) की जाने वाली लिखतों (इंस्ट्रूमेंट्स) की ‘डिफ़ॉल्ट’ की संभावना’ को स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए तथा इन लिखतों के जारीकर्ताओं की तरलता की स्थिति, रेटिंग इतिहास आदि का खुलासा किया जाना चाहिए।
Read More
- चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) की अवधारणा
- वृद्धिशील पूंजी-उत्पादन अनुपात (इंक्रीमेंटल कैपिटल-आउटपुट रेश्यो: ICOR) क्या है
- ‘बिहेवियरल माइक्रोटार्गेटिंग’ तथा ‘साइकोग्रैफिक मेसेजिंग’ (‘व्यवहारात्मक सूक्ष्म -लक्ष्यीकरण’ और ‘मनोवृत्तिपरक संदेशन’)
- भारत में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZS)
- चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकोनॉमी) की अवधारणा