उग्रवादी राष्ट्रवाद : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसके योगदान

प्रश्न: उग्रवादी राष्ट्रवाद के विकास के कारणों की व्याख्या करते हुए, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसके योगदान पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण

  • स्वदेशी आंदोलन के पश्चात् उग्रवादी राष्ट्रवाद के उदय और 1920 के दशक में इसके पुनरुत्थान पर चर्चा कीजिए।
  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इसके योगदान का उल्लेख कीजिए।

उत्तर

उग्रवादी राष्ट्रवाद ने आरंभिक नरमपंथियों द्वारा विरोध प्रदर्शन हेतु अपनाए गए तरीकों की तुलना में अधिक उग्र तरीकों को अपनाकर राष्ट्रीय आंदोलन में एक नए चरण का आरंभ किया। राजनीतिक कार्रवाई हेतु उग्रवादी राष्ट्रवाद की उग्र प्रवृत्ति का उदय 1890 के दशक में हुआ था और 1905 में स्वदेशी आंदोलन (लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन के पश्चात्) के दौरान इसने एक ठोस स्वरुप ग्रहण किया। स्वदेशी आंदोलन की समाप्ति के पश्चात् उग्रवादी राष्ट्रवाद के प्रथम चरण का प्रारंभ हुआ।

इसके विकास हेतु उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं:

  • ब्रिटिश सरकार द्वारा आवश्यक मांगों को भी स्वीकार नहीं किया जाता था, अतः इससे राजनीतिक रूप से जागरूक लोगों के मध्य अधिक उग्र भावनाएं उत्पन्न हुईं तथा वे राजनीतिक कार्रवाई हेतु अधिक प्रभावी तरीकों की खोज के लिए बाध्य हुए।
  • इथियोपिया द्वारा इटली की पराजय (1896), बोअर युद्ध इत्यादि अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं से यूरोपीय अजेयता के मिथक का अंत हुआ।
  • स्वदेशी आंदोलन के पश्चात् उग्रवादी शक्तियाँ नेतृत्वहीन हो गयीं तथा इन्होंने व्यक्तिगत साहस और हथियारों के माध्यम से कार्यवाही के मार्ग का चयन किया।

उग्रवादी राष्ट्रवाद के दूसरे चरण का आरंभ हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA), युगांतर, अनुशीलन जैसे समूहों और तत्पश्चात ‘चटगांव विद्रोह समूह‘ की स्थापना के साथ हुई। इन समूहों के गठन का प्रमुख कारण असहयोग आंदोलन को अचानक वापस ले लिया जाना था क्योंकि इससे अनेक लोगों में निराशा उत्पन्न हुई थी। युवा राष्ट्रवादियों द्वारा इस अवधारणा को अपनाया गया कि केवल हिसंक तरीकों से ही भारत की स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। यद्यपि इसमें क्रमिक रूप से समाजवादी प्रभाव भी देखा गया।

उग्रवादी राष्ट्रवाद का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

  • इसने स्वतंत्रता संग्राम के निष्क्रिय चरणों के दौरान अंतराल को भरने का कार्य किया और ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालते हुए लोगों को जागृत बनाए रखा।
  • उग्रवादी राष्ट्रवाद द्वारा सैद्धांतिक स्तर पर, मत प्रचार के स्तर पर तथा कार्यक्रम के स्तर पर कई नवीन विचारों को आगे बढ़ाया गया।
  • इसने युवाओं, विशेषकर छात्रों और कार्यशील जनसंख्या, को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए आकर्षित किया।
  • इनकी गतिविधियों ने ब्रिटिश सरकार के लिए समझौता एवं वार्ता करने हेतु नरम दल को एक बेहतर और वैध विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
  • हालांकि उग्रवादी राष्ट्रवाद ने धार्मिक जागरण से प्रेरणा ग्रहण की थी, तथापि उग्रवादी राष्ट्रवादी, धर्म को राजनीति के साथ नहीं मिलाना चाहते थे।

उग्रवादी राष्ट्रवादियों के उदय के साथ आए प्रमुख परिवर्तनों में से एक, सुधारों और ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्व-शासन के किसी रूप की मांग पर मामूली बल दिए जाने के विपरीत प्रभावी ढंग से पूर्ण स्वराज (स्वतंत्रता) की मांग का उठाया जाना था।

Read More

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.