भारत में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के विनिर्माण और मांग संबंधित अनुकूल परिस्थितियों और विसंगतियों पर चर्चा

प्रश्न: अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद, भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण बढ़ती मांग के प्रति अनुक्रिया करने में असमर्थ रहा है। चर्चा कीजिए। इस परिस्थिति को सम्बोधित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के विनिर्माण और मांग संबंधित अनुकूल परिस्थितियों और विसंगतियों पर चर्चा कीजिए।
  • इस क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।
  • सुधारात्मक उपायों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

  • भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र विभिन्न क्षेत्रों जैसे बिजली (lighting), मोटर वाहन, रक्षा, संचार इत्यादि में विकास, नवाचार और रोजगार में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। बढ़ती प्रयोज्य आय, इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं की कीमतों में गिरावट, बढ़ती स्वचालन क्षमता, प्रशिक्षित इंजीनियरों की संख्या में वृद्धि और चीन जैसे देशों से अपने विनिर्माण उद्यमों को स्थानांतरित करने हेतु अन्य विकल्पों की तलाश करने वाली वैश्विक कंपनियों ने इस क्षेत्र को बढ़ावा दिया है।
  • हालांकि, भारत का कमजोर विनिर्माण आधार बढ़ती मांग के प्रति अनुक्रिया करने में असमर्थ रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स की कुल मांग का लगभग 50-60% उत्पाद के रूप में और 70-80% घटकों के रूप में आयात किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार में भारत की हिस्सेदारी 2% से भी कम है। डेलॉइट (Deloitte) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स आयात संबंधी व्यय, तेल आयात पर होने वाले व्यय से भी अधिक बढ़ने की संभावना है।

इस क्षेत्र द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ:

  • यह अत्यधिक पूंजी और कौशल गहन क्षेत्र है। सरकारी सहायता के बगैर पूंजी की घरेलू उपलब्धता एवं प्रतिभा पलायन के कारण कौशल का उपलब्ध होना कठिन है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स एक एकीकृत उद्योग है। यह एकीकृत सर्किट, अनुषंगी और सहायक उद्योग के विकास पर आधारित होता है जो इसे संकुलन (agglomeration) के कारण व्यवहार्य बनाता है। इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को स्थापित करने के लिए केवल एक उद्योग को आकर्षित करने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि उत्पादन को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए भारत में अपनी इकाइयों के पुनर्स्थापन हेतु तत्पर संबद्ध औद्योगिक समूहों की आवश्यकता होती है।
  • इनवर्टेड टैक्स ड्यूटी संरचना और स्थानीय घटक आपूर्तिकर्ताओं के सीमित आधार जिनके परिणामस्वरूप विनिर्माताओं को आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • अत्यधिक श्रम कानूनों, भूमि अधिग्रहण में विलंब और अनिश्चित कर व्यवस्था के कारण इलेक्ट्रॉनिक्स में FDI कुल FDI प्रवाह के 1% से भी कम है।
  • अनगिणत फॉर्म, निरीक्षण, अप्रभावी आपूर्ति श्रृंखला इत्यादि घरेलू उत्पादकों के निर्यात को हतोत्साहित करते हैं।
  • अन्य चुनौतियों में लोजिस्टिक्स (logistics) अक्षमता, आधारभूत बाधाएं, अनुसंधान एवं विकास का अभाव आदि सम्मिलित हैं।

आगे की राह

  • इनवर्टेड टैक्स ड्यूटी संरचना समाप्त करने से उत्पादन में वृद्धि होगी और इस क्षेत्र की समग्र दक्षता में सुधार होगा।
  • निवेशकों में विश्वास को बढ़ाने के लिए कानून को उदार और पूर्वानुमेय बनाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, विभिन्न परिस्थितियों में कर देनदारियों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करने की आवश्यकता है।
  • निर्यात को हतोत्साहित करने वाली व्यापारिक बाधाओं को समाप्त किया जाना चाहिए।
  • इलेक्ट्रॉनिक वस्तु प्रदाताओं को निरंतर नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • निर्यात बाजार में भारत की सामान्य प्रतिस्पर्धा में वृद्धि की आवश्यकता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के लिए कर मुक्त बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु मुक्त व्यापार समझौता किए जाने की आवश्यकता है।

सरकार द्वारा भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स प्रणाली को सुदृढ़ करने और वैश्विक बाजार हिस्सेदारी में सुधार करने हेतु राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक्स नीति, 2012 को अधिसूचित किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक्स से संबंधित नई राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति भी घरेलू उत्पादन के साथ डिजाइन और नवाचार के प्रोत्साहन हेतु तैयार की गयी है। इसके अतिरिक्त, ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र प्राथमिकता क्षेत्रक (priority sector) में शामिल किया गया है। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में निवेश को और अधिक प्रोत्साहन देने हेतु संशोधित विशेष प्रोत्साहन पैकेज योजना (M-SIPS) में सुधार किया गया है।

2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स में ‘नेट ज़ीरो इम्पोर्ट’ के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सरकार और उद्योग दोनों को इस क्षेत्र में सुधार की दिशा में कार्य करना चाहिए।

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