राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी सिविल सेवाओं के मध्य संबंध

प्रश्न: राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी सिविल सेवाओं के बीच सम्बन्धों में टकराव के संभावित क्षेत्रों पर प्रकाश डालिए। साथ ही, संक्षेप में दोनों के मध्य उत्तरदायित्व के और अधिक स्पष्ट विभाजन की आवश्यकता पर भी चर्चा कीजिए।

दृष्टिकोण:

  • राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी सिविल सेवाओं के मध्य संबंध को रेखांकित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।
  • दोनों के मध्य संभावित टकराव वाले क्षेत्रों पर चर्चा कीजिए।
  • सुशासन के लिए दोनों के मध्य उत्तरदायित्व के विभाजन को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता का सविस्तार वर्णन कीजिए।

उत्तरः

सामान्यतः एक स्थायी सिविल सेवा संसदीय लोकतंत्रों की विशेषता होती है। यह नीति निर्माण और इसके क्रियान्वयन में राजनीतिक कार्यपालिका की सहायता करती है। इनके मध्य संबंध दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित होते हैं – तटस्थता और अनामिकता।

इनके संबंधों के संभावित टकराव वाले क्षेत्र:

  • नीतिगत प्राथमिकताओं में अस्पष्टता और तदर्थता: भारत जैसे विषम या विविधतापूर्ण समाज वाले देश में, प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों और साथ ही उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सबसे बेहतर साधनों के सन्दर्भ में आम सहमति का अभाव है। दूरदर्शिता का यह अभाव स्थायी कार्यपालिका को स्पष्ट दिशा प्रदान नहीं कर सकता है।
  • संस्थागत तंत्रों के मध्य विद्यमान भिन्नता: राजनीतिक कार्यपालिका को सामाजिक मांगों को समझने हेतु अधिक उत्तरदायी होने की आवश्यकता होती है। जबकि स्थायी कार्यपालिका कम लचीली तथा परीक्षण, नवाचारों और सुधारों के प्रति कम उत्साही होती है। अतः, उसके द्वारा अनेक बार राजनीतिक औचित्य को न समझ पाने की सम्भावना होती है।
  • तटस्थता संबंधी मानदंडों का उल्लंघन: तटस्थता के आदर्श को वरीयता प्राप्त तैनातियों और पदोन्नति के लिए राजनीतिक संरक्षण द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। लोक सेवकों का मनमाना और प्रेरित स्थानान्तरण भी जनहित में नहीं होता है।
  • नीति निर्माण संबंधी मतों में भिन्नता: सिविल सेवक राजनीतिज्ञों को निम्नस्तरीय नीति के विरुद्ध केवल परामर्श प्रदान कर सकते हैं। उन्हें मंत्रियों की सभी नीतियों और निर्णयों को ईमानदारीपूर्वक लागू करना पड़ता है, भले ही वे उनके द्वारा दी गई सलाह के विपरीत ही क्यों न हों।
  • अनामिकता संबंधी मानदंडों का उल्लंघन: कई बार नौकरशाह खुले विचारों के द्वारा अनामिकता का उल्लंघन करते हैं, जैसा कि हाल ही में शाह फैजल द्वारा किये गए ट्वीट के मामले में देखा गया था। ये दोनों कार्यपालिकाओं के मध्य संबंधों को बाधित करता है।
  • निर्णय निर्माण में हस्तक्षेप: सरकारी विभागों में सत्ता का प्रत्यायोजन किए जाने के बावजूद भी सत्ता के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है। सिविल सेवकों के दिन-प्रतिदिन के कार्यों सम्बन्धी निर्णय निर्माण तक में हस्तक्षेप किये जाने की प्रवृत्ति दिखायी देती है।

टकराव के इन संभावित क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए, निम्नलिखित कारणों से दोनों के मध्य उत्तरदायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किये जाने की आवश्यकता है:

  • एक दूसरे के कार्यों और उत्तरदायित्वों की उचित समझ का अभाव जिसके परिणामस्वरूप परस्पर एक दूसरे के कार्य क्षेत्र का अतिक्रमण किया जाता है।
  • नीतियों के कार्यान्वयन में विलंब, क्योंकि नीतियों का क्रियान्वयन सिविल सेवकों का एक मुख्य कार्य है जबकि इसकी जवाबदेहिता राजनीतिक कार्यपालिका की होती है।
  • अधिकारियों का मनमाने तरीके से स्थानांतरण, क्योंकि सिविल सेवकों के लिए एक स्पष्ट और पारदर्शी स्थानांतरण नीति का अभाव है।
  • सिविल सेवकों को शक्तियों के प्रत्यायोजन के बावजूद राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कुशल कार्यप्रणाली का अभाव रहता है। एक बार जब शक्तियां प्रत्यायोजित कर दी जाएँ तो नौकरशाही को उसके निर्णय निर्माण में स्वतंत्र होना चाहिए।

उत्तरदायित्वों का स्पष्ट विभाजन संवैधानिक मानदंडों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित कर सकता है। एक निष्पक्ष सिविल सेवा न केवल सरकार के प्रति बल्कि संविधान के प्रति भी उत्तरदायी होती है। यदि राजनीतिक कार्यपालिका अपने निर्णयों में सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए संवैधानिक मानदंडों का अनुपालन करे तो दोनों के मध्य टकराव की स्थिति उत्पन्न होने की संभावना अत्यंत कम हो जाएगी।

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