बाल्फोर घोषणा और इसके मुख्य उद्देश्य
प्रश्न:बाल्फोर घोषणा क्या थी? इसे पश्चिम एशिया में संघर्ष की दिशा तय करने वाले एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में क्यों माना जाता है ?
दृष्टिकोण:
- बाल्फ़ोर घोषणा के प्रावधानों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- इन्हें पश्चिम एशिया में संघर्ष की दिशा से सम्बद्ध कीजिए।
- इस घोषणा पर एक संक्षिप्त टिप्पणी के साथ निष्कर्ष दीजिए।
उत्तरः
1917 में ब्रिटेन द्वारा यहूदी आंदोलन के समर्थन में एक सार्वजनिक प्रतिज्ञा के रूप में बाल्फ़ोर घोषणा की गयी। इस घोषणा का मुख्य उद्देश्य एक “राज्य” के विरुद्ध एक यहूदी “राष्ट्रीय निवास स्थान (नेशनल होम)” की स्थापना करने हेतु परिस्थितियों का निर्माण करना था, फलस्वरूप इसके विभिन्न अर्थ निकाले गए।
इस घोषणा ने 1915-16 के हुसैन-मैकमोहन पत्राचार (जिसमें ब्रिटेन ने ऑटोमन साम्राज्य से अरबों की स्वतंत्रता का वादा किया था) और 1916 के साइक्स-पिकोट समझौते (जिसके तहत ब्रिटेन और फ्रांस ने गुप्त रूप से निर्णय लिया था कि अधिकांश फिलिस्तीन अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन के तहत रहेगा, जबकि पश्चिम एशिया के बाकी हिस्सों को प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् दोनों शक्तियों के मध्य विभाजित किया जाएगा) का खंडन किया।
घोषणा के परिणाम तथा क्षेत्र में संघर्ष:
- 1922 से 1935 के मध्य, ब्रिटेन द्वारा यहूदियों को फिलिस्तीन में प्रव्रजन की सुविधा देने से इस क्षेत्र की यहूदी जनसंख्या लगभग 10% से बढ़कर कुल जनसंख्या की लगभग 27% हो गयी। इससे तनाव उत्पन्न हुआ तथा फिलिस्तीनी, अरब और यूरोपीय यहूदियों के मध्य हिंसा को बढ़ावा मिला। उदाहरण के लिए, 1920 के नेबी मूसा दंगे।
- इसके अतिरिक्त, फिलिस्तीन को यहूदियों और अरबों के लिए दो राज्यों में विभाजित किये जाने के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बाद के घटनाक्रम में फिलिस्तीन के 750,000 से अधिक अरबों को बलपूर्वक निष्कासित कर दिया गया।
- अरबों ने फिलिस्तीन के विभाजन और 1948 में इजरायल राज्य की उद्घोषणा को अस्वीकृत कर दिया। इसके कारण इज़राइल और इराक की सेना, सीरिया, लेबनान, ट्रांस-जॉर्डन, सऊदी अरब, यमन और मिस्र की सेनाओं के बीच अनेक क्षेत्रीय युद्ध हुए।
इजरायल के यहूदियों और फिलिस्तीनी अरबों के मध्य संघर्ष के गंभीर परिणामों को दोनों पक्षों को भुगतना पड़ा है। फिर भी, आज भी यह संघर्ष जारी है।
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