स्वच्छता एवं साफ-सफाई (सैनिटेशन एवं हाइजीन) : महिलाओं द्वारा अनुभव की जाने वाली चुनौतियां
प्रश्न: व्याख्या कीजिए कि स्वच्छता एवं साफ-सफाई (सैनिटेशन एवं हाइजीन) तक अपर्याप्त पहुंच महिलाओं को किस प्रकार प्रभावित करती है। इस संबंध में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डालिए। इन मुद्दों से निपटने के लिए किये जा सकने वाले कुछ उपायों का सुझाव दीजिए।
दृष्टिकोण
- स्वच्छता एवं साफ-सफाई (सैनिटेशन एवं हाइजीन) तक अपर्याप्त पहुँच के कारण महिलाओं द्वारा अनुभव की जाने वाली विभिन्न चुनौतियों को रेखांकित कीजिए तथा स्पष्ट कीजिए कि ये चुनौतियाँ महिलाओं को किस प्रकार प्रभावित करती है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NHFS-4) के निष्कर्षों द्वारा अपने तर्कों की पुष्टि कीजिए।
- इस संदर्भ में आगे की राह का सुझाव देते हुए सरकारी पहलों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
महिलाएं सांस्कृतिक एवं सामाजिक कारकों (जैसे लैंगिक विभेदों) के साथ-साथ शरीर क्रिया विज्ञान संबंधी कारकों (जैसे लिंग संबंधी अंतरों) के कारण भी अपर्याप्त स्वच्छता से विशेषतया प्रभावित होती हैं। स्वच्छता तक अपर्याप्त पहुँच अथवा पहुँच का अभाव महिलाओं को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित करता है:
- अस्वच्छ (सार्वजनिक) प्रसाधन एवं शौचालय ऐसी महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य को खतरा पहुंचा सकते हैं जो निम्नस्तरीय स्वच्छता के कारण रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट के संक्रमण के प्रति प्रवण होती हैं।
- महिला के लिए शीलता संबंधी सांस्कृतिक मानदंडों जैसे कारकों के चलते, स्वच्छता संबंधी सुविधाओं के अभाव में प्रायः महिलाओं को शौचालय जाने के लिए अँधेरा होने तक की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। निरंतर शौचालय जाने से बचने हेतु प्रायः महिलाएं तरल पदार्थ (अर्थात जल) का कम सेवन करती हैं जिसके गंभीर स्वास्थ्य परिणाम (मूत्र मार्ग संक्रमण, कब्ज एवं अन्य पेट संबंधी विकार) होते हैं। शौचालय जाने से बचने हेतु जल का सेवन न करने के कारण होने वाले डिहाइड्रेशन की समस्या गर्भवती महिलाओं हेतु एक विशेष स्वास्थ्य खतरा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NHFS-4) के अनुसार भारत में 15-49 आयु वर्ग की 53% महिलाएं रक्ताल्पता से पीड़ित (एनीमिक) हैं।
- मासिक धर्म, गर्भावस्था और प्रसवोत्तर चरणों के दौरान पर्याप्त स्वच्छता की आवश्यकता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। गर्भवती महिलाओं को सामान्यतः मूत्र विसर्जन हेतु बार-बार जाना पड़ता है और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उच्चस्तरीय स्वच्छता सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
- यदि स्कूल या कार्यस्थल द्वारा मासिक धर्म के दौरान लड़कियों और महिलाओं को पर्याप्त स्वच्छता संबंधी सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती हैं तो उस परिस्थिति में उन्हें घर पर ही रहना पड़ता है। NFHS-4 के अनुसार भारत में अभी भी 62% से अधिक युवा महिलाएं मासिक धर्म के दौरान कपड़े का उपयोग करती हैं।
- विशेषकर बच्चे तथा वृद्धजन जल और स्वच्छता से संबंधित रोगों (जैसे डायरिया) से पीड़ित होते रहते हैं। प्रायः महिलाओं को उनकी देखभाल करनी पड़ती हैं। इस कारण से उन्हें घर पर ही रहना पड़ता है और वे उत्पादक गतिविधियों में भाग लेने में अक्षम होती हैं। यह उन कारणों में से एक हो सकता है जो यह स्पष्ट करता है कि NFHS-4 में विगत 12 महीनों में कार्यशील एवं नकद में भुगतान प्राप्त करने वाली महिलाओं का प्रतिशत केवल 24.6 ही क्यों दर्ज किया गया था।
इन समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- सिविल सोसाइटी की सहायता से सार्वजनिक साझेदारी मोड के माध्यम से महिला स्वच्छता को संबोधित करने के लिए सतत बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण आवश्यक है। स्वच्छ भारत मिशन और मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन दिशानिर्देश (2015) इस मुद्दे के समाधान हेतु प्रयासरत हैं।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसे कानूनों के साथ अभिसरण से महिलाओं के लिए उपयुक्त अवसंरचना सुनिश्चित की जा सकती है।
- महिलाओं के मध्य जागरुकता के प्रसार के लिए #YesIBleed जैसे राष्ट्रीय अभियानों, फिल्मों और रोल मॉडलिंग आदि का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाना चाहिए।
- सुविधा सैनिटरी पैड जैसी पहलों के माध्यम से महिलाओं की वहनीय कीमतों पर स्वच्छता उत्पादों तक पहुंच सुनिश्चित की जा सकती है।
- ‘स्वास्थ्य’ राज्य सूची का एक विषय है और इसलिए इस क्षेत्र में सफलता हेतु राज्यों के मध्य प्रतिस्पर्धा एवं सहयोग की मुख्य भूमिका होगी।
वस्तुतः स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने वाले सतत विकास लक्ष्य-6 की प्राप्ति हेतु यह महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक महिला की एक सुरक्षित, स्वच्छ और एकांत स्थान तक पहुँच सुनिश्चित हो।
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