सरदार पटेल : देशी रियासतों का एकीकरण

प्रश्न: देशी रियासतों का एकीकरण करने में स्वतंत्र भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? इस संदर्भ में, सरदार पटेल द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डालिए।

दृष्टिकोण:

  • एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि का वर्णन करते हुए, उन चुनौतियों का उल्लेख कीजिए जिनका स्वतंत्र भारत द्वारा देशी रियासतों का एकीकरण करने में सामना किया गया था।
  • इस प्रक्रिया में सरदार पटेल द्वारा निभाई गई भूमिका पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:

औपनिवेशिक भारत में, लगभग 40% क्षेत्र पर 565 छोटी और बड़ी देशी रियासतों का आधिपत्य था, इन्हें ब्रिटिश सर्वोच्चता के तहत भिन्न-भिन्न प्रकार की स्वायत्तता प्राप्त थी।

  • 15 अगस्त, 1947 तक, लगभग 136 रियासतें भारतीय संघ में शामिल हो गई थीं। अन्य रियासतें संशय की स्थिति के कारण संघ से बाहर ही रहीं और उन्होंने ब्रिटिश सत्ता की समाप्ति के पश्चात् पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति का स्वप्न देखना प्रारंभ कर दिया। उदाहरण के लिए:
  • कश्मीर: इस रियासत का शासक हिंदू था जबकि जनता मुस्लिम बहुसंख्यक थी। हालांकि, शासक हरि सिंह द्वारा रियासत के लिए एक संप्रभु स्थिति की परिकल्पना की गयी थी और वह दोनों (भारत या पाकिस्तान) में से किसी का भी प्रभुत्व स्वीकार नहीं करना चाहता था।
  • जूनागढ़: इस रियासत की पाकिस्तान के साथ कोई भौगोलिक संलग्नता नहीं है, फिर भी इसके शासक नवाब महाबत खान द्वारा 15 अगस्त, 1947 को अपने राज्य की पाकिस्तान में विलय करने की घोषणा कर दी गई थी, जबकि रियासत की अधिकांश जनता (हिंदू बहुसंख्यक) भारत में शामिल होने की पक्षधर थी। 
  • त्रावणकोर: इस दक्षिणी समुद्री रियासत द्वारा भारतीय संघ में शामिल होने को लेकर अस्वीकृति प्रदान की गई थी और त्रावणकोर के दीवान सर सी. पी. रामास्वामी अय्यर द्वारा एक स्वतंत्र त्रावणकोर राज्य के गठन की इच्छा व्यक्त की गई।
  • हैदराबाद: भारतीय क्षेत्र से आबद्ध हैदराबाद रियासत के निज़ाम ने भारत से स्वतंत्र एक संप्रभु स्थिति बनाए रखने की घोषणा की और भारत सरकार के साथ यथास्थिति बहाल रखने के एक समझौते (standstill agreement) पर हस्ताक्षर किए। 
  • इस स्थिति ने भारत के भीतर विभिन्न छोटे स्वायत्त और संप्रभु राज्यों के गठन के रूप में स्वतंत्र भारत की एकता के समक्ष संकट उत्पन्न कर दिया।
  • सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा निभाई गई भूमिका 
  • वल्लभभाई पटेल अद्भुत कौशल के धनी एक कुशल कूटनीतिज्ञ थे। वे अनुनय और दबाव दोनों नीतियों का उपयोग करते हुए, सैकड़ों रियासतों को एकीकृत करने में सफल रहे।
  • बल प्रयोग नीति (iron handed policy) का अनुसरण करने के अतिरिक्त, उन्होंने रियासतों के शासकों से देशभक्ति की भावनाओं को जाग्रत करने की भी अपील की और उन्हें राष्ट्रीय हित में एक लोकतांत्रिक संविधान निर्माण की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। 
  • इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक अनुभवी राजनेता के रूप में जूनागढ़ (जनमत संग्रह के माध्यम से) और हैदराबाद संकट (पुलिस कार्रवाई का सहारा लेकर) का समाधान किया। तत्पश्चात उन्होंने रियासतों के विलय, केंद्रीकरण और एकीकरण की त्रि-आयामी प्रक्रियाओं का सफलतापूर्वक उपयोग किया।
  • इस प्रकार, उन्होंने न केवल भारत के बाल्कनीकरण को रोका, बल्कि भारत में सामाजिक सामंजस्य और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने हेतु एक उपयुक्त आधार भी प्रदान किया।

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