मुगल साम्राज्य के पतन का वर्णन : मराठाओं की विफलता के लिए उत्तरदायी कारण
प्रश्न: मराठे कई कारणों से मुगल साम्राज्य के पतन से निर्मित राजनीतिक निर्वात को भरने में विफल रहे। चर्चा कीजिए। (150 शब्द)
दृष्टिकोण
- मुगल साम्राज्य के पतन के वर्णन साथ उत्तर आरम्भ कीजिए।
- इस पतन से निर्मित राजनीतिक निर्वात को भरने के लिए मराठाओं की क्षमता को रेखांकित कीजिए।
- मराठाओं की विफलता के लिए उत्तरदायी कारणों का आकलन कीजिए।
उत्तर
औरंगजेब (1658-1707) की विस्तारवादी और दिशाहीन धार्मिक नीतियों ने मुगल साम्राज्य की एकता एवं स्थिरता को कमजोर बना दिया था। इसी कारण 1707 में उसकी मृत्यु के पश्चात् हैदराबाद (1724), अवध (1722) और बंगाल (1717) जैसे स्वायत्त साम्राज्यों का उदय हुआ।
इन सबमें मराठे सर्वाधिक मजबूत शक्ति के रूप में उभरे। उन्होंने पेशवा संस्थान के तहत सरकार की एक नई प्रणाली विकसित की। मराठाओं में बालाजी विश्वनाथ राव और बाजीराव जैसे कई सक्षम और प्रभावशाली सेनापति एवं राजनीतिज्ञ उत्पन्न हुए। यद्यपि मराठाओं के अंदर मुगल साम्राज्य के पतन से निर्मित राजनीतिक निर्वात को भरने की शक्ति और क्षमता थी; तथापि वे विभिन्न कारणों से अपनी शक्ति को एकीकृत करने में विफल रहें, जैसेकि:
राजनीतिक कारण
- व्यक्तित्व आधारित राज्य: मराठा शक्ति शिवाजी के व्यक्तित्व और क्षमताओं के द्वारा सृजित हुयी थी। किन्तु जब मराठा साम्राज्य को अंग्रेज जैसे शक्तिशाली शत्रु का सामना करना पड़ा तो वह शिवाजी, माधव राव, महादजी सिंधिया, नाना फड़नवीस जैसे नेतृत्वकर्ताओं को उत्पन्न नहीं कर सका। ऐसे में मराठा साम्राज्य की संरचना धराशायी होनी आरम्भ हो गयी।
- एकता का अभाव: मराठा पारस्परिक शत्रुता में उलझे हुए थे और इसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों को चुनौती देने हेतु स्वयं को एक सुदृढ़ केंद्रीय शक्ति के तहत एकीकृत करने में विफल रहे।
- क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संघर्ष: चौथ और सरदेमुखी की नीति, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और अत्यधिक जुर्माना एवं शुल्क आरोपित करने के कारण अधिकांश क्षेत्रीय शक्तियां उनसे पृथक हो गयी थीं। परिणामस्वरूप वे राजपूत, जाट और सिखों का समर्थन प्राप्त करने में विफल रहे।
- पानीपत की तीसरी लड़ाई: इसने मराठा शक्ति को गंभीर आघात पहुँचाया और मराठा शक्ति की तत्कालीन कमजोरियों को उजागर किया तथा वे अनुवर्ती युद्धों में यूरोपीय शक्ति के विस्तार को रोकने में विफल रहे।
आर्थिक कारण
- कमजोर राजस्व प्रशासन: वे व्यापार और वाणिज्य पर आधारित राजस्व प्रशासन की एक सक्षम प्रणाली विकसित करने में असफल रहे। नए क्षेत्रों पर विजय तो प्राप्त की गई, परन्तु शासकों की रुचि मुख्य रूप से कराधान के माध्यम से किसानों से अधिक राजस्व वसूलने में ही रही।
- जागीर व्यवस्था: शिवाजी ने जागीर व्यवस्था को समाप्त कर दिया था, परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् इस प्रणाली को पुनः लागू कर दिया गया था। यह व्यवस्था राज्यों के हित में नहीं थी क्योंकि जागीरदारों की केवल स्वयं के कल्याण में ही रुचि थी और इनके द्वारा राज्य पर बहुत कम ध्यान दिया जाता था।
सामाजिक कारण
- मराठा साम्राज्य जन सामान्य की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में विफल रहा। यही कारण था कि वे स्वयं के प्रति भारतीय लोगों की उच्च निष्ठा को प्रेरित करने में असफल रहे।
अन्य कारण
- नौसेना, हथियार और गोला बारूद में निवेश न करने के कारण भी मराठा असफल हुए। इन क्षेत्रों में ब्रिटिश सेनाएं अधिक शक्तिशाली थीं।
इस प्रकार राष्ट्रीय दृष्टिकोण की अनुपस्थिति, एकता का अभाव तथा अर्थव्यवस्था एवं सैन्य आधुनिकीकरण में निवेश का अभाव मराठा साम्राज्य के पतन का कारण बने। इसके परिणामस्वरूप तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818) में उनकी पराजय के पश्चात् पेशवाई समाप्त हो गई।
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