जैव विविधता : जैव विविधता की क्षति हेतु उत्तरदायी कारक

प्रश्न: हाल के दिनों में जैव-विविधता की क्षति हेतु उत्तरदायी कारकों को रेखांकित कीजिए। इस संबंध में, जैव-विविधता के संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों का भी उल्लेख कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • जैव विविधता की क्षति और निकट भविष्य में इसके समक्ष उत्पन्न होने वाले खतरों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  • जैव विविधता की क्षति हेतु उत्तरदायी कारकों को रेखांकित कीजिए।
  • इस संदर्भ में भारत और विश्व द्वारा उठाए गए कदमों का भी उल्लेख कीजिए।

उत्तरः

जैव विविधता की क्षति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अधिकांशत: 1900 के बाद से अधिकतर प्रमुख भूमिआधारित पर्यावासों में देशज प्रजातियों की औसत संख्या में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। यूएन ग्लोबल असेसमेंट रिपोर्ट (UN Global Assessment Report) के अनुसार, 40 प्रतिशत से अधिक उभयचर प्रजातियां, लगभग 33 प्रतिशत प्रवाल भित्तियों का निर्माण करने वाले प्रवाल और एक तिहाई से अधिक समुद्री स्तनधारी प्रजातियां संकटग्रस्त हैं तथा 10 प्रतिशत कीट प्रजातियों के समक्ष विलुप्ति का खतरा विद्यमान है।

जैव विविधता की क्षति हेतु उत्तरदायी कारक: 

  • प्राकृतिक कारक: हाल के दिनों में वैश्विक तापन और परिणामतः जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, भूकंप आदि आपदाओं की निरंतरता एवं तीव्रता में वृद्धि हुई है। इससे कुछ निश्चित क्षेत्र-विशिष्ट प्रजातियों की क्षति होती है।
  • आवासीय क्षति और विखंडन: बढ़ती जनसंख्या और परिणामस्वरूप विभिन्न मानवीय गतिविधियों में वृद्धि के कारण वन क्षेत्रों के अतिक्रमण में बढ़ोतरी हुई है। इसने स्तनधारियों और पक्षियों (जिन्हें विशाल क्षेत्रों की आवश्यकता होती है) की विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व के लिए संकट उत्पन्न किया है। जैसे- बाघ, सुमात्राई ओरंगउटान आदि।
  • अति-दोहन: बढ़ती जनसंख्या ने मनुष्यों को उपभोग हेतु अत्यधिक शिकार, अत्यधिक मत्स्यन या किसी प्रजाति के अत्यधिक-संग्रह के लिए प्रेरित किया है, जिससे शीघ्र ही इन प्रजातियों की संख्या में गिरावट हो सकती है। उदाहरणार्थ- ग्रेट हैमरहेड शार्क की संख्या में गिरावट।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियों का प्रवेश: बढ़ते ई-वाणिज्य और इसके परिणामस्वरूप समुद्री परिवहन में वृद्धि, एक देश से दूसरे देश में विदेशी प्रजातियों के अनभिप्रेत रूप से परिवहन का कारण बनी है। प्रायः विदेशी प्रजातियां आक्रामक हो जाती हैं तथा वे देशज प्रजातियों की संख्या में गिरावट या विलुप्ति का कारण बन सकती हैं। जैसे- इको पैराकीट (Echo parakeet)।
  • आश्रित प्रजातियों की सह-विलुप्तता (Co-extinctions): जैव विविधता की बढ़ती क्षति से आश्रित प्रजातियों की भी हानि होती है, जैसे कि जब एक परपोषी मत्स्य की प्रजाति विलुप्त होती है तब उस पर आश्रित परजीवियों का विशिष्ट समुच्चय भी विलुप्त हो जाता है।

राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण के लिए उठाए गए कदम: 

  • जैविक विविधता पर सम्मेलन (Convention on Biological Diversity: CBD): इस सम्मेलन को पृथ्वी शिखर सम्मेलन, 1992 में जैविक विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के सतत उपयोग और आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के निष्पक्ष एवं न्यायसंगत साझाकरण के प्रयोजनार्थ अपनाया गया था। भारत इस सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्ता देश है और इसने जैव विविधता अधिनियम 2002 पारित करने के साथ ही सम्मेलन के तहत दायित्वों को पूरा करने हेतु नागोया प्रोटोकॉल की अभिपुष्टि भी की है।
  • संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना: इसके अंतर्गत राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों, संरक्षण और सामुदायिक रिज़ों आदि के लिए संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क जैसी पहलें शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर, यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व की स्थापना की गई है। यह पर्यावास संरक्षण और शिकार तथा अन्य मानवीय गतिविधियों से संरक्षण को सक्षम बनाता है।
  • प्रजाति-विशिष्ट हस्तक्षेप: भारत सरकार ने विशिष्ट प्रजातियों की आबादी के संरक्षण और वृद्धि हेतु विभिन्न परियोजनाओं जैसे- प्रोजेक्ट टाइगर, क्रोकोडाइल ब्रीडिंग प्रोजेक्ट, प्रोजेक्ट हंगुल, प्रोजेक्ट राइनो आदि की शुरुआत की है। वैश्विक स्तर पर कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इंडेंजर्ड स्पीशीज का उद्देश्य संकटापन्न पादपों और जंतुओं का संरक्षण करना है।
  • योजनाओं का क्रियान्वयन: सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं को भी लागू किया जा रहा है, जैसे- वन्यजीवों के बेहतर संरक्षण और उनके पर्यावास में सुधार लाने हेतु समेकित वन्यजीव पर्यावास विकास, निवल वन भूमि की क्षति को रोकने के लिए प्रतिपूरक वनीकरण योजना आदि।
  • NGO द्वारा किए गए प्रयास: विभिन्न गैर-लाभकारी संगठन भी जैव विविधता संरक्षण में संलग्न हैं, जैसे कि वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF), द वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (WRI) तथा इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) आदि, जो सरकारी एजेंसियों, मंत्रालयों और विभागों द्वारा किए गए प्रयासों में सहायता प्रदान करते हैं।

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