चुनावी बॉन्ड की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या : चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की मूलभूत आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करते हुए परिचय

प्रश्न: राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता की चिंता सरकार द्वारा अधिसूचित चुनावी बॉन्ड योजना से असंगत है। समालोचनात्मक चर्चा कीजिए। (150 शब्द)

दृष्टिकोण

  • चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की मूलभूत आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करते हुए परिचय दीजिए।
  • चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए प्रासंगिक कानूनों का उल्लेख कीजिए।
  • चुनावी बॉन्ड की अवधारणा की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  • चुनावी बॉन्ड के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों का विश्लेषण कीजिए और उनकी उपयोगिता पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर

2018 के केंद्रीय बजट में प्रस्तुत चुनावी बॉण्ड, एक धारक बैंकिंग प्रपत्र (Bearer Banking Instrument) है जिसका उपयोग पात्र राजनीतिक दलों के वित्तपोषण हेत किया जाता है। राजनीतिक दलों को चंदा प्रदान करने के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा अपनी पहचान बताए बिना बैंक से चुनावी बॉन्ड की खरीद की जा सकती है।

सकारात्मक प्रभाव

  • ये बॉन्ड केवल राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट बैंक खाते में ही परिशोध्य (encash) होंगे। राजनीतिक दल को निर्दिष्ट बैंक खाते की जानकारी चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी और ये बॉन्ड केवल उसी खाते में परिशोधित (encash) करवाए जा सकेंगे। इस प्रकार चंदे का स्वरूप अज्ञात नकद राशि के बजाय चुनावी बॉन्ड के रूप में परिवर्तित हो जाएगा।
  • इस तरह से चंदे की राशि पर चुनाव आयोग की निगरानी रहेगी जिससे पारदर्शिता में वृद्धि होगी।

विधि आयोग की 255 वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक वित्तपोषण में अस्पष्टता राजनीतिक वित्तपोषण और लॉबिंग में कदाचार का अवसर प्रदान कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप सरकार प्रमुख दानकर्ताओं से प्रभावित हो सकती है। इन कदाचारों को प्रतिबंधित करने के लिए, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), IT अधिनियम व विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के अंतर्गत राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक राशि के सभी चंदों की राशि और उसके स्रोत की जानकारी प्रदान करना आवश्यक होता है। इस संदर्भ में, इन सभी अधिनियमों में संशोधन के माध्यम से चुनावी बॉन्ड योजना का मार्ग प्रशस्त किया गया है।

नकारात्मक प्रभाव

  • ये संशोधन किसी भी कंपनी द्वारा चंदे के रूप में दी जाने वाली राशि की अधिकतम सीमा, (जो कि वर्तमान में शुद्ध लाभ का 7.5% है) को समाप्त करते हैं। इसका अर्थ यह है कि घाटे में चल रही कंपनियाँ भी असीमित राशि चंदे के रूप में प्रदान कर सकती हैं।
  • अब यदि चंदा चुनावी बॉण्ड के रूप में दिया गया हो तो भी राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक राशि के दाताओं के नाम प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • कोई विदेशी कंपनी चुनाव आयोग अथवा आयकर विभाग की निगरानी में आए बिना, अज्ञात रूप से भारतीय राजनीतिक दलों को असीमित राशि चंदे के रूप में प्रदान कर सकती है।

चुनाव बांड का सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव सत्तारूढ़ दल के सार्वजनिक उत्तरदायित्व को कम करने के रूप में हो सकता है। हालांकि बॉन्ड खरीदने के लिए KYC आधारित मानदंड लागू किए गए हैं, फिर भी केवल सत्तारूढ़ दल ही धन के स्रोत की खोज की इच्छाशक्ति प्रदर्शित कर सकता है। इस प्रकार, इस तरह का कदम चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता को कम करता है और इसका दुरुपयोग सत्ताधारी दल के साथ-साथ आर्थिक रूप से समृद्ध वर्गों द्वारा भी किया जा सकता है।

ऐसे में एक राष्ट्रीय चुनावी निधि, जो दाताओं की पहचान को गुप्त रखे तथा काले धन के उपयोग की जांच भी करे, का गठन चुनावी बॉन्ड योजना का एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है। इसकी स्थापना की सम्भावनाओं पर विचार किया जा सकता है।

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