भारत में परिसीमन (Issues in Delimitation)

गृह मंत्रालय ने सिक्किम विधानसभा में सीटों की संख्या को 32 से बढ़ाकर 40 करने का प्रस्ताव पेश किया है। राज्य की विधानसभा में लिंबू और तमांग (सिक्किम में अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित) का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण यह वृद्धि प्रस्तावित की गयी है।

भारत में परिसीमन

  • अनुच्छेद 82 संसद को परिसीमन (पुनःसमायोजन) के पहलुओं और विधियों को निर्धारित करने की शक्ति को प्रदान करता है। संसद द्वारा इस शक्ति का प्रयोग 4 बार, 1952, 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन आयोग अधिनियम को अधिनियमित करके किया गया है।
  • 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा 1971 (जनगणना) के आधार पर सीटों के आवंटन को वर्ष 2000 तक के लिए निश्चित किया गया था, जिसे 84 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 द्वारा बढाकर 2026 तक अगले 25 वर्षों के लिए निश्चित किया गया है।
  •  विस्तार करने का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को प्रोत्साहित करना था।
  • 87 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के द्वारा 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का प्रावधान
    किया गया। यह सीटों या निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को परिवर्तित किये बिना किया गया था।
  •  अनुच्छेद 371(f) के अंतर्गत सिक्किम के लिए उपबंधित विशेष संवैधानिक प्रावधान सरकार को एक नये सीमांकन आयोग का गठन
    किए बिना प्रस्तावित परिवर्तन करने की अनुमति प्रदान करते हैं। संविधान के अनुच्छेद 170 (विधानमंडल की संरचना और उनके परिसीमन के कुछ प्रावधानों से संबंधित) के प्रावधान सिक्किम पर लागू नहीं होते हैं।

परिसीमन से सम्बंधित अन्य संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 81के खंड (2) के अनुसार , प्रत्येक राज्य को लोकसभा में स्थानों का आवंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि स्थानों
    की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो।
  •  खंड (3) ने अनुच्छेद 81 के उद्देश्यों हेतु “जनसंख्या” पद से ऐसी पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गयी जनसंख्या
    अभिप्रेत है, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं।
  • प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आवंटित स्थानों का अनुपात समस्त राज्य में यथा साध्य एक ही हो।
  • संविधान चुनाव मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करता है। कोई भी न्यायालय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन
    अथवा परिसीमन आयोग द्वारा किए गए सीटों के आवंटन से संबंधित किसी भी कानून की वैधता पर प्रश्न नहीं उठा सकता है।

परिसीमन संबंधी मुद्दे

  • समान प्रतिनिधित्व की अवधारणा का उल्लंघन करता है। वर्तमान प्रतिनिधित्व व्यवस्था सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के मूल सिद्धांत से विचलित होती है, क्योंकि केरल में मतदाता प्रतिनिधित्व (6.3 सांसद प्रति करोड़ व्यक्ति) राजस्थान के मतदाता प्रतिनिधित्व (4.4 सांसद प्रति करोड़ व्यक्ति) की तुलना में 42% अधिक है।
  • शहरी शासन का निम्न स्तरः संसद में शहरों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व की कमी (सबसे बड़े शहर में तीन मिलियन से अधिक मतदाता हैं जबकि सर्वाधिक छोटे शहरों में 50,000 से कम) उनके वित्त पोषण और बुनियादी ढांचे के विकास में कमी को बढ़ावा देता है।
  • सीटों का निश्चित आवंटन: वर्तमान जनसंख्या (121 करोड़) को 1971 की जनगणना के 54.81 करोड़ के आंकड़ों के आधार पर प्रतिनिधित्व प्रदान करना हमारी लोकतांत्रिक राजनीति का एक विकृत स्वरूप प्रस्तुत करता है और संविधान के अनुच्छेद 81 के तहत उल्लिखित प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
  • सीटों के नियत होने समस्या का समाधान नहीं किया: 1971 के जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर सीटों के आवंटन को आवश्यक बनाने के संबंध में विभिन्न राज्यों द्वारा 1976 में व्यक्त की गई चिन्ताएं वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं।
  • संसद सदस्यों की संख्या में वृद्धि होने से पीठासीन अधिकारी के लिए सदन की कार्यवाही का सुचारु रूप से संचालन भी कठिन होगा।
  • परिसीमन अन्य की तुलना में एक दल के पक्ष में किया जा सकता है जैसा कि सिक्किम के उपर्युक्त वर्णित मामले में नस्लीय
    अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व को कम करने के प्रयास में किया गया।

आगे की राह

  • अनुच्छेद 82 और 327 के परिसीमन संबंधी प्रावधान और संबंधित अनुच्छेद इसके सन्दर्भ में विशिष्ट निर्देश नहीं देते। अतः
    आवधिक परिसीमन की प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
  •  शिक्षाविदों, राजनीतिक विद्वानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सेफ्रोलॉजिस्ट और गैर सरकारी संगठनों आदि की परिसीमन आयोग के
    सह-सदस्यों के रूप में नियुक्ति।
  • सख्त प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों का प्रावधान किया जाना चाहिए ताकि परिसीमन की प्रशासनिक प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप
    रोका जा सके।
  •  निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन में अनुचित प्रक्रियाओं की न्यायिक समीक्षा का प्रावधान।
  • जनसंख्या अनुपात के अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभा की सीटों में वृद्धि।
  •  महिलाओं के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान।

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