भारत में निर्धनता उन्मूलन में स्वयं सहायता समूह (SHGs) की भूमिका

प्रश्न: भारत में निर्धनता उन्मूलन में SHGs द्वारा निभाई जा रही भूमिका को स्पष्ट कीजिए। SHGS -बैंक लिंकेज कार्यक्रम की कमियों पर प्रकाश डालते हुए, इसके निष्पादन में सुधार लाने हेतु कुछ सुझाव दीजिए।(250 words)

दृष्टिकोण

  • स्वयं सहायता समूह (SHGs) की संक्षिप्त परिभाषा दीजिए तथा भारत में निर्धनता उन्मूलन में इसकी भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  • SHG-बैंक संबद्धता कार्यक्रम की एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि का वर्णन करते हुए, इसकी कमियों का उल्लेख कीजिए।
  • इसके निष्पादन में सुधार करने हेतु सुझाव देते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

स्वयं-सहायता समूह (SHG) समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले निर्धन लोगों का एक लघु स्वैच्छिक संगठन होता है, जो स्वयं-सहायता और पारस्परिक सहायता के माध्यम से अपनी साझा समस्याओं का समाधान करने के उद्देश्य से एक साथ संगठित होते हैं।

SHGs और निर्धनता उन्मूलन 

  • ऋण तक पहुंच:SHG समूह के माध्यम से अपनी बचत को एकत्रित करते हैं और इस एकत्रित निधि के माध्यम से जरूरतमंद सदस्यों को निम्न ब्याज दरों पर पुनः ऋण प्रदान किया जाता है। इस प्रकार, यह निर्धन लोगों को संस्थागत ऋण के अभाव के कारण अनौपचारिक ऋणग्रस्तता के चंगुल से बचाने में सहायक होता है।
  • बचत की प्रवृत्तियों को बढ़ाना: SHGs द्वारा उत्पादक उद्देश्यों के साथ-साथ उपभोग संबंधी उद्देश्यों के लिए एकत्रित की गयी निधि का उपयोग किया जाता हैं। इसके माध्यम से व्यक्तियों को निर्धनता रेखा से नीचे स्थानांतरित करने की प्रवृत्ति रखने वाली अपरिहार्यताओं को कम किया जा सकता है।
  • उद्यमों को प्रोत्साहित करना: इसका एक उद्देश्य उत्पाद विकास, विपणन आदि में ऋण सहायता और सहयोग के माध्यम से निर्धनों के मध्य उद्यमिता को बढ़ावा देना है।
  • विशेष रूप से महिलाओं की आय में वृद्धि करना: SHG मॉडल, ग्रामीण महिलाओं के लिए वास्तविक रूप में परिवर्तनकारी सिद्ध हो रहा है क्योंकि इसके तहत लगभग 46 मिलियन महिलाओं को संगठित किया गया है। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि महिला कामगारों की आय में वृद्धि उनके पुरुष समकक्षों की आय में वृद्धि की तुलना में परिवार के जीवन स्तर में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि करती है।
  • क्षमता निर्माण: प्रशिक्षण, कार्यशाला, कौशल प्रदान करने आदि के माध्यम से मानव पूंजी में वृद्धि करने में SHGs की महत्वपूर्ण भूमिका है जो निर्धनता को कम करने में सहायक है।

SHG को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से संबद्ध करने के लिए नाबार्ड द्वारा 1992 में SHG-बैंक संबद्धता (SBL) कार्यक्रम की शुरूआत की गई। इस कार्यक्रम के तहत, बैंको द्वारा SHGs को ऋण प्रदान किया जाता है तथा प्रदान की जाने वाले ऋण की मात्रा, इन SHGs द्वारा बैंकों में जमा की गई राशि से कई गुना अधिक हो सकती है।

हालाँकि, SBL कार्यक्रम की कई सीमाएं हैं:

