लाहौर अधिवेशन : अधिवेशन से पूर्व की घटनाओं (असहयोग आंदोलन, साइमन कमीशन आदि) पर संक्षिप्त चर्चा
प्रश्न: 1929 में आयोजित कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण था। व्याख्या कीजिए।
दृष्टिकोण
- लाहौर अधिवेशन से पूर्व की विभिन्न घटनाओं (असहयोग आंदोलन, साइमन कमीशन आदि) पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- अधिवेशन के ऐतिहासिक परिणामों (पूर्ण स्वराज्य, गोलमेज सम्मेलनों का बहिष्कार, सविनय अवज्ञा आंदोलन इत्यादि) को रेखांकित कीजिए।
- इन घटनाओं के महत्व पर चर्चा कीजिए और बताइए कि इन्होने कैसे स्वतंत्रता संग्राम में एक नए चरण को चिह्नित किया।
उत्तर
20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में स्वतंत्रता संघर्ष को एक नई स्फूर्ति प्राप्त हुई जिसके अंतर्गत सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, क्रांतिकारी गतिविधियों और विभिन्न ट्रेड यूनियनों के गठन ने संघर्ष को जन आंदोलन के रूप में परिवर्तित कर दिया। भारत सरकार अधिनियम,1919 ने ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध असंतोष उत्पन्न किया। 1927 में भारत आए साइमन कमीशन (इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे) ने इस असंतोष में और अधिक वृद्धि की। लॉर्ड बर्कनहेड ने राष्ट्रवादियों को एक ऐसे संविधान का निर्माण करने की चुनौती दी जो सभी को स्वीकार्य हो। अतः इस पृष्ठभूमि में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के लाहौर अधिवेशन,1929 को विशेष महत्व प्राप्त हुआ।
1929 के लाहौर अधिवेशन (जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता) के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
- पूर्ण स्वराज्य की घोषणा- INC ने औपनिवेशिक स्वराज्य (डोमिनियन स्टेटस) की अपनी दीर्घकालिक मांग को त्याग दिया और विदेशी शासन से पूर्ण स्वतंत्रता को अपने अंतिम लक्ष्य के रूप में घोषित किया।
- प्रतीकात्मक स्वतंत्रता – रावी नदी के तट पर पहली बार भारतीय तिरंगे (तीन रंगों का) को फहराया गया। यह भी निर्णय लिया गया कि भारतीय जनता को स्वतंत्रता आन्दोलन से जोड़ने हेतु भारत में सभी कांग्रेसी नेता स्वतंत्रता की शपथ लेंगे और 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाएंगे।
- गोलमेज सम्मेलनों (RTC) का बहिष्कार – इन सम्मेलनों को ब्रिटिश प्रधान मंत्री मैकडोनाल्ड ने संचालित किया था। इन सम्मेलनों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया क्योंकि ये साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर आधारित थे।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का संकल्प – इसे शोषण के विरुद्ध लोगों को सामूहिक संघर्ष की दिशा में पुनर्संगठित करने के लिए अपनाया गया।
- समाजवादी विचारधारा की स्वीकृति- नेहरू के अध्यक्ष पद पर नियुक्त होने के फलस्वरूप कांग्रेस के नेतृत्व के विभिन्न स्तरों में समाजवादी विचारधारा को स्वीकृति मिली।
अतः1929 के लाहौर अधिवेशन ने राजनीतिक संघर्ष के एक नए चरण को प्रारंभ किया। भारतीय राष्ट्रवादियों ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा और RTCs के बहिष्कार की रणनीति को अपनाकर स्वशासन और स्वतंत्रता के सिद्धांतों का स्पष्ट रूप से समर्थन किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन ने लोगों के मध्य चेतना और राष्ट्रवाद की एक नई लहर का नेतृत्व किया। इसने स्वतंत्रता संघर्ष को पुनर्संगठित किया और यह 1947 तक निरंतर होने वाली घटनाओं के लिए एक प्रमुख प्रेरणादायी कारक रहा।
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