  • ऋणों की मात्रा: भारत में बैंकों से संबद्ध SHGs को दिए जाने वाला ऋण, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के कुल ऋण का केवल 1.5 प्रतिशत है।
  • व्यापक क्षेत्रीय असमानता: इस कार्यक्रम के तहत वितरित होने वाले कुल बैंक ऋणों में व्यापक क्षेत्रीय असमानता विद्यमान है। उदाहरणार्थ, दक्षिण भारत में स्वयं सहायता समूहों को कुल ऋण का 71.4% प्रदान किया गया है जबकि पूर्वोत्तर क्षेत्र को केवल 1.5% ही प्रदान किया गया है।
  • ऋणों की स्वीकृति में विलंब: ऋणों को स्वीकृति प्रदान करने में बैंकों की ओर से अनावश्यक विलंब सदस्यों के मनोबल और SHGs की कार्यप्रणाली को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है और अंततः कुछ SHGs का विघटन भी हो जाता है।
  • कौशल विकास प्रशिक्षण: SHG के नेतृत्वकर्ताओं एवं अन्य सदस्यों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए नाबार्ड (NABARD) द्वारा विस्तारित वित्तीय सहायता प्रदान करने के बावजूद, कई SHGs के पास विभिन्न आर्थिक गतिविधियों का संचालन करने और बैंकों की जटिल प्रक्रियाओं का अनुपालन करने हेतु आवश्यक प्रशिक्षण का अभाव है।
  • नौकरशाही दृष्टिकोण: SBL वृहत रूप में एक सरकार द्वारा सहायता प्राप्त मॉडल है और यह विशिष्ट नौकरशाही कार्यक्रम की विभिन्न कमियों से ग्रस्त है, जैसे अभीष्ट परिणाम प्राप्त करने के स्थान पर लक्ष्य को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना।

SBL कार्यक्रम के निष्पादन में सुधार के लिए सुझाव

  • बैंकिंग नेटवर्क में सुधार एवं अधिकाधिक NGOs को शामिल करते हुए उत्तर, पूर्व और पूर्वोत्तर क्षेत्र जैसे अब तक वंचित रहे क्षेत्रों में SHGs को प्रोत्साहित करना।
  • सरकारी अधिकारियों, विशेष रूप से सुविधा प्रदाताओं के क्षमता निर्माण को प्रोत्साहित करना तथा SHG की अवधारणा के संबंध में स्थानीय NGOs/ बैंक के कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • गलत लाभार्थियों के चयन, उच्च मूल्य वाले डिफॉल्ट की स्थितियों, ऋणों के दुरुपयोग (जैसे सूद पर धन उधार देने के लिए परिकामी ऋण आदि) से बचने हेतु ऋणों की स्वीकृति से पूर्व गहनता से जांच की जानी चाहिए।
  • ईमानदार और परिणामोन्मुखी NGOs के साथ-साथ बैंकों को प्रोत्साहन पैकेज प्रदान करना। बैंकों के निष्पादन के अंतर्गत पिछड़े क्षेत्रों में SBL कार्यक्रम के तहत वितरित किए गए ऋण से संबंधित एक संकेतक सम्मिलित किया जाना चाहिए।
  • ऋणों की ‘एवर-ग्रीनिंग’ पर नियंत्रण लगाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि यह प्रवृति क्रेडिट-लिंक्ड SHGs के मध्य तेजी से बढ़ रही है। नाबार्ड द्वारा इस प्रवृति पर नियंत्रित स्थापित करने की आवश्यकता है।

इसके अतिरिक्त, SHGs को अपने सहभागी और स्वयं-सहायता स्वरूप को बनाए रखते हुए, इन्हें एक स्थायी उद्यम के रूप में विकसित करने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता है। अंततः एक सुदृढ़ SHGs आन्दोलन के परिणामस्वरूप वित्तीय समावेशन, रोजगार सृजन और ग्रामीण विकास में सहायता प्राप्त हो सकेगी।

